Last Updated:August 21, 2025, 15:47 IST
Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति रेफरेंस पर सुनवाई के दौरान CJI गवई ने चेताया कि एक्टिविज्म टेररिज्म न बने. SG मेहता ने कहा- जनता द्वारा चुने नेताओं की भूमिका कम नहीं आंकनी चाहिए.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को राष्ट्रपति रेफरेंस पर हुई सुनवाई के दौरान माहौल तब गरमा गया जब मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने सख्त टिप्पणी की. उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि “न्यायिक सक्रियता कभी भी न्यायिक आतंकवाद या न्यायिक साहसिकता में नहीं बदलनी चाहिए.” यह चेतावनी ऐसे समय आई जब अदालत यह सुन रही थी कि क्या न्यायपालिका राज्यपाल और राष्ट्रपति पर विधानसभा से पास हुए बिलों पर फैसला लेने के लिए समयसीमा थोप सकती है.
इसी बीच केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि जनता द्वारा चुने गए नेताओं के अनुभव और फैसलों को कम करके आंकना लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है. उन्होंने कहा कि आज के समय में लोग सीधे अपने नेताओं से सवाल करते हैं, इसलिए निर्वाचित प्रतिनिधियों की भूमिका को कमजोर करना उचित नहीं होगा.
SG मेहता की दलील
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने सुनवाई के दौरान कहा कि राज्यपाल द्वारा “असेंट रोकना” (Withholding Assent) संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत एक स्वतंत्र और पूर्ण अधिकार है. इसे सीमित करने या उस पर समयसीमा तय करने से संविधान का संतुलन बिगड़ जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल का अनुभव इस बहस में अहम होगा, क्योंकि वे न केवल लंबे समय तक संसद में रहे हैं बल्कि शासन का हिस्सा भी रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट की पिछली टिप्पणियां
सुनवाई के दौरान अदालत ने यह याद दिलाया कि विधानसभा द्वारा दोबारा पास किए गए बिल को राज्यपाल राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते. इसी साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार कहा था कि राष्ट्रपति को राज्यपाल से भेजे गए बिल पर तीन महीने के भीतर फैसला लेना चाहिए.
राष्ट्रपति ने क्यों मांगी राय?
मई में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट को 14 सवाल भेजे थे. इनमें पूछा गया है कि क्या न्यायपालिका राष्ट्रपति और राज्यपाल को तय समयसीमा में फैसला करने के लिए बाध्य कर सकती है, और अनुच्छेद 200 व 201 के तहत उनकी शक्तियों की सीमा क्या है. केंद्र सरकार ने अपने लिखित जवाब में कहा है कि अगर अदालत गवर्नर और राष्ट्रपति पर तय समयसीमा थोपती है तो यह “संवैधानिक अव्यवस्था” (Constitutional Disorder) पैदा कर देगा.
क्यों अहम है यह मामला?
यह बहस केवल एक कानूनी व्याख्या नहीं है बल्कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभों – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति संतुलन का बड़ा सवाल है. CJI गवई की टिप्पणी बताती है कि अदालत भी इस संतुलन को समझती है और चाहती है कि न्यायपालिका की सक्रियता कहीं अतिक्रमण में न बदल जाए.
Sumit Kumar is working as Senior Sub Editor in News18 Hindi. He has been associated with the Central Desk team here for the last 3 years. He has a Master's degree in Journalism. Before working in News18 Hindi, ...और पढ़ें
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First Published :
August 21, 2025, 15:47 IST