किस धातु से बनी होती है यात्री विमानों की नोज, ये टूट जाए तो क्या होता है?

3 hours ago

21 मई को समूचे उत्तर भारत में मौसम खराब हुआ. अंधड़ के बाद कहीं तेज बारिश हुई तो कहीं ओले गिरे. इससे हवा में उड़ती हुई इंडिया फ्लाइट प्रभावित हुई. ओलों के टकराने से विमान के आगे के हिस्से को नुकसान हुआ. जानते हैं कि विमानों की नोज किस धातु की बनी होती है. अगर हवा में वो क्षतिग्रस्त हो जाए तो उड़ान पर क्या असर होता है.

ये घटना 21 मई को दिल्ली से श्रीनगर जा रही इंडिगो फ्लाइट 6E2142 के साथ हुई. विमान ने हवा में ओलावृष्टि का सामना किया. ओलों के टकराने से विमान के आगे के हिस्से (नोज या रैडोम) को नुकसान हुआ. इसके बाद भी पायलट ने किसी तरह से विमान को सकुशल श्रीनगर की एय़र पट्टी पर उतार दिया. कभी यात्री और विमान क्रू सुरक्षित रहे.

बड़े विमानों की नोज किस धातु से बनी होती है?
बड़े विमानों की नोज कई अलग अलग धातुओं की बनती है. सामग्रियों का चयन उनकी मजबूती, हल्केपन और एयरोडायनामिक गुणों के आधार पर किया जाता है, ताकि विमान की परफॉर्मेंस और सुरक्षा बनी रहे.

एल्युमिनियम अलॉय – पारंपरिक रूप से विमानों की नोज के लिए एल्युमिनियम अलॉय (जैसे 2024-T3, 6061) का उपयोग किया जाता है क्योंकि यह हल्का, मजबूत और अपेक्षाकृत सस्ता होता है.

कार्बन फाइबर रिइन्फोर्स्ड पॉलिमर – आधुनिक विमानों में कार्बन फाइबर कंपोजिट्स का भी उपयोग बढ़ गया है. यह मटेरियल हल्का, मजबूत और बेहतर क्रैश रेजिस्टेंस प्रदान करता है.

बड़े विमानों की नोज आमतौर पर एल्युमिनियम अलॉय, कार्बन फाइबर कंपोजिट या टाइटेनियम अलॉय से बनी होती है. ( NEWS18 AI)

टाइटेनियम अलॉय – कुछ विशेष विमानों में जहां अधिक मजबूती और तापमान सहनशीलता की आवश्यकता होती है, वहां टाइटेनियम अलॉय का भी इस्तेमाल किया जाता है.

क्या उड़ते हुए विमान गिरते हुए ओलों से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं?
हां, उड़ते हुए विमान गिरते हुए ओलों से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं. ओले आमतौर पर विमान के नोज, विंडशील्ड और विंग्स को प्रभावित कर सकते हैं. हालांकि विमान की बाहरी संरचना को इस तरह के मौसम से बचाव के लिए डिज़ाइन किया जाता है, लेकिन बहुत बड़े या तीव्र ओले मामूली या कभी-कभी गंभीर क्षति पहुंचा सकते हैं.

हवा में विमान का नोज क्षतिग्रस्त हो जाए तो उड़ान पर क्या असर पड़ता है?
विमान की नोज़ कोन का मुख्य काम हवा के प्रतिरोध को कम करना और विमान को स्थिर रखना है. अगर नोज़ क्षतिग्रस्त हो जाए तो हवा को काटने में दिक्कत होती है, जिससे विमान अस्थिर हो सकता है और नियंत्रण में कठिनाई आ सकती है.

नोज़ कोन के अंदर रडार, मौसम सेंसर और अन्य महत्वपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होते हैं. क्षति की स्थिति में ये उपकरण खराब हो सकते हैं, जिससे पायलट को दिशा या मौसम की सही जानकारी नहीं मिलती, और विमान की नेविगेशन व कम्युनिकेशन क्षमता प्रभावित हो सकती है.

अगर हवा में विमान का नोज़ क्षतिग्रस्त हो जाए तो विमान की उड़ान, नियंत्रण, नेविगेशन, और सुरक्षा पर गंभीर असर पड़ता है. (News18 AI)

नोज़ कोन का चिकना आकार विमान को तेज़ गति और कम ईंधन में उड़ने में मदद करता है. अगर यह टूट जाए, तो बारिश, धूल, या छोटे कण विमान के अंदर पहुंच सकते हैं, जिससे उपकरणों को और नुकसान हो सकता है. साथ ही, विमान की संरचना कमजोर हो सकती है, जिससे इमरजेंसी लैंडिंग की ज़रूरत पड़ सकती है.

क्या नोज का क्षतिग्रस्त होने यात्रियों और पायलट की सुरक्षा पर असर होता है?
हां. नोज़ के पास ही कॉकपिट होता है. अगर नोज़ में बड़ा छेद या दरार आ जाए, तो केबिन प्रेशर कम हो सकता है, जिससे पायलट और यात्रियों को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है. ऐसे में तुरंत आपातकालीन लैंडिंग जरूरी हो जाती है.

क्या विमानों की क्षतिग्रस्त नोज की मरम्मत भारत में ही होती है या बाहर?
भारत में अब विमानों की मरम्मत और रखरखाव की सुविधाएं तेजी से विकसित हो रही हैं. दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, त्रिवेंद्रम, हैदराबाद और नागपुर जैसे शहरों में MRO सेंटर मौजूद हैं, जहां विमानों के विभिन्न हिस्सों की मरम्मत की जाती है. ये एयरपोर्ट एरिया में ही होते हैं.

नोएडा एयरपोर्ट परिसर में भी MRO हब विकसित किया जा रहा है, जहां कॉमर्शियल और लड़ाकू विमानों की मरम्मत, ओवरहॉल और रखरखाव का काम किया जाएगा. डसॉल्ट जैसी कंपनियां भी भारत में MRO सुविधाओं का विस्तार कर रही हैं.

नोज़ के पास ही कॉकपिट होता है। अगर नोज़ में बड़ा छेद या दरार आ जाए, तो केबिन प्रेशर कम हो सकता है, जिससे पायलट और यात्रियों को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है. (News18 AI)

इंडिगो फ्लाइट की नोज क्षतिग्रस्त होने पर विमान को ‘एयरक्राफ्ट ऑन ग्राउंड’ घोषित कर मरम्मत के लिए भारत में ही रखा गया है. इससे स्पष्ट है कि नोज कोन की मरम्मत (और कई बार निर्माण) भारत में संभव है. हालांकि अभी भी कुछ जटिल या विशेष पार्ट्स के लिए भारत को विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है, लेकिन MRO सेक्टर के विस्तार के साथ अब बड़े पैमाने पर विमानों की नोज और अन्य हिस्सों की मरम्मत भारत में ही होने लगी है.

बड़े यात्री विमानों में नोज कितनी बड़ी होती है?
बड़े यात्री विमानों की नोज का आकार विमान के मॉडल और उसके आकार पर निर्भर करता है. बोइंग 737, 777, 747 जैसे विभिन्न मॉडल्स में नोज की लंबाई और व्यास अलग-अलग होते हैं.

बोइंग 747 सबसे बड़ा जंबो जेट है. इसकी कुल लंबाई लगभग 231 फीट (70.6 मीटर) होती है. नोज सेक्शन आमतौर पर लगभग 15-20 फीट (4.5-6 मीटर) लंबा और लगभग 8-10 फीट (2.5-3 मीटर) व्यास का होता है.

बोइंग विमानों की नोज आमतौर पर 4 से 6 मीटर लंबी और 2 से 3 मीटर व्यास की होती है, लेकिन सटीक आकार विमान के मॉडल पर निर्भर करता है.

बोइंग 777 दुनिया का सबसे बड़ा ट्विनजेट है, जिसकी कुल लंबाई लगभग 209 फीट (63.7 मीटर) होती है. इसका नोज सेक्शन भी लगभग 15 फीट (4.5 मीटर) लंबा और 6-8 फीट (2-2.5 मीटर) व्यास का होता है.

नोज का आकार इतना बड़ा होता है कि उसमें रडार, मौसम सेंसर, एवियोनिक्स और अन्य महत्वपूर्ण उपकरण आराम से फिट हो सकें. बोइंग के सभी बड़े विमानों में नोज सेक्शन आमतौर पर 4 से 6 मीटर (13 से 20 फीट) लंबा और 2 से 3 मीटर (6 से 10 फीट) व्यास का होता है, जो विमान के कुल आकार का लगभग 7-10% होता है.

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