Ukraine US Minerals Deal: अमेरिका और यूक्रेन के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता होने जा रहा है. इस डील में दुर्लभ खनिजों के दोहन की अनुमति दी जाएगी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की इस शुक्रवार को वॉशिंगटन में व्हाइट हाउस जाकर इस समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं. इससे पहले उन्होंने रूसी सेना को पीछे धकेलने के लिए सैन्य और आर्थिक मदद के बदले अपने खनिज संसाधनों पर अमेरिकी नियंत्रण के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था.
लंबी बातचीत के बाद माना यूक्रेन
हालांकि कई दिनों की बातचीत के बाद अब यूक्रेन इस समझौते के लिए तैयार हो गया है. इससे पहले जेलेंस्की ने अमेरिका पर आरोप लगाया था कि वह उन पर 500 अरब डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर करने का दबाव बना रहा है. जिसका भुगतान करने में यूक्रेन की कई पीढ़ियां लग जाएंगी.
दुर्लभ खनिज क्यों हैं महत्वपूर्ण?
दुर्लभ और महत्वपूर्ण खनिज (क्रिटिकल मिनरल्स) आधुनिक तकनीक और रक्षा उपकरणों के लिए बेहद जरूरी हैं. इनका इस्तेमाल स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहनों, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित उपकरणों, हाई-टेक इलेक्ट्रॉनिक्स और अत्याधुनिक हथियारों के निर्माण में किया जाता है.
इन खनिजों की मांग बढ़ रही
हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने के कारण इन खनिजों की मांग बढ़ रही है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, 2022 में इनका वैश्विक बाजार 320 अरब पाउंड तक पहुंच गया था. अगर जलवायु परिवर्तन से जुड़ी नीतियों को पूरी तरह लागू किया जाए तो 2030 तक इनकी मांग दोगुनी और 2040 तक तीन गुना हो सकती है.
अमेरिका की इसमें दिलचस्पी क्यों है?
अमेरिका के लिए ये दुर्लभ खनिज सामरिक और आर्थिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हैं. दुनिया में इन खनिजों के सबसे बड़े उत्पादकों में चीन शामिल है और अमेरिका इस निर्भरता को कम करना चाहता है. इसी कारण वह यूक्रेन जैसे खनिज-समृद्ध देशों से समझौते कर रहा है. रूस ने पहले ही यूक्रेन के कई खनिज-समृद्ध क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है. जिससे अमेरिका की चिंताएं बढ़ गई हैं. अमेरिका चाहता है कि उसे इन महत्वपूर्ण खनिजों की सीधी आपूर्ति मिल सके जिससे वह अपने रक्षा और तकनीकी उद्योगों को मजबूत कर सके.
क्रिटिकल मिनरल्स और रेयर मिनरल्स में क्या अंतर है?
क्रिटिकल मिनरल्स वे खनिज होते हैं जो उद्योग और तकनीकी विकास के लिए बेहद जरूरी माने जाते हैं. अमेरिका के यूएस जियोलॉजिकल सर्वे (USGS) ने 2022 में 50 ऐसे खनिजों की सूची जारी की थी, जिसमें एल्युमिनियम, लिथियम, कोबाल्ट, टाइटेनियम और निकेल जैसे तत्व शामिल हैं. वहीं, रेयर मिनरल्स (दुर्लभ खनिज) 17 विशेष खनिजों का एक समूह है, जिनका इस्तेमाल स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहनों, मिसाइल नेविगेशन सिस्टम और अन्य हाई-टेक उपकरणों में किया जाता है. इनमें डिस्प्रोसियम, गेडोलिनियम, प्रेजोडायमियम और यूरोपियम शामिल हैं.
भारत में दुर्लभ खनिजों की स्थिति
भारत भी दुर्लभ खनिजों के मामले में समृद्ध देश है. यहां विश्व के दुर्लभ खनिजों का पांचवां सबसे बड़ा भंडार है और वैश्विक उत्पादन का लगभग 2.5% भारत में होता है. भारत में बोरिलियम, मोनाजाइट, इल्मेनाइट, जिक्रॉन, नियोबियम और टैंटलम जैसे आठ प्रमुख दुर्लभ खनिज पाए जाते हैं.
क्या होगा इस समझौते का असर?
यूक्रेन और अमेरिका के बीच यह समझौता न केवल आर्थिक बल्कि वैश्विक भू-राजनीति को भी प्रभावित कर सकता है. अमेरिका, चीन की इस क्षेत्र में पकड़ को कमजोर करना चाहता है. जबकि रूस भी यूक्रेन के खनिज भंडारों पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहता है. इस समझौते से यूक्रेन को आर्थिक मजबूती मिल सकती है. लेकिन इसके बदले उसे अमेरिका के प्रभाव में आना पड़ेगा. आने वाले समय में यह देखना होगा कि यह समझौता किस दिशा में जाता है और इसका वैश्विक राजनीति पर क्या असर पड़ता है.