कैसे ‘ऑपरेशन पोलो' से हुआ हैदराबाद का भारत में विलय, देखता रह गया पाकिस्तान

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Last Updated:September 17, 2025, 15:34 IST

Operation Polo: ऑपरेशन पोलो के तहत 17 सितंबर 1948 को निजाम मीर उस्मान अली खान की हैदराबाद रियासत भारतीय संघ में शामिल हुई. भारतीय सेना ने केवल पांच दिनों में हैदराबाद पर फतह हासिल की.

कैसे ‘ऑपरेशन पोलो' से हुआ हैदराबाद का भारत में विलय, देखता रह गया पाकिस्तानऑपरेशन पोलो के दौरान हैदराबाद में घुसते भारतीय सेना के टैंकों को देखते नागरिक. विकिमीडिया कॉमन्स

Operation Polo: 17 सितंबर भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन है. 1948 में इसी दिन हैदराबाद रियासत का भारतीय संघ में विलय हुआ था. इस साल हैदराबाद रियासत के औपचारिक रूप से भारत में एकीकरण के 77 वर्ष पूरे हो गए. इस घटना को निजाम के शासन के अंत और स्वतंत्रता के बाद के युग के एक तनावपूर्ण अध्याय के समापन के तौर पर याद किया जाता है. क्योंकि सातवें निजाम मीर उस्मान अली खान ने अपनी शक्तिशाली हैदराबाद रियासत को भारतीय गणराज्य में विलय करने से इनकार कर दिया था.

हैदराबाद रियासत भौगोलिक रूप से भारत का हिस्सा होते हुए भी आसफ जाही शासकों के अधीन थी. यह रियासत 17 सितंबर, 1948 को भारत को अंग्रेजों से आजादी मिलने के एक साल से भी ज्यादा समय बाद भारतीय सैन्य बलों द्वारा तत्कालीन अड़ियल शासक मीर उस्मान अली खान पर एक पुलिस कार्रवाई के बाद भारतीय संघ में शामिल हुई. इसे ऑपरेशन पोलो का कोड नाम दिया गया था. 

पटेल ने दी ऑपरेशन पोलो की इजाजत
1947 में भारत की आजादी के समय हैदराबाद सबसे बड़ी रियासत थी. उस पर निजाम मीर उस्मान अली खान का शासन था, जिन्होंने भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का विरोध किया था. निजाम ने असहमति को दबाने और नियंत्रण बनाए रखने के लिए अपने निजी मिलिशिया या रजाकारों पर भरोसा करते हुए स्वतंत्रता की मांग की. हैदराबाद में सांप्रदायिक हिंसा फैलने से तनाव बढ़ गया. साथ ही हैदराबाद के विलय से इनकार करने से दक्षिण भारत में स्थिरता को खतरा पैदा हो गया. वार्ता विफल रही और उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में भारत सरकार ने हैदराबाद को भारतीय नियंत्रण में लाने के लिए एक त्वरित सैन्य कार्रवाई ऑपरेशन पोलो को हरी झंडी दी.

निजाम की सेना ने 5 दिन में कर दिया सरेंडर
13 सितंबर, 1948 को भारतीय सेना हैदराबाद में दाखिल हुई. सिर्फ पांच दिनों की लड़ाई के बाद 17 सितंबर को निजाम उस्मान अली खान की सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया. इस कार्रवाई में सैकड़ों लोगों की जान चली गई, लेकिन इससे उस लंबे संघर्ष को टाल दिया गया जिसकी आशंका कई लोगों को थी. इसके बाद निजाम उस्मान अली खान ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर करके हैदराबाद के भारत में विलय को स्वीकार कर लिया.

हैदराबाद में भारतीय सेना की कार्रवाई में सबसे ज्यादा हैदराबाद के रजाकर मारे गए, जो वहां पुलिस का एक अंग थे.(फाइल फोटो)

क्षेत्रफल में इंग्लैंड से भी बड़ी थी रियासत
हैदराबाद रियासत क्षेत्रफल के लिहाज से इंग्लैंड और स्काटलैंड से ज्यादा बड़ी थी. अंग्रेजों के दिनों में भी हैदराबाद की अपनी सेना, रेल सेवा और डाक तार विभाग हुआ करता था. आबादी और सकल राष्ट्रीय उत्पाद की दृष्टि से हैदराबाद भारत का सबसे बड़ा राजघराना था. क्षेत्रफल था 82697 वर्ग मील. निजाम बिल्कुल नहीं चाहते थे कि वो भारत में अपनी रियासत का विलय करें. उन्होंने पाकिस्तान के कायदेआजम जिन्ना को काफी मोटी रकम इस बात के लिए दी थी कि वो हैदराबाद को भारत में नहीं देने को लेकर मदद करेंगे. जिन्ना ने भरपूर आश्वासन भी दिया. निजाम के रिश्ते कई और देशों से भी थे. सबसे बड़ी बात निजाम की शादी तुर्की के आखिरी खलीफा की बेटी से हुई थी. उन्हें ‘टाइम’ मैगजीन ने दुनिया का सबसे धनी शख्स भी आंका था.

पटेल चाहते थे किसी भी सूरत में विलय
प्रधानमंत्री नेहरू और माउंटबेटन चाहते थे कि पूरे मसले का हल शांतिपूर्ण ढंग से किया जाए. सरदार पटेल सहमत नहीं थे. उनका मानना था कि उस समय का हैदराबाद ‘भारत के पेट में कैंसर के समान था’, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. पटेल को अंदाज़ा था कि हैदराबाद पूरी तरह से पाकिस्तान के कहने में था. यहां तक कि पाकिस्तान पुर्तगाल के साथ हैदराबाद का समझौता कराने की फिऱाक़ में था, जिसके बाद वो गोवा में अपने लिए बंदरगाह बनवाना चाहता था.

राष्ट्रमंडल का सदस्य बनने की भी इच्छा थी 
और तो और हैदराबाद के निजाम ने राष्ट्रमंडल का सदस्य बनने की भी इच्छा जाहिर की थी, जिसे एटली सरकार ने ठुकरा दिया. निज़ाम के सेनाध्यक्ष मेजर जनरल एल एदरूस ने अपनी किताब ”हैदराबाद ऑफ़ द सेवेन लोव्स” में लिखा है कि निज़ाम ने उन्हें ख़ुद हथियार खऱीदने यूरोप भेजा था. वह अपने मिशन में सफल नहीं हो पाए थे.

हैदराबाद आजादी से पहले भारत की अकेली ऐसी रियासत थी, जिसके पास पुलिस, सेना और डाक सेवाएं थीं. (फाइल फोटो)

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करियप्पा ने दिया था पटेल को ये जवाब
एक समय जब निजाम को लगा कि भारत हैदराबाद के विलय के लिए दृढ़संकल्प है तो उन्होंने ये पेशकश भी की कि हैदराबाद को एक स्वायत्त राज्य रखते हुए विदेशी मामलों, रक्षा और संचार की जिम्मेदारी भारत को सौंप दी जाए. पटेल हैदराबाद पर सैन्य कार्रवाई के पक्ष में थे. उसी दौरान पटेल ने जनरल केएम करियप्पा को बुलाकर पूछा कि अगर हैदराबाद के मसले पर पाकिस्तान की तरफ़ से कोई सैनिक प्रतिक्रिया आती है तो क्या वह बिना किसी अतिरिक्त मदद के उन हालात से निपट पाएंगे? करियप्पा ने इसका एक शब्द का जवाब दिया- हां… और इसके बाद बैठक खत्म हो गई.

दो बार रद्द हुई सेना की कार्रवाई
इसके बाद सरदार पटेल ने हैदराबाद के खिलाफ सैनिक कार्रवाई को अंतिम रूप दिया. भारत के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल रॉबर्ट बूचर इस फेसले के खिलाफ थे. उनका कहना था कि पाकिस्तान की सेना इसके जवाब में अहमदाबाद या बंबई पर बम गिरा सकती है. दो बार भारतीय सेना की हैदराबाद में घुसने की तारीख तय की गई लेकिन लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते इसे रद्द करना पड़ा. निजाम ने गवर्नर जनरल राजगोपालाचारी से व्यक्तिगत अनुरोध किया कि वे ऐसा न करें.

पटेल ने गुप्त योजना बनाई
इसी बीच पटेल ने गुप्त तरीके से योजना को अंजाम देते हुए भारतीय सेना को हैदराबाद भेज दिया. जब नेहरू और राजगोपालाचारी को भारतीय सेना के हैदराबाद में प्रवेश कर जाने की सूचना दी गई तो वो चिंतित हो गए. पटेल ने घोषणा की कि भारतीय सेना हैदराबाद में घुस चुकी है. इसे रोकने के लिए अब कुछ नहीं किया जा सकता. दरअसल नेहरू की चिंता ये थी कि कहीं पाकिस्तान कोई जवाबी कार्रवाई न कर बैठे.

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ऑपरेशन पोलो को दिया अंजाम
भारतीय सेना की इस कार्रवाई को ‘ऑपरेशन पोलो’ का नाम दिया गया क्योंकि उस समय हैदराबाद में विश्व में सबसे ज्यादा 17 पोलो के मैदान थे. पाकिस्तान भी चुपचाप नहीं बैठा. जैसे ही भारतीय सेना हैदराबाद में घुसी, पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने डिफ़ेंस काउंसिल की मीटिंग बुलाई. उनसे पूछा कि क्या हैदराबाद में पाकिस्तान कोई ऐक्शन ले सकता है? बैठक में मौजूद ग्रुप कैप्टन एलवर्दी (जो बाद में एयर चीफ मार्शल और ब्रिटेन के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बने) ने कहा ‘नहीं.’ लियाकत ने जोर देकर पूछा ‘क्या हम दिल्ली पर बम नहीं गिरा सकते हैं?’ एलवर्दी का जवाब था कि हां, ये संभव तो है लेकिन पाकिस्तान के पास कुल चार बमवर्षक हैं, जिनमें से सिर्फ दो काम कर रहे हैं. इनमें से एक शायद दिल्ली तक पहुंच कर बम गिरा भी दे लेकिन इनमें कोई वापस नहीं आ पाएगा.

पांच दिन चली कार्रवाई
भारतीय सेना की कार्रवाई हैदराबाद में पांच दिनों तक चली, इसमें 1373 रजाकार मारे गए. हैदराबाद स्टेट के 807 जवान भी मारे गए. भारतीय सेना ने 66 जवान खोए जबकि 96 जवान घायल हुए. भारतीय सेना की कार्रवाई शुरू होने से दो दिन पहले ही 11 सितंबर 1948 को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का निधन हो गया था.

पाक ने संयुक्त राष्ट्र में मुंह की खाई
पाकिस्तान ने फिर इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में उठाने की कोशिश की, वो इसमें कामयाब भी हुआ. उस समय आठ सदस्यों ने वोट दिया कि इस पर विचार किया जाये. सोवियत संघ, चीन और यूक्रेन ने तटस्थ रहकर एक तरह से भारत का साथ दिया. अगर ये मामला संयुक्त राष्ट्र संघ में उठता तो पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय तौर पर काफी फायदा मिल सकता था. संयुक्त राष्ट्र में मामले पर विचार के लिए 17 सितंबर 1948 की तारीख तय की गई. इससे एक दिन पहले ही हैदराबाद के निजाम उस्मान अली खान ने आत्मसमर्पण कर दिया. पाकिस्तान और उसके समर्थकों का चेहरा फीका पड़ गया. रही-सही कसर भारतीय प्रतिनिधियों के बैठक में नहीं आने से पूरी हो गई. यानी पूरा मामला ही खत्म हो गया.

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Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

September 17, 2025, 15:34 IST

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