क्या ब्रह्मोस से सेकेंडों में तबाह हो सकता था पाकिस्तान का PMO, आर्मी मुख्यालय

12 hours ago

भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिनों तक चली सैन्य झड़प के दौरान दोनों देशों के बीच हाईटेंशन था. आधी सदी में पहली बार भारत और पाकिस्तान के बीच बहुत तेज सैन्य झड़प हुई. पाकिस्तान को बुरी तरह डरा गया. जिस दिन भारत ने रावलपिंडी के नूर खान एयरबेस को ब्रह्मोस की सटीक से तबाह किया, उसी दिन पाकिस्तान के होश फाख्ता हो गये. क्योंकि भारत ने ऐसे ही कुछ सटीक ब्रह्मोस हमले पाकिस्तान में कुछ और एयरबेस पर किए थे. ये सुपर सॉनिक एय़रक्रूज मिसाइल सटीक टारगेट पर गई. होश इसलिए उड़े क्योंकि उसको अंदाज हो गया कि उसका सबकुछ भारत के रहमोकरम पर है. प्राइम मिनिस्टर आफिस से लेकर सैन्य मुख्यालय तक.

इसके बाद ही पाकिस्तान घुटनों पर आ गया. हां ये बिल्कुल सही बात है कि भारत ने पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम को तबाह करते हुए जिस तरह सटीक तरीके से ब्रह्मोस दागे थे, उससे ये पाकिस्तान के हुक्मरानों और सेना दोनों को समझ में आ गया कि वो केवल भारत के रहमोकरम पर हैं. अगर भारत ने चाह लिया तो मिनटों में एक साथ उसके सारे महत्वपूर्ण स्थानों को तबाह कर सकता है.

एक साथ तबाह हो जाते अहम ठिकाने

ये बात सही है कि भारत अगर चाहता तो ब्रह्मोस मिसाइल और दूसरी मिसाइलों के सटीक प्रहार से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री आफिस को बर्बाद कर देता. आर्मी हेडक्वार्टर को भी. हालांकि ना तो उसको ये करना था और ना ही उसने किया.

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ब्रह्मोस से 300 किमी दूर तक के हमले सेकेंडों में तो होते ही हैं साथ ही एकदम सटीक ( News18 AI)

हमले सीमित और सटीक थे

न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, सैटेलाइट इमेजरी बताते हैं कि भारत के मिसाइल अटैक व्यापक थे. ऐसा लगता है कि ज़्यादातर हमले भारत ने पाकिस्तानी ठिकानों पर किए. हमलों से पहले और बाद की उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली उपग्रह छवियों से पता चलता है कि भारतीय हमलों से पाकिस्तान की सुविधाओं को स्पष्ट नुकसान पहुंचा है. ये हमले सीमित और सटीक प्रकृति के थे.

नूर खान एयर बेस से पाक पीएमओ और आर्मी मुख्यालय की दूरी

नूर खान वायुसैन्य अड्डा, पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय और देश के प्रधानमंत्री के कार्यालय से लगभग 10-15 मील की दूरी पर है. इसी एयरपोर्ट से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति के विमान उड़ते हैं. यहीं से पाकिस्तानी सेना का प्रमुख दूसरी जगहों पर आता-जाता है. पाकिस्तान के परमाणु शस्त्रागार की देखरेख और सुरक्षा करने वाली इकाई भी इससे कुछ ही दूरी पर है. शायद ये सबसे संवेदनशील सैन्य लक्ष्य था, जिस पर भारत ने हमला किया.

पाकिस्तान का नूर खान एयरबेस देखते ही देखते ब्रह्मोस मिसाइल से तबाह हो गया. उसकी सैटेलाइट तस्वीर

ब्रह्मोस से इतनी सटीक मार का लोहा दुनिया ने माना

भारत ने जिस सटीकता के साथ ब्रह्मोस मिसाइल का टारगेट हासिल किया, वो वाकई दुनिया के लिए एक चौंकाने वाली बात थी. इसे पिन-पॉइंट सटीकता कहा जा रहा है. आइए अब समझते हैं कि भारत कैसे ये काम बहुत आसानी से कर सकता था. लेकिन उसने इससे परहेज किया.

पाकिस्तान के आर्मी चीफ का आफिस, निवास, आईसीसी हेडक्वार्टर, स्ट्रैटजिक फोर्सेज़ और न्यूक्लियर लॉन्च कमांड नूर एयरबेस से मुश्किल 8-9 किमी दूर है. तो तकनीकी तौर पर भारत ब्रह्मोस के जरिए 100% इन्हें तबाह कर सकता था. भारत की ब्रह्मोस दागने की सटीकता 1-5 मीटर तक है. ये मिसाइल केवल सटीक बिल्डिंग ही नहीं बल्कि कमरे तक जाकर पिन-पॉइंट हिट कर सकता है.

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ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल कैसे छोड़ी जाती है और फिर ये कैसे सटीक तरीके से टारगेट पर टकराती है. (News18 AI)

कैसे ये टारगेट पर पहुंचती है

ये सुपरसोनिक स्पीड के साथ नीची रहती हुई बढ़ती है. इसकी स्पीड मैच 3 होती है. इस स्पीड पर ये दुश्मन के रडार और एयर डिफेंस को चकमा देकर टारगेट तक जाती है. ब्रह्मोस रावलपिंडी के आर्मी हेडक्वार्टर तक 20-30 सेकंड में पहुंच सकती थी.

आखिरी 10-15 किमी में ब्रह्मोस अपने अंदर लगे एक्टिव रडार सीकर से आर्मी हेडक्वार्टर की लोकेशन लॉक करके एंगल करेक्शन करती. बिल्डिंग की छत या स्ट्रक्चर पर सीधा हिट करती. भारत चाहे तो 3-4 ब्रह्मोस एक साथ फायर करके इसके सभी स्ट्रैटजिक विंग्स को केवल 1 मिनट में तबाह कर सकता था. लेकिन उसने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वो पाकिस्तान से ना तो युद्ध चाहता है ना ही उसको तबाह करना.

भारत के पास फिलहाल कौन सी खतरनाक मिसाइलें

फिलहाल भारत के पास ब्रह्मोस-ER (800 किमी), ब्रह्मोस-NG (300 किमी, फाइटर जेट से लॉन्च), पृथ्वी-III, अग्नि-IV, हाइपरसोनिक BrahMos-II (विकसित होने के दौर में) जैसी मिसाइलें हैं, जो GHQ, नूर खान एयरबेस, पीएम हाउस तीनों को एक साथ टारगेट कर सकती हैं. वो भी इस सटीकता से कि कोई एडवांस वॉर्निंग सिस्टम काम न कर सके.

ये सटीकता कैसे हासिल हुई?

ब्रह्मोस में Inertial Navigation System और सैटेलाइट नेविगेशन (GPS + भारत का NavIC और रूसी GLONASS) का हाइब्रिड सिस्टम लगा है. इससे रियल टाइम में हर सेकंड अपनी लोकेशन अपडेट करती है. अगर कोई बाधा आती है तो सॉफ्टवेयर खुद उसे करेक्ट कर देता है. लांच से पहले ही इसका फ्लाइट पैटर्न, अल्टीट्यूड, स्पीड और एंट्री एंगल प्रोग्राम किया जाता है. ये इतनी सटीक है कि अगर इसका टारगेट 300 किमी दूर कोई टेबल है तो ब्रह्मोस ठीक उसी पर गिरेगी.

नई मिसाइलें (जैसे ब्रह्मोस, अग्नि-5, पृथ्वी-3) टारगेट के पास जाते वक्त अपने सेंसर या रडार से आखिरी क्षणों में खुद को एडजस्ट करती है. इसे टर्मिनल गाइडेंस कहते हैं. इससे सटीकता काफी बढ़ जाती है. नई मिसाइलों में AI-बेस्ड टारगेट ट्रैकिंग और वेपॉन्स कंट्रोल सॉफ्टवेयर लगा है, जो हवा, मौसम और टारगेट मूवमेंट के अनुसार रूट को ऑन द फ्लाई बदल सकता है.

कहां होती है इनकी लाइव टेस्टिंग

भारत ने डेजर्ट रेंज, ओडिशा के एपीजे अब्दुल कलाम आइलैंड और अंडमान-निकोबार में ऐसे रेंज बनाए हैं, जहां हाई-प्रिसिजन स्ट्राइक का लाइव टेस्टिंग होता है. रियल टाइम डाटा एनालिसिस से हर अगली मिसाइल और बेहतर होती है.

सुपरसोनिक के बाद अब हाइपरसोनिक मिसाइल

ब्रह्मोस मिसाइल सुपरसोनिक है (Mach 3+ स्पीड). भारत अब हाइपरसोनिक (Mach 5+) मिसाइल बना रहा है. स्पीड ज़्यादा होने से दुश्मन का रिएक्शन टाइम घटता है और सटीकता बढ़ती है.

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