क्या था त्रावणकोर का बदनाम ब्रेस्ट टैक्स, स्तन ढंकने के लिए देना होता था कर

1 week ago

त्रावणकोर में एक जमाने में कई तरह के ऐसे टैक्स थे जो बहुत बदनाम थे. ब्रेसट टैक्स को वहां की भाषा में मुलक्करम कहते थे तो सिर पर टैक्स को तालक्करम और मूंछ का टैक्स मीशाकरम कहलाता था. इन्हें लेकर कई तरह की कहानियां हैं. आमतौर पर ये सारे टैक्स निचली जाति के लोगों पर त्रावणकोर में अंग्रेजी राज से पहले तक लगते थे. इन्हें हटाने का श्रेय काफी हद तक ब्रिटिश राज को राजा है.

भारत की आजादी से पहले त्रावणकोर एक संपन्न रियासत थी. अब ये केरल राज्य का हिस्सा है. 19वीं शताब्दी में इस रियासत में ऊंची और निचली जातियों के बीच बड़ी खाई थी. ये खाई पट ना पाए, लिहाजा इसे लेकर ऐसे ऐसे टैक्स लगाए गए थे, जो विचित्र भी थे और अमानवीय भी. ऐसा ही एक टैक्स था ब्रेस्ट टैक्स, जिसे मुलक्करम कहते थे.

ये टैक्स निचली जाति की महिलाओं पर लगता था

यह टैक्स निचली जातियों की महिलाओं, खासकर एझावा और नादर समुदायों की महिलाओं पर लगाया जाता था, अगर वे अपने स्तनों को ढकना चाहतीं. ऊपरी जातियों की महिलाएं जैसे नायर अपने स्तनों को ढक सकती थीं. निचली जाति की महिलाएं अगर ऐसा करतीं तो ये उनके लिए विलासिता समझा जाता था, इसके लिए उन्हें टैक्स देना होता था.

असल में इस टैक्स का उद्देश्य जातीय स्थितियों को बनाए रखना था. जहां निचली जातियां दमित रहें. इस टैक्स की शुरुआत कैसे हुई, इसका सटीक इतिहास थोड़ा धुंधला है, लेकिन यह 18वीं शताब्दी के अंत या 19वीं शताब्दी की शुरुआत में त्रावणकोर के राजाओं द्वारा लागू किया गया माना जाता है. त्रावणकोर में कुल 110 से ज्यादा प्रकार के टैक्स थे, जिनमें मूंछ टैक्स (पुरुषों पर), नेट टैक्स (मछुआरों पर) और आभूषण टैक्स शामिल थे.

इसे लागू करने का तरीका क्रूर था

ब्रेस्ट टैक्स को लागू करने का तरीका बेहद क्रूर था. एक अधिकृत अधिकारी, जिसे ‘परवतियार’ कहा जाता था, वो महिलाओं के घरों पर जाता था. वहां वह हर घर जाकर इस टैक्स को तय करता था. अगर महिला टैक्स नहीं देती, तो उसे सार्वजनिक रूप से स्तनों को खुला रखना पड़ता था. विरोध करने पर हिंसा या दंड का सामना करना पड़ता.

यह टैक्स मुख्य रूप से 1800 से 1859 तक सख्ती से लागू रहा. हालांकि कुछ स्रोतों में इसे 1924 तक जारी बताया गया है. त्रावणकोर के राजा श्रीमूलम थिरुनाल के शासनकाल में यह चरम पर था.

इसे लेकर भड़का था चन्नार विद्रोह

चन्नार विद्रोह, जिसे ‘मारु मारक्कल समरम’ भी कहा जाता है, इस अत्याचार का प्रत्यक्ष उदाहरण है. 1813 से शुरू हुए इस विद्रोह में नादर महिलाओं ने स्तनों को ढकने का अधिकार मांगा. 1822 में दंगे भड़क उठे, जहां नायर पुरुषों ने नादर महिलाओं के कपड़े फाड़ दिए, उन्हें पीटा और कई मामलों में यौन उत्पीड़न किया.

नगेली नाम की महिला ने विरोध में क्या किया

ब्रिटिश मिशनरियों के हस्तक्षेप से 1829 में एक आदेश पारित हुआ, जिसने ईसाई नादर महिलाओं को ब्लाउज पहनने की अनुमति दी, लेकिन नायर महिलाओं जैसा नहीं. फिर भी हिंसा जारी रही. इस अंधेरे दौर की सबसे चर्चित घटना नंगेली नाम की महिला की है, एझावा जाति की ये महिला जो चेरथला गांव में रहती थी. अपने पति चिरुकंदन के साथ गरीबी में जीवन बिताती थी. एक दिन जब परवतियार उसके घर पहुंचा और टैक्स मांगा, तो नंगेली ने विरोध किया.

कहा जाता है कि इसके विरोध में उसने अपना स्तन काट दिया. इससे वह मर गई. उसके पति चिरुकंदन ने दर्द सहन न कर पाकर उसकी चिता में कूदकर आत्मदाह कर लिया. इस घटना ने पूरे राज्य को हिला दिया.नंगेली की मौत के बाद विरोध प्रदर्शन भड़क उठे, जिससे राजा को मजबूरन टैक्स हटाना पड़ा.

कुछ इतिहासकार इस टैक्स को मनगढ़ंत बताते हैं

हालांकि कुछ इतिहासकार और इस टैक्स को फिक्शनल बताते हैं. उनका कहना है कि यह कहानी 2007 में सी. राधाकृष्णन द्वारा एक लोक परंपरा पर आधारित उपन्यास में पहली बार आई, जिसमें कोई ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं था. कुछ तथ्य ये भी कहते हैं कि त्रावणकोर में निचली जाति की महिलाओं को एक टैक्स देना पड़ता था लेकिन इसका लेना देना ब्रेस्ट से नहीं था. हालांकि बीबीसी और द हिंदू जैसे स्रोत इसे ऐतिहासिक मानते हैं, लेकिन प्रमाण की कमी से इसे मिथक कहा जाता है. हालांकि कुछ इतिहासकार कहते हैं कि केरल की जलवायु में उस समय स्तन ढंकने का रिवाज ही नहीं था.

मद्रास से निकले पहले समाचार पत्र मद्रास कूरियर की वेबसाइट मद्रास कूरियर का कहना है, स्तन कर वसूलने् की प्रथा तब शुरू होती थी जब युवा लड़कियों के स्तन विकसित होने लगते थे. वो उन्हें ढंकने की इच्छा जाहिर करती थीं. कहा जाता है कि टैक्स की राशि महिला के स्तनों के आकार के आधार पर तय की जाती थी. इसमें स्तन को एक अधिकारी नापता था, जो गरिमा और व्यक्तित्व पर आघात था. हालांकि अगर महिलाएं अपने स्तनों को ढंकना नहीं चाहती थीं तो उन पर कोई टैक्स नहीं लगाया जाता था.

चन्नार विद्रोह ने खत्म कराया ये बदनाम टैक्स 

चन्नार विद्रोह, जिसे ‘मारु मारक्कल समरम’ भी कहा जाता है, इस अत्याचार का प्रत्यक्ष उदाहरण है. 1813 से शुरू हुए इस विद्रोह में नादर महिलाओं ने स्तनों को ढकने का अधिकार मांगा.

1902 में केरल की एक ब्राह्मण परिवार की फोटो. (फाइल फोटो)

चन्नार विद्रोह को मरु मरक्कल समरम या चन्नार लाहला भी कहा जाता है. ये दक्षिण भारत के त्रावणकोर राज्य में 1813 से 1859 तक चला. इस आंदोलन का नेतृत्व नादर (चन्नार) जाति की महिलाओं ने किया. आंदोलन लंबे समय तक चला. शुरुआत में विरोध व दमन का सामना जरूर करना पड़ा. धीरे-धीरे बगावत तेज होती गयी; महिलाओं ने जमकर संघर्ष किया. धर्म परिवर्तन कर ईसाई बनी महिलाओं को आंशिक अधिकार मिले, लेकिन हिंदू दलित महिलाओं को वह अधिकार नहीं मिल पाया.

संघर्ष के दौरान कई बार हिंसा हुई, महिलाओं को अपमानित किया गया, कुछ जगह आगजनी भी हुई. आखिरकार जब आंदोलन और हिंसा बढ़ गई, तो त्रावणकोर के राजा को मद्रास के ब्रिटिश गवर्नर का दबाव मिला कि आंदोलन को शांत करने के लिए तत्काल कुछ किया जाए.

26 जुलाई 1859 को त्रावणकोर महाराजा अयिलम थिरुनल ने एक आधिकारिक घोषणा की, जिसमें निचली जाति की नादर/चन्नार महिलाओं को अपने स्तनों को ढंकने का अधिकार प्रदान कर दिया गया. इस तरह लगभग 46 वर्षों के संघर्ष के बाद यह आंदोलन खत्म हुआ और महिलाओं को मानवीय सम्मान मिला.

तालक्करम यानि सिर पर पगड़ी पर टैक्स

इसी तरह तालक्करम कर ये प्रावधान करता था कि ऊँची जाति के अलावा किसी भी पुरुष को “सिर पर पगड़ी” या “सिर ढकने” की अनुमति नहीं है और अगर वो ऐसा करना चाहता है तो टैक्स भरना पड़ेगा. हालांकि इसे लेकर भी मतभेद है. दस्तावेजी प्रमाण बताते हैं कि यह वस्त्र-नियम से ज़्यादा एक नियमित राजस्व वसूली थी.

मूछों पर भी लगता था टैक्स 

क्या त्रावणकोर में मूंछों पर टैक्स था. कहा जाता है कि ऐसा एक प्रतीकात्मक टैक्स था. जिसे मीशाकरम कहते थे. “मीशा” का मतलब मूंछ. बताया जाता है निचली जाति के पुरुष अगर मूंछ रखते तो यह टैक्स देना पड़ता. हालांकि कहा गया कि ये एक प्रतीकात्मक टैक्स था, जिसे पुरुषों के सामाजिक प्रतीक (जैसे मूंछ या दाढ़ी) से जोड़ा गया. मूछें उस समय आपकी हैसियत का प्रतीक मानी जाती थईं. परंपरागत तौर पर केवल उच्च जाति के पुरुष ही उन्हें खुलेआम रखते थे.

कथाओं में कहा जाता है कि निचली जाति का कोई आदमी अगर मूंछ रख लेता, तो यह “अवज्ञा” मानी जाती और उस पर जुर्माना या टैक्स लगाया जाता. एक लोककथा कहती है कि एक निचली जाति के युवक ने अपनी मूंछें रख लीं. टैक्स देने से इनकार किया. इसके चलते गांव में विद्रोह हुआ. बाद में शासन को टैक्स हटाना पड़ा.

सोर्स
हिस्ट्रीन: द अनस्पोकेन स्टोरी ऑफ इंडिया’स ह्यूमिलिएटिंग ब्रेस्ट टैक्स
स्टोरीवाइब: द फॉरगॉटेन स्ट्रगल: अंडरस्टैंडिंग द ब्रेस्ट टैक्स इन इंडिया
द लिगल यंग्स्टर: द ब्रेस्ट टैक्स: हिस्टोरिकल इनजस्टिस एंड लीगल पर्सपेक्टिव्स
द टैक्स हेवन: द हिस्ट्री ऑफ द ब्रेस्ट टैक्स इन इंडिया
ग्राउंड रिपोर्ट: मुलक्करम टैक्स फॉर ब्रेस्ट
https://madrascourier.com/insight/when-women-paid-tax-to-cover-their-breasts/
https://www.thehindu.com/news/cities/Kochi/200-years-on-nangelis-sacrifice-only-a-fading-memory/article5255026.ece
https://www.thehindu.com/society/history-and-culture/the-woman-who-cut-off-her-breasts/article17324549.ece
https://www.bbc.com/ The woman who cut off her breasts to protest a tax
क्या था त्रावणकोर का बदनाम ब्रेस्ट टैक्स, स्तन ढंकने पर होता था कर, इसी तरह मूंछों पर लगता था पैसा

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