नई दिल्ली. क्या अब अगर कोई पति अपनी पत्नी की बिना रजामंदी के संबंध बनाता है तो उसके खिलाफ केस दर्ज हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले पर सुनवाई करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट किया कि वह वैवाहिक बलात्कार यानी मैरिटल रेप के मामले में पतियों के खिलाफ केस चलाए जाने की दी गई छूट की वैधता पर सुनवाई पूरी तरह कानूनी सिद्धांतों के आधार पर करेंगा. भले ही केन्द्र सरकार इस मामले में अपना कोई रुख स्पष्ट न करें.
सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि यह कानून का मामला है. अगर उन्होंने हलफनामा दाखिल नहीं करने का फैसला किया है तो उन्हें कानून के मुद्दे पर बहस करनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी तक की जब एक याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह ने पीठ से मामले की जल्द सुनवाई सुनिश्चित करने का आग्रह किया.
इस मामले की सुनवाई के दौरान एक अन्य वकील ने बेंच से कहा कि कई मौकों के बावजूद केंद्र सरकार ने अभी तक इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए हलफनामा दाखिल नहीं किया है. इस पर सुनवाई के दौरान जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने कहा कि कि दंड संहिता के कानूनी प्रावधान को चुनौती देने वाला यह मामला कानून के प्रश्न के रूप में आगे बढ़ेगा. यह मामला बुधवार को कोर्ट लिस्ट में था लेकिन किसी अन्य मामले की दिनभर चली सुनवाई के चलते इस मामले पर सुनवाई नहीं हो सकी.
हाईकोर्ट में जजों की थी बंटी राय
सुप्रीम कोर्ट आईपीसी की धारा 375 के तहत अपवाद 2 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. इसमें पति को अपनी पत्नी के साथ बलात्कार के लिए केस चलाने की छूट देता है. इन जनहित याचिकाओं का तर्क है कि यह अपवाद उन विवाहित महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण है, जिनका उनके पतियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है. इस मुद्दे में मई 2022 का दिल्ली हाईकोर्ट का बांट हुआ फैसला भी शामिल है, जो सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले तक पेंडिंग है. उस फैसले में, एक न्यायाधीश ने मैरिटल रेप अपवाद को ‘नैतिक रूप से प्रतिकूल” घोषित किया, जबकि दूसरे न्यायाधीश ने फैसला सुनाया कि अपवाद वैध था और कानून का उल्लंघन किए बिना अस्तित्व में रह सकता है.
क्या है सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग पति की याचिका?
इन लंबित मामलों में एक व्यक्ति की अपील भी शामिल है, जिसके खिलाफ पत्नी से बलात्कार के मामले में मार्च 2022 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने मुकदमा बरकरार रखा था. जुलाई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मुकदमे पर रोक लगा दी थी. तत्कालीन भाजपा की कर्नाटक सरकार ने नवंबर 2022 में पति के अभियोजन का समर्थन करते हुए एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि आईपीसी पति के खिलाफ पत्नी से बलात्कार के मामले में आपराधिक मुकदमा चलाने की अनुमति देता है. जनवरी 2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाही को सुव्यवस्थित करने के लिए अधिवक्ता पूजा धर और जयकृति एस जडेजा को नोडल वकील नियुक्त किया था
केंद्र सरकार ने अभी तक इस मामले पर अपना रुख साफ नहीं किया है. पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट को केन्द्र सरकार ने बताया था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने से कई ‘सामाजिक परिणाम’ होंगे. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया था कि इस मुद्दे को केवल कानूनी सिद्धांतों के चश्मे से नहीं देखा जा सकता है, बल्कि इसके व्यापक सामाजिक परिणामों पर भी विचार किया जाना चाहिए. सितंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया कि पति द्वारा जबरन सेक्स को उस कानून के तहत बलात्कार माना जा सकता है, जो भारत में वैवाहिक बलात्कार की पहली कानूनी मान्यता है.
Tags: Marital Rape, Supreme Court
FIRST PUBLISHED :
September 19, 2024, 17:28 IST