Last Updated:July 16, 2025, 16:35 IST
Kerala Politics: भाजपा ने आरएसएस नेता सी सदानंदन को राज्यसभा भेजकर केरल की राजनीति में बड़ा दांव चला है. यह कदम पार्टी के 2026 में सरकार बनाने के इरादे और सीपीएम से सीधी टक्कर की रणनीति को दर्शाता है.

बीजेपी नेता राजीव चंद्रशेखर
हाइलाइट्स
भाजपा ने सदानंदन को राज्यसभा भेजकर विपक्ष का दावा मजबूत किया.अमित शाह ने केरल में 2026 में सरकार बनाने की घोषणा की.आरएसएस कार्यकर्ताओं में जोश बढ़ा, भाजपा ने सीपीएम को चुनौती दी.केरल की राजनीति में एक नई हलचल उस वक्त पैदा हो गई, जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वरिष्ठ नेता सी सदानंदन को राज्यसभा भेजने का फैसला किया. ये वही सदानंदन हैं, जिन्होंने कन्नूर जिले की राजनीतिक हिंसा में अपने दोनों पैर गंवा दिए थे. भाजपा के इस कदम को सिर्फ एक राजनीतिक नियुक्ति नहीं, बल्कि राज्य में अपने इरादों और रणनीति का बड़ा इशारा माना जा रहा है.
भाजपा अब यह दिखाना चाहती है कि वह सिर्फ दर्शक नहीं, बल्कि सीपीएम (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया – मार्क्सवादी) को चुनौती देने वाली असली विपक्षी ताकत है.
अमित शाह के ऐलान के बाद बड़ा कदम
भाजपा का यह फैसला गृह मंत्री अमित शाह की हालिया केरल यात्रा के ठीक बाद आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि पार्टी 2026 में राज्य में सरकार बनाएगी. भाजपा के इस आत्मविश्वास भरे ऐलान के बाद जब पार्टी ने सदानंदन को राज्यसभा भेजा, तो यह साफ हो गया कि पार्टी अब राज्य की राजनीति में आक्रामक भूमिका निभाने जा रही है.
यह कदम सिर्फ एलडीएफ (वाम गठबंधन) और यूडीएफ (कांग्रेस गठबंधन) के लिए चौंकाने वाला नहीं रहा, बल्कि इससे भाजपा कार्यकर्ताओं में भी नया जोश भर गया है.
भाजपा का संदेश- डर नहीं, मुकाबला करेंगे
भाजपा के राज्य अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने स्पष्ट तौर पर कहा कि भाजपा सीपीएम की हिंसा की शिकार नहीं है, बल्कि वह जनता के बीच से निकली वो ताकत है जो उसे हराने के लिए लड़ रही है. उन्होंने सदानंदन के पुराने बयान को दोहराते हुए कहा—“हम डरने वाले नहीं, लड़ने वाले हैं.”
इस तरह भाजपा यह बताना चाह रही है कि वह अब पीछे हटने वाली नहीं है, बल्कि सीपीएम को सीधी चुनौती देने के लिए तैयार है.
आरएसएस कार्यकर्ताओं को मिला भरोसा
सदानंदन की नियुक्ति को भाजपा और आरएसएस के कार्यकर्ताओं के लिए एक बड़ा हौसला माना जा रहा है. खासकर उत्तर केरल, जहां सीपीएम का मजबूत दबदबा है, वहां आरएसएस कार्यकर्ताओं को अब उम्मीद है कि वे खुलकर संगठन को खड़ा कर पाएंगे.
सदानंदन जैसे नेता, जिन्होंने निजी जीवन में बड़ी कुर्बानी दी है, उन्हें आगे लाकर पार्टी यह दिखाना चाह रही है कि बलिदान करने वालों को अब राजनीतिक मंच पर भी जगह मिलेगी.
कांग्रेस और लेफ्ट को मिला चेतावनी का संकेत
जब से सदानंदन की नियुक्ति हुई है, तब से एलडीएफ और यूडीएफ दोनों भाजपा पर हमलावर हैं. वे इसे संवैधानिक संस्थाओं का भगवाकरण कहकर विरोध कर रहे हैं. लेकिन भाजपा यह साफ कर रही है कि वह अपने हिंदुत्व के विचार से कोई समझौता नहीं करेगी और न ही पीछे हटेगी.
राजनीतिक विश्लेषक जे प्रभाष के मुताबिक भाजपा अब यह जताना चाहती है कि केरल में सिर्फ वही पार्टी है, जो सीपीएम को खुली चुनौती दे सकती है. बाकी विपक्ष, यानी कांग्रेस और उसके सहयोगी, अब कमजोर और निष्क्रिय नजर आ रहे हैं.
क्या भाजपा के लिए राह आसान होगी?
राजनीतिक जमीन पर हालांकि भाजपा के लिए राह आसान नहीं है. प्रभाष का कहना है कि केरल की मौजूदा स्थिति में भाजपा का असर सीमित है. राज्य में अभी भी सीपीएम को एझावा और अनुसूचित जाति जैसे बड़े वर्गों का समर्थन हासिल है, जिससे उसे मजबूत जनाधार मिलता है.
इसके अलावा, राज्य की करीब 50% आबादी अल्पसंख्यकों की है—मुस्लिम और ईसाई समुदाय, जो आमतौर पर भाजपा का समर्थन नहीं करते. ऐसे में भाजपा तभी बड़ी ताकत बन सकती है, जब या तो सीपीएम कमजोर हो, या कोई नया समीकरण उभरे.
थरूर फैक्टर से बदल सकते हैं समीकरण?
एक और बड़ी चर्चा इस वक्त है कि अगर कांग्रेस नेता शशि थरूर कांग्रेस छोड़कर कोई नया धर्मनिरपेक्ष दल बनाते हैं, तो वह राज्य की राजनीति में बड़ा उलटफेर कर सकते हैं. राजनीतिक विश्लेषक पी सुजाथन के मुताबिक थरूर नायर समाज और ईसाई समुदायों में स्वीकार्य चेहरा हैं और वे कांग्रेस व सीपीएम दोनों के असंतुष्ट नेताओं को साथ ला सकते हैं.
अगर ऐसा होता है और भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाती है, तो यह दोनों मोर्चों—एलडीएफ और यूडीएफ—के लिए बड़ा झटका हो सकता है.