Last Updated:May 22, 2025, 20:27 IST
Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को कड़ी फटकार लगाई है. SC ने धोखाधड़ी के एक आरोपी को जमानत दी, जिसकी याचिका 27 बार स्थगित की गई थी. CJI बीआर गवई ने कहा, 'व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामले में...और पढ़ें

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को फटकार लगाई.
हाइलाइट्स
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को फटकार लगाई.27 बार सुनवाई टालने पर आरोपी को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी.व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामले में देरी अस्वीकार्य: CJI गवई.नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं. मामला है धोखाधड़ी के आरोपी लक्ष्य तवर की जमानत याचिका का, जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूरे 27 बार टाल दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इस रवैये को न केवल अनुचित ठहराया, बल्कि सख्त लहजे में टिप्पणी करते हुए खुद आरोपी को जमानत दे दी. SC ने हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई को बंद कर दिया. प्रधान न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने पूछा, ‘आखिर हाईकोर्ट ऐसा कैसे कर सकता है? जमानत जैसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामले में 27 बार सुनवाई टालना क्या उचित है?’ कोर्ट ने कहा कि यह मामला सीधे-सीधे व्यक्ति की आजादी से जुड़ा है. ऐसे में यह व्यवहार स्वीकार नहीं किया जा सकता.
क्या है पूरा केस?
यह केस केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआई के जिम्मे है. आरोपी लक्ष्य तवर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 419, 420, 467, 468, 471 और 120बी के तहत केस दर्ज है. इसके साथ ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराएं 13(1)(डी) और 13(2) भी लगाई गई हैं. आरोपी का क्रिमिनल बैकग्राउंड भी लंबा है. हाईकोर्ट के मुताबिक उसके खिलाफ पहले से 33 मामले दर्ज हैं. बावजूद इसके, जब मामला जमानत पर सुनवाई का आया, तो कोर्ट ने 27 बार सुनवाई टाल दी. इससे सुप्रीम कोर्ट खासा नाराज हुआ.
भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.आर. गवई. (फाइल फोटो PTI)
SC ने फैसले में क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आमतौर पर वह किसी केस में सुनवाई टालने को लेकर दखल नहीं देता. लेकिन जब मामला किसी की निजी आज़ादी से जुड़ा हो और कोर्ट खुद टालमटोल करे, तो यह पूरी न्यायिक प्रणाली पर सवाल खड़े करता है. कोर्ट ने कहा कि यह स्थिति दिखाती है कि कैसे न्यायिक देरी एक व्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकती है.
इससे पहले हाईकोर्ट ने 20 मार्च को जमानत याचिका पर सुनवाई टालते हुए निचली अदालत को निर्देश दिया था कि वह जल्द से जल्द प्रक्रिया पूरी करे. हाईकोर्ट ने सीबीआई को यह भी कहा था कि वह शिकायतकर्ता संजय कुमार यादव की उपस्थिति सुनिश्चित करे. साथ ही कहा गया था कि तय तारीख पर शिकायतकर्ता का बयान दर्ज हो और आरोपी को उसी दिन जिरह का मौका दिया जाए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि इतने लंबे समय तक मामला खींचना मौलिक अधिकारों का हनन है. कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसे मामलों में न्याय में देरी का कोई औचित्य नहीं है.
Deepak Verma is a journalist currently employed as Deputy News Editor in News18 Hindi (Digital). Born and brought up in Lucknow, Deepak's journey began with print media and soon transitioned towards digital. He...और पढ़ें
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