Last Updated:July 29, 2025, 04:31 IST
1971 War Story: शांभवी चौधरी ने 1971 के युद्ध में जगजीवन राम की भूमिका पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने उन्हें वह पहचान नहीं दी जिसके वे हकदार थे. बांग्लादेश ने उन्हें 'वॉर हीरो' माना.

हाइलाइट्स
शांभवी चौधरी ने जगजीवन राम की भूमिका पर सवाल उठाया.बांग्लादेश ने जगजीवन राम को 'वॉर हीरो' माना.कांग्रेस ने 1971 की जीत का श्रेय इंदिरा गांधी को दिया.‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा के दौरान चिराग पासवान की पार्टी की सांसद शांभवी चौधरी ने 1971 के युद्ध पर बड़ा सवाल उठाया. कांग्रेस को कोसते हुए शांभवी चौधरी ने कहा, ‘कुछ सांसद कह रहे थे कि 1971 में इंदिरा गांधी ने ये किया, वो किया, लेकिन वो कभी भी 1971 का क्रेडिट बिहार के जगजीवन राम को नहीं दे सकते, जो तब के रक्षा मंत्री थे. बांग्लादेश ने तो जगजीवन राम को 1971 का ‘वॉर हीरो’ माना, लेकिन कांग्रेस पार्टी ने उन्हें कभी भी वह पहचान नहीं दी जिसके वे हकदार थे.’ ये बात तो सच है कि 1971 का श्रेय इंदिरा गांधी को दिया जाता है. उनकी इच्छाशक्ति ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए. लेकिन क्या आप जगजीवन राम की भूमिका के बारे में जानते हैं?
अब सवाल यह है कि जगजीवन राम की भूमिका क्या थी, क्यों इंदिरा गांधी की छाया में वे भुला दिए गए, और आखिर बांग्लादेश ने उन्हें क्यों सम्मानित किया? 1971 जंग के वक्त जगजीवन राम भारत के रक्षा मंत्री थे. उन्होंने इंडियन आर्मी के ऑपरेशनल प्लानिंग, हथियारों की सप्लाई, रसद और संसाधनों की तैयारी में अहम भूमिका निभाई थी. जगजीवन राम की बेटी और कांग्रेस सांसद रहीं मीरा कुमार ने खुद उस वक्त को याद करते हुए लिखा है. indiafoundation.in पर एक आर्टिकल में उन्होंने लिखा है, 1971 से पहले, हमारी अपनी जमीन की रक्षा करने की क्षमता में हमें आत्मविश्वास की कमी थी. 1948 में हमने पीओके के 28,000 वर्ग मील गंवाए. 1962 में चीन को 38,000 वर्ग मील छोड़ना पड़ा. 1965 में भारत और पाकिस्तान बराबरी पर थे, और हमें हाजी पीर से पीछे हटना पड़ा. 1970 में जब युद्ध के काले बादल भारत के क्षितिज पर छा गए, तो यह भारत के लिए खुद को फिर से स्थापित करने और अपनी सैन्य शक्ति, प्रतिष्ठा और सम्मान को साबित करने का समय था. तब मेरे पिता ने कमान संभाली.
सेना को तैयार किया…
मीरा कुमार ने लिखा है, हमारे सशस्त्र बलों दुश्मन को सबक सिखाने के लिए तैयार थे, लेकिन उन्हें इस बात के लिए तैयार करना था कि यदि जरूरत पड़ी तो दूसरी जगह जाकर भी जंग लड़नी होगी. बाबू जगजीवन राम ने शुरुआत से ही यह जिम्मा उठाया. वे देश भर में, हर सीमा चौकी पर गए और जवानों को बताया कि हम आक्रमण करने वाले नहीं हैं, हमारा इतिहास, संस्कृति और परंपरा ऐसा नहीं सिखाती. लेकिन अगर युद्ध थोपा गया, तो यह भारतीय मिट्टी पर नहीं, बल्कि दुश्मन की मिट्टी पर लड़ा जाएगा. यह बात सशस्त्र बलों में जोश भर गई. और आखिर यही हुआ.
कांग्रेस की राजनीति में क्यों दब गई पहचान?
इंदिरा गांधी के करिश्माई नेतृत्व को लेकर कांग्रेस ने 1971 की रणनीतिक जीत को पूरी तरह से उनके नाम समर्पित कर दिया. पोस्टर, भाषण, स्कूलों की किताबों और डॉक्युमेंट्रीज में रक्षामंत्री की भूमिका को या तो नजरअंदाज किया गया या बहुत सीमित रूप में दिखाया गया. एक तरह से कांग्रेस ने 1971 की विजय का सारा श्रेय इंदिरा गांधी के नेतृत्व को दिया, जिससे जगजीवन राम की भूमिका बहस से बाहर हो गई.
बांग्लादेश क्यों मानता है जगजीवन राम को ‘वॉर हीरो’?
बांग्लादेश सरकार ने आधिकारिक रूप से जगजीवन राम को 1971 की लड़ाई में निर्णायक रणनीतिक नेतृत्व देने के लिए सम्मानित किया. वहां के सैन्य इतिहास में उनका उल्लेख एक ऐसे व्यक्ति के रूप में होता है जिन्होंने दूसरे देश की आजादी में निर्णायक सैन्य मदद दी. कई बांग्लादेशी स्वतंत्रता सेनानियों ने उनके फैसलों को जंग की तस्वीर बदलने वाला बताया है.
दलित नेता, और इसलिए उपेक्षित?
राजनीति के कुछ जानकारों का कहना है कि यह एक सच्चाई है कि जगजीवन राम का दलित नेता होना उन्हें कांग्रेस की ‘मुख्यधारा’ में उतनी जगह नहीं दिला सका जितनी वे डिजर्व करते थे. वर्षों तक सरकार में रहते हुए उन्होंने आजादी की लड़ाई से लेकर संवैधानिक निर्माण तक में भूमिका निभाई, लेकिन उनकी विरासत को दलित विमर्श तक सीमित कर दिया गया.
Mr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.news18.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for 'Hindustan Times Group...और पढ़ें
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