गांव में बैल रेस! 50 KM से ज्यादा रफ्तार और हाथ में डंडा, ये कौन सा उत्सव है?

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Last Updated:April 22, 2025, 16:08 IST

Mehsana Hathiya Thathu Mahotsav: महेसाणा के वालम गांव में 600 साल पुराना हाथिया ठाठू महोत्सव मनाया जाता है, जिसमें बैलों की दौड़ होती है. पाटीदार समाज इस महोत्सव का आयोजन करता है, जो पहले नागर ब्राह्मण करते थे.

गांव में बैल रेस! 50 KM से ज्यादा रफ्तार और हाथ में डंडा, ये कौन सा उत्सव है?

महेसाणा के वालम गांव का हाथिया ठाठू महोत्सव का इतिहास

हाइलाइट्स

महेसाणा के वालम गांव में 600 साल पुराना हाथिया ठाठू महोत्सव मनाया जाता है.इस महोत्सव में बैलों की दौड़ होती है, जिसमें 32 बैल शामिल होते हैं.पाटीदार समाज अब इस महोत्सव का आयोजन करता है.

महेसाणा: गुजरात के महेसाणा के वालम गांव में हाथिया ठाठू महोत्सव का इतिहास बहुत पुराना है. वालम गांव में पल्लवी माताजी और सुलेश्वरी माता के दो मंदिर हैं, जहां सालों पहले पल्लवी माताजी के मंदिर में दरबार राजा के वंशज हाथी लेकर दर्शन करने आते थे. बाद में नागर ब्राह्मण इस महोत्सव का आयोजन करते थे और अब पाटीदार समाज के लोग इस महोत्सव का आयोजन करते हैं. सात दिन चलने वाले इस महोत्सव में शुकन देखना भी एक महत्वपूर्ण घटना है.

लोकल 18 से बात करते हुए वालम गांव के निवासी जयंतिभाई पटेल ने बताया कि वालम की पल्लवी माता ने चैत्र मास में हाथी लेकर जुलूस निकालकर दर्शन करने आते थे और तभी से यह उत्सव शुरू हुआ है. शुरुआत में नागर ब्राह्मण इस उत्सव का आयोजन करते थे, लेकिन अब पाटीदार समाज के लोग इस उत्सव का आयोजन करते हैं, जिसमें कुल 32 बैल दो दिनों में शामिल होते हैं.

हाथिया ठाठू एक पुराना पारंपरिक महोत्सव है
गांव के कनुभाई पटेल बताते हैं कि वालम का हाथिया ठाठू एक पुराना पारंपरिक महोत्सव है. सालों पहले राजाओं द्वारा शुरू किया गया यह महोत्सव बाद में ब्राह्मणों ने आगे बढ़ाया. बाद में, ब्राह्मण नौकरी-धंधे में व्यस्त हो गए और उनके घरों की संख्या कम हो गई, पिछले कई सालों से पटेल परिवार इस महोत्सव को बनाए रख रहे हैं.

वालम गांव में मनाए जाने वाले हाथिया ठाठू महोत्सव की अनोखी तरह से मनाई जाती है. दो बैल गाड़ियों को तैयार किया जाता है, जिसमें एक को “हाथिया” और दूसरे को “ठाठू” कहा जाता है. चार बैलों के साथ दो हाथिया ठाठू, खुले बैलों के साथ गाड़ियों को गांव में दौड़ाया जाता है. बैलों की दौड़ प्रतियोगिता होती है, जिसमें गांव के युवा गाड़ी के आगे हाथ में डंडा और लकड़ी लेकर दौड़ते हैं. युवाओं की चिल्लाहट से गांव का माहौल गूंज उठता है.

चैत्र वद पांचम से यह मेला शुरू होता
वालम गांव के निवासी पोपटभाई पटेल बताते हैं कि चैत्र वद पांचम से यह मेला शुरू होता है और अगियारस तक चलता है, जिसमें दो दिनों में 32 बैल शामिल होते हैं. इस सांस रोक देने वाले महोत्सव को बड़ी संख्या में लोग देखने आते हैं, लाखों की संख्या में लोग इसमें शामिल होते हैं. विदेश में रहने वाले गांववासी भी अंतिम दो दिनों में इस महोत्सव को देखने और माताजी का आशीर्वाद लेने आते हैं.

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वालम गांव की टेढ़ी-मेढ़ी और संकरी गलियों में सामान्य गाड़ी चलाना मुश्किल है, तब इस महोत्सव में 50 से 60 किमी की रफ्तार से हाथिया ठाठू में जुड़े बैलों को दौड़ाया जाता है. तेज गति से दौड़ते बैलों को टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में मोड़ना साहसिक कार्य है. इस महोत्सव में बैलों की दौड़ देखकर लोगों की सांसें थम जाती हैं. दौड़ में जो पहले आता है उससे आने वाले वर्ष का पूर्वानुमान किया जाता है.

First Published :

April 22, 2025, 16:08 IST

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