Last Updated:April 19, 2025, 05:29 IST
Article 142 Explain: राष्ट्रपति द्वारा किसी भी विधेयक को मंजूरी देने के मामले में हाल में ही सुप्रीम कोर्ट की जो जजों की पीठ ने महत्वपूर्ण फैसला दिया है. यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 143 से जुड़ा है. शीर्ष ...और पढ़ें

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संविधान के अनुच्छेद 142 को न्यूक्लियर मिसाइल बताया है. कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने इसपर सख्त ऐतराज जताया है.
हाइलाइट्स
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अनुच्छेद 142 को न्यूक्लियर मिसाइल बतायाधनखड़ के बयान पर सियासी बवाल मचा, कांग्रेस पार्टी ने दी तीखी प्रतिक्रियाकपिल सिब्बल से लेकर अभिषेक मनु सिंघवी तक ने इसपर आपत्ति जताई हैनई दिल्ली. तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने विधानसभा से पारित 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिए रख लिया था. इसे नवंबर 2023 से ही राष्ट्रपति के लिए रिजर्व रख दिया गया था. राज्यपाल के इस कदम के खिलाफ तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. इस मामले पर मुकम्मल बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी व्यवस्था दी, जिसका संविधान के अनुच्छेद 143 में कोई उल्लेख नहीं है. शीर्ष अदालत की पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट तौर पर कहा कि यदि राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए भेजते हैं तो प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया को तीन महीने यानी 90 दिनों में उसपर निर्णय लेना होगा. यदि यह समयसीमा के अंदर विधेयक पर राष्ट्रपति की ओर से अपना विचार नहीं दिया गया तो उन्हें इसकी वजह बतानी होगी. इस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 143 की नए सिरे से व्याख्या कर डाली, जिसका प्रावधान संविधान में नहीं था. सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति संविधान के अनुच्छेद 142 से मिलती है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि आर्टिकल 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है, जो न्यायपालिका के पास 24X7 उपलब्ध है.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस बयान के बाद कोहराम मचा हुआ है. सियासत के गलियारों से लेकर ज्यूडिशियरी और संविधान के एक्सपर्ट्स तक में इसको लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. कांग्रेस के दिग्गज नेता और सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी तक ने धनखड़ के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है.कपिल सिब्बल ने कहा कि आज के दिन यदि किसी संस्था पर लोगों को सबसे ज्यादा भरोसा है तो वह न्यायपालिका ही है, फिर चाहे वह हाईकोर्ट्स हो या फिर सुप्रीम कोर्ट. सिब्बल ने कहा, ‘सरकार के लोगों को जब ज्यूडिशियरी का कोई फैसला पसंद नहीं आता है तो वे आरोप लगाना शुरू कर देते हैं कि ये हद से बाहर हैं. जब उनको फैसले पसंद आते हैं तो विपक्ष से कहते हैं कि यह तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला है. मेरी समझ में एक कांस्टीट्यूशनल फंक्शनरी को ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए. यह उचित नहीं है. मैं आपका बहुत आदर करता हूं, लेकिन आपने कह दिया कि अनुच्छेद 142 न्यूक्लियर मिसाइल है. आप यह कैसे कह सकते हैं?’ अभिषेक मनु सिंघवी ने भी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयान पर अपना ऐतराज जाहिर किया है. उन्होंने कहा कि जब राज्यपाल केंद्र के एजेंट की तरह काम करने लगे तो अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल गलत कैसे हुआ? सिंघवी ने कहा कि आर्टिकल 142 का इतिहास 50 साल पुराना है. मैं उनके बयान से पूरी तरह से असहमत हूं.
क्या राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर सुप्रीम कोर्ट की राय लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है?
क्या है अनुच्छेद 142
अब सवाल उठता है कि संविधान के जिस अनुच्छेद 142 को लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सवाल उठाया है आखिर उसमें सुप्रीम कोर्ट के लिए क्या प्रावधान किए गए हैं? संविधान के अनुच्छेद 142 भारत के सुप्रीम कोर्ट को सुप्रीम पावर देता है. आर्टिकल 142(1) में कहा गया है- सुप्रीम कोर्ट अपनी ज्यूरिशडिक्शन का इस्तेमाल करते हुए ऐसी डिक्री या ऐसा आदेश पारित कर सकेगा जो उसके समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक या जरूरी हो. सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश पूरे भारतवर्ष में लागू होगा. अनुच्छेद 142(2) में कहा गया है कि संसद की ओर से इस बाबत बनाई गई किसी विधी (एक्ट या लॉ) के उपबंधों (प्रोविजन या प्रावधान) के अधीन रहते हुए सुप्रीम कोर्ट को भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र के बारे में किसी व्यक्ति को हाजिर कराने या आदेश के उल्लंघन की जांच कराने या फिर दंड देने के उद्देश्य के लिए कोई भी आदेश करने की समस्त और प्रत्येक शक्ति होगी.
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर धनखड़ और क्या बोले
तमिलनाडु मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उपराष्ट्रपति ने सीधी और स्पष्ट बात कही है. उन्होंने कहा कि यह बहुत उच्च स्तर की चिंताएं हैं. धनखड़ ने लगे हाथ पूछा कि हाल में ही दिए गए एक जजमेंट में राष्ट्रपति के लिए डायरेक्टिव दिया गया है. हमलोग किस तरफ जा रहे हैं? इस देश में क्या हो रहा है? उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने अपनी जिंदगी में कभी नहीं सोचा था कि ऐसा मौका भी देखूंगा. राष्ट्रपति का पद काफी ऊंचा होता है. राष्ट्रपति संविधान को प्रिजर्व, प्रोटेक्ट और डिफेंड करने की शपथ लेते हैं.’ बता दें कि कपिल सिब्बल ने अपने बयान में कहा कि राष्ट्रपति देश का नाममात्र का मुखिया होते हैं.
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
April 19, 2025, 05:29 IST