एक शब्द पर सुप्रीम कोर्ट में घिरा चुनाव आयोग, सिब्बल की टीम ने उधेड़ दी बखिया!

6 hours ago

Last Updated:July 10, 2025, 12:43 IST

special intensive revision in bihar and Supreme Court hearing: सुप्रीम कोर्ट में बिहार वोटर पुनरीक्षण पर सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग एक शब्द पर फंस गया. वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायणन ने प्रक्रिया को कानून क...और पढ़ें

एक शब्द पर सुप्रीम कोर्ट में घिरा चुनाव आयोग, सिब्बल की टीम ने उधेड़ दी बखिया!

सुप्रीम कोर्ट में एक शब्द पर चुनाव आयोग घिर गया है.

हाइलाइट्स

चुनाव आयोग पर सुप्रीम कोर्ट में सवाल उठे.विशेष इंटेंसिव रिवीजन को भेदभावपूर्ण बताया गया.सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से जवाब मांगा.

सुप्रीम कोर्ट में बिहार में वोटर पुनरीक्षण के मसले पर हो रही सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग एक शब्द पर फंस गया. मतदाता सूची के विशेष इंटेंसिव रिवीजन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायणन ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि चुनाव आयोग जो प्रक्रिया अपना रहा है, वह न तो 1950 के अधिनियम में है और न ही मतदाता पंजीकरण नियमों में. यह देश के इतिहास में पहली बार किया जा रहा है, जबकि इसका कोई कानूनी आधार नहीं है.

याचिका कर्ता के वकील ने क्या कहा?

याचिका कर्ताओं के वकील शंकर नारायणन ने बताया कि कानून के तहत दो प्रकार के रिवीजन मुमकिन हैं- इंटेंसिव और समरी. लेकिन बिहार में अब ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ नामक नई प्रक्रिया लागू की जा रही है, जिसके तहत 7.9 करोड़ लोगों को फिर से दस्तावेज देने होंगे और सिर्फ 11 दस्तावेज स्वीकार किए जा रहे हैं. यहां तक कि वोटर आईडी कार्ड को भी अमान्य कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि साल 2003 की मतदाता सूची में जिनका नाम है, उन्हें भी एक नया फॉर्म भरना होगा, अन्यथा उनका नाम सूची से हटा दिया जाएगा. वहीं 2003 के बाद जिनके नाम जुड़े, उन्हें नागरिकता सिद्ध करने के लिए दस्तावेज देने होंगे.

भेदभावपूर्ण और मनमाना रवैया

शंकरनारायणन ने कहा कि ये यह पूरी प्रक्रिया न केवल कानून के बाहर है, बल्कि पूरी तरह से भेदभावपूर्ण भी है. कुछ वर्गों जैसे न्यायपालिका, कला और खेल क्षेत्र से जुड़े प्रतिष्ठित लोगों को दस्तावेज जमा न करने की छूट दी जा रही है, जबकि आम नागरिकों को कठिन प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा है.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस धर्मेश धूलिया की महत्वपूर्ण टिप्पणी

सुनवाई के दौरान जस्टिस धूलिया ने कहा कि, “जो कुछ किया जा रहा है, वह संविधान के तहत ही है. तो आप यह नहीं कह सकते कि वे कुछ गैरकानूनी कर रहे हैं.” इस पर याचिका कर्ता के वकील शंकर नारायणन ने जवाब दिया कि “हम अधिकार को चुनौती नहीं दे रहे, बल्कि जिस तरीके से यह प्रक्रिया की जा रही है, वह नियमों के विपरीत है.”

चुनाव आयोग से सवाल

कोर्ट ने चुनाव आयोग (ECI) से पूछा: — “अगर आप नागरिकता (Citizenship) की जांच प्रक्रिया में शामिल होते हैं, तो यह एक बड़ा और व्यापक अभ्यास बन जाएगा” कोर्ट ने सुझाव दिया कि “अगर नागरिकता की जांच की जानी है, तो यह प्रक्रिया समय से पहले शुरू की जानी चाहिए.” कोर्ट ने यह भी कहा कि– “नागरिकता की जांच के लिए अगर कोई अर्ध-न्यायिक (quasi-judicial) संस्था को शामिल करना पड़े, तो पूरी प्रक्रिया और अधिक जटिल हो जाएगी.” कोर्ट का संकेत था कि “ऐसी स्थिति में पूरी निर्वाचन प्रक्रिया लंबी और समय लेने वाली हो सकती है.” यह टिप्पणी नागरिकता को मतदाता सूची संशोधन से जोड़ने के संदर्भ में दी गई थी.

संतोष कुमार

न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...और पढ़ें

न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...

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