इन दिनों संसद का मानसून सत्र चल रहा है. सालभर में संसद में तीन कामकाजी सत्र होते हैं. जब भी संसद में सेशन चल रहा होता है तब उसका खर्च बढ़ जाता है. क्या आपको मालूम है कि ये खर्च क्यों बढ़ता है. एक घंटे और एक दिन की कार्यवाही का खर्च क्या होता है. जब संसद में सत्र नहीं चल रहा होता तो यहां क्या होता है.
भारत में फरवरी से मई तक बजट सत्र, जुलाई से अगस्त-सितंबर तक मानसून सत्र और नवंबर-दिसंबर में शीतकालीन सत्र चलता है. हालांकि इसके अलावा विशेष सत्र भी जरूरी या संकटकालीन मुद्दों पर बुलाए जा सकते हैं.
जब भी संसद का सत्र चल रहा होता है तब संसद का खर्च काफी बढ़ जाता है. आखिर ऐसा क्या होता है कि जब भी संसद में सत्र के दौरान खर्च बढ़ जाते हैं. क्या इसमें अतिरिक्त खर्च और व्यवस्थाएं होती हैं. वो किस तरह की होती हैं
संसद सत्र के दौरान, सांसदों के वेतन, भत्ते, यात्रा खर्च, संसद भवन का रखरखाव, कर्मचारियों की तनख्वाह, सुरक्षा व्यवस्था, बिजली, पानी, तकनीकी उपकरण, और अन्य प्रशासनिक खर्च शामिल होते हैं. संसद भवन में एयर कंडीशनिंग, लाइव प्रसारण और अन्य सुविधाओं पर प्रति घंटे लाखों रुपये खर्च होते हैं. संसद सत्र में सैकड़ों सांसद, कर्मचारी और अन्य अधिकारी शामिल होते हैं. इन सभी के समय और संसाधन का इस्तेमाल होता है. यदि कार्यवाही बाधित होती है, तो यह समय और संसाधन व्यर्थ चले जाते हैं, जबकि लागत बनी रहती है.
विभिन्न रिपोर्ट्स के अनुसार, संसद के एक घंटे की कार्यवाही पर करीब 2.5 से 3 करोड़ रुपये का खर्च आता है. यह राशि सत्र की अवधि, सुविधाओं, और अन्य कारकों पर निर्भर करती है.
संसद का मानसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ता दिख रहा है.
अतिरिक्त कर्मचारियों की नियुक्ति
संसद सत्रों के दौरान सचिवालय, सुरक्षा, तकनीकी सहायता और अन्य सेवाओं के लिए अतिरिक्त कर्मचारी नियुक्त किए जाते हैं. इनमें अनुवादक, स्टेनोग्राफर, तकनीशियन, सफाई कर्मचारी और अतिरिक्त सुरक्षा कर्मी शामिल हो सकते हैं.
संसद टीवी और मीडिया: संसद की कार्यवाही के लाइव प्रसारण और रिकॉर्डिंग के लिए संसद टीवी के कर्मचारी, कैमरामैन, और तकनीकी स्टाफ की संख्या बढ़ाई जाती है.
सुरक्षा व्यवस्था
सत्र के दौरान संसद भवन की सुरक्षा के लिए केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) और अन्य एजेंसियों के अतिरिक्त जवान तैनात किए जाते हैं. विशेष रूप से सत्र शुरू होने से पहले और उस दौरान परिसर की गहन जांच के लिए अतिरिक्त कर्मचारी लगाए जाते हैं.
सांसदों का भत्ता
सत्र के दौरान सांसदों को दैनिक भत्ता और यात्रा भत्ता दिया जाता है. देशभर से सांसदों के दिल्ली आने-जाने, ठहरने, और अन्य सुविधाओं पर खर्च बढ़ता है.
एक घंटे का खर्च
अनुमानों के अनुसार, संसद के एक मिनट की कार्यवाही पर लगभग 2.5 से 3 लाख रुपये का खर्च आता है. एक घंटे की लागत 1.5 से 2 करोड़ रुपये तक हो सकती है. 2016 में एक RTI के जवाब में बताया गया था कि लोकसभा की कार्यवाही का औसत खर्च प्रति मिनट लगभग 2.3 लाख रुपये था। सत्र की अवधि और कर्मचारियों की संख्या के आधार पर यह लागत बदल सकती है.
1950 के दशक में खर्च
1950 में भारत का संविधान लागू हुआ और संसद (लोकसभा और राज्यसभा) ने औपचारिक रूप से काम शुरू किया. इस दशक में संसद सत्रों की संख्या और अवधि अधिक थी. लोकसभा औसतन प्रति वर्ष 127 दिन और राज्यसभा 93 दिन बैठती थी.
उस समय भारत की अर्थव्यवस्था नवजात थी. संसाधन सीमित थे. खर्च आज की तुलना में काफी कम था. 1950 के दशक में एक सांसद का मासिक वेतन लगभग 400-500 रुपये था. यात्रा भत्ते न्यूनतम थे संसद भवन के रखरखाव और कर्मचारियों की लागत भी सीमित थी.
1960 के दशक में खर्च
इस दशक में संसद सत्रों की संख्या और अवधि में कुछ कमी आई, लेकिन फिर भी संसद औसतन 100-120 दिन प्रति वर्ष बैठती थी. 1960 के दशक में भारत ने कई युद्ध देखे, जिसके कारण विशेष सत्र भी बुलाए गए.
खर्च में वृद्धि हुई, क्योंकि सांसदों की संख्या बढ़ी लोकसभा में सीटें 489 से बढ़कर 520 हो गईं. सत्रों के दौरान दस्तावेजों की छपाई, अनुवाद और सुरक्षा व्यवस्था पर खर्च बढ़ा.
कुछ अनुमानों के अनुसार इस दशक में संसद के एक सत्र का खर्च कुछ लाख रुपये से लेकर 1-2 करोड़ रुपये तक हो सकता था. 1960 के दशक में एक सांसद का दैनिक भत्ता और यात्रा खर्च बढ़कर 20-50 रुपये प्रतिदिन हो गया था.
1970 के दशक में खर्च
1970 के दशक में संसद सत्रों की अवधि और बैठकों की संख्या में और कमी आई. इस दशक में सांसदों के वेतन और भत्ते बढ़े. संसद भवन में आधुनिकीकरण शुरू हुआ. बेहतर बैठने की व्यवस्था, माइक्रोफोन सिस्टम शुरू हुआ.
1970 के दशक में एक सत्र का खर्च संभवतः 2-5 करोड़ रुपये के बीच रहा होगा. 1970 के दशक में सांसदों का वेतन और भत्ते बढ़कर 1000-1500 रुपये मासिक और दैनिक भत्ते 50-100 रुपये तक हो गए थे.
वर्तमान संसद सत्र का खर्च
– हर मिनट खर्च: लगभग ₹2.5 लाख
– हर घंटे खर्च: लगभग ₹1.5 करोड़
– पूरे दिन (6-7 घंटे) का खर्च: लगभग ₹9 करोड़ तक
जब सत्र नहीं होता तब क्या होता है संसद में
जब भारतीय संसद का सत्र नहीं होता, तब भी संसद भवन और परिसर पूरी तरह बंद नहीं होता, बल्कि यहां प्रशासनिक काम, रखरखाव और दूसरी गतिविधियां चलती रहती हैं.
प्रशासनिक काम – संसद सचिवालय (लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय) पूरे वर्ष सक्रिय रहता है. ये सचिवालय सत्र की तैयारी, विधायी दस्तावेजों का प्रबंधन, और संसदीय समितियों के कामों का समन्वय करते हैं. सांसदों के लिए प्रशासनिक सहायता का काम भी चलता रहता है. संसद के कर्मचारी, जैसे क्लर्क, अनुवादक और अन्य स्टाफ, सत्र के दस्तावेजों को संकलित करने, रिकॉर्ड अपडेट करने और अगले सत्र की योजना बनाने में व्यस्त रहते हैं.
संसदीय समितियों की बैठकें- संसद में विभिन्न स्थायी समितियां (जैसे वित्त समिति, रक्षा समिति, सार्वजनिक उपक्रम समिति) और विभागीय समितियां होती हैं, जो सत्र न होने पर भी नियमित रूप से बैठकें करती हैं. अपनी रिपोर्ट तैयार करती हैं, जो बाद में संसद में प्रस्तुत की जाती हैं.
रखरखाव और सुरक्षा- संसद भवन एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण इमारत है, जिसके रखरखाव का काम लगातार चलता है. इसमें भवन की मरम्मत, सफाई, बागवानी, और तकनीकी उपकरणों (जैसे ऑडियो-वीडियो सिस्टम) का अपडेट शामिल होता है. सुरक्षा व्यवस्था सत्र न होने पर भी सख्त रहती है.
शोध और दस्तावेजीकरण- संसद पुस्तकालय और संदर्भ, शोध, दस्तावेजीकरण और सूचना सेवा (लार्डिस) सत्र न होने पर भी सक्रिय रहती है. यह सांसदों, शोधकर्ताओं, और नीति निर्माताओं के लिए जानकारी और शोध सामग्री तैयार करती है.
सांसदों की गतिविधियां- कई सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों के मुद्दों को उठाने के लिए सचिवालय के साथ संपर्क में रहते हैं. वे संसद पुस्तकालय या अन्य संसाधनों का उपयोग भी कर सकते हैं.