जब भी ये गरजती है, दुश्मन पर मौत बरसती है, 40 साल बाद भी बोफोर्स है दमदार

6 hours ago

Last Updated:July 15, 2025, 19:44 IST

KARGIL WAR HERO BOFORS GUN: बोफोर्स के बाद लंबे समय तक भारतीय सेना के तोपखाने में कोई नई गन नहीं आई थी. कारगिल जंग के बाद ऑर्टिलरी के आधुनिकीकरण के तहत 1580 टोड तोप जो गाड़ियों के जरिए खींची जाने वाली तोपें हैं...और पढ़ें

जब भी ये गरजती है, दुश्मन पर मौत बरसती है, 40 साल बाद भी बोफोर्स है दमदार

ऑपरेशन विजय से ऑपरेशन सिंदूर तक बोफोर्स है अब दमदार

हाइलाइट्स

बोफोर्स गन आज भी भारतीय सेना की सबसे बेस्ट गन है.कारगिल युद्ध में बोफोर्स ने पाकिस्तान पर 70-80 हजार राउंड फायर किए.आत्मनिर्भर भारत के तहत देसी बोफोर्स धनुष सेना में शामिल.

KARGIL WAR HERO BOFORS: बोफोर्स यानी बिग गन. नाम सुनते ही दो चीजें सामने आती हैं – एक तो बोफोर्स घोटाला और दूसरी कारगिल की जंग. भले ही बोफोर्स विवादों में रही हो, लेकिन इसकी मारक क्षमता पर किसी ने सवाल नहीं उठाया. इसकी मार का स्वाद तो सिर्फ पाकिस्तान ने ही चखा है. कारगिल की जंग में ढाई लाख से ज्यादा आर्टिलरी फायर हुए थे, जिसमें अकेले 70-80 हजार राउंड पाकिस्तानी सेना पर दागे गए थे. हालत तो ये हो गई थी कि इतनी ताबड़तोड़ और लगातार फायरिंग की जा रही थी कि गन की बैरल लाल हो गई थी. ऐसे में उसका आकार बदलने का डर था, इसलिए देश के अलग-अलग हिस्सों में तैनात बोफोर्स के बैरल तक कारगिल में भेजे गए थे ताकि फायर पावर को बदस्तूर जारी रखा जा सके. कारगिल की जंग को 26 साल हो गए हैं. बोफोर्स जरूर बूढ़ी हो चुकी है, लेकिन फायर पावर में कोई कमी नहीं आई है. सेना के एक अधिकारी के मुताबिक, आज भी बोफोर्स गन देश की सबसे बेस्ट गन है.

गनर के लिए भी थी बड़ी चुनौती
कारगिल में आर्टिलरी के इस्तेमाल जितना सुनने में आसान लगता है, उतना था नहीं. कारगिल की जंग भारतीय आर्टिलरी के लिए नई चुनौती थी. पहाड़ी इलाका, अचानक बदलते मौसम और घाटियों से बहती हवा सारे गणित को ही बिगाड़ रही थी. स्कूल ऑफ आर्टिलरी में जितने भी ट्रेनर थे, सभी को कारगिल में ओपी बनाया गया. क्योंकि उनसे बेहतर उस वक्त गन को फायर के कॉर्डिनेट कोई और नहीं दे सकता था. ओपी का मतलब है ऑब्जर्वेशन पोस्ट. इनका काम होता था दुश्मन के टार्गेट की जानकारी गन के कमांड एंड कंट्रोल सेंटर तक पहुंचाना. इन्हीं की निशानदेही पर गन फायर करती है. लेकिन हाई ऑल्टिट्यूड और अचानक बदलते मौसम के चलते टार्गेट पर सटीक वार करने में दिक्कतें पेश आ रही थीं. चुनौती को ऑन ग्राउंड महसूस किया गया और फिर उसे दुरुस्त किया गया. इस वॉर में तोप को डायरेक्ट फायरिंग के लिए भी इस्तेमाल किया गया. टाइगर हिल पर फायर के लिए द्रास के नेशनल हाइवे 1 के दूसरी तरफ पहाड़ी पर रातोंरात गन को पहुंचाने का रास्ता तैयार किया गया. फिर गन को पोजिशन कर के ताबड़तोड़ फायर शुरू कर दिया गया. बोफोर्स को डायरेक्ट फायरिंग के लिए तो कम इस्तेमाल किया गया, लेकिन 130 MM गन ने खूब निशाने डायरेक्ट फायर से साधे.

क्यों है बोफोर्स किंग ऑफ दी बैटल फील्ड?
1986 में स्वीडन से ली गई 410 155mm 39 कैलिबर होवित्सर गन अब भी सेना के आर्टिलरी की बैकबोन है. फिलहाल भारतीय सेना में 250 के करीब एक्टिव गन मौजूद हैं. भले ही भारत ने कारगिल के बाद कोई जंग नहीं लड़ी जिसमें आर्टिलरी गन का इतना ज्यादा इस्तेमाल किया हो. थोड़ी बहुत फायरिंग पीओके में पाकिस्तानी सीज फायर के जवाब में जरूर होती रही. फिर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इन तोपों का मुंह फिर से खोल दिया गया. एक गन ने पाकिस्तान को दो बार गहरी चोट दी. 50 साल बाद भी बोफोर्स जैसे पहले दिन फायर करती थी, आज भी वैसे ही फायर करती है. इसकी खासियत है कि ये 30 किलोमीटर दूर से दुश्मन के किसी ठिकाने को तबाह कर सकती है. इसका रेट ऑफ फायर भी जबरदस्त है. बोफोर्स 9 सेकंड में 4 राउंड फायर कर सकती है. ये एक जगह पर ही 360 डिग्री घूम सकती है और किसी भी एंगल में फायर कर सकती है. और ये 6 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से मूव भी कर सकती है.

देसी बोफोर्स धनुष भी सेना में शामिल
1999 में शुरू हुए सेना के आधुनिकीकरण के प्लान में आर्टिलरी तोपें सबसे अहम थीं. जिसमें साल 2027 तक 2800 तोपें भारतीय सेना में शामिल करने का लक्ष्य है. 155 mm की अलग-अलग कैलिबर की तोपें ली जा रही हैं. खास बात तो ये है कि आत्मनिर्भर भारत के तहत ही देश में ही देसी बोफोर्स भी बना दी गई है. इसका नाम दिया गया है धनुष. अब तक इसकी दो से ज्यादा रेजिमेंट सेना को मिल चुकी है. एक रेजिमेंट में 3 गन बैटरी होती है और हर बैटरी में 6 गन होती हैं. भारतीय सेना को कुल 114 गन लेनी हैं और उसकी डेडलाइन 2026 रखी गई है.

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