Last Updated:March 29, 2025, 20:43 IST
Earthquake News : म्यांमार और थाईलैंड में भूकंप से 700 से ज्यादा मौतें हुईं. पुराने समय में लोग प्राकृतिक संकेतों और धार्मिक आस्थाओं से बचाव करते थे, आज उन्नत तकनीक के बावजूद सीमित संसाधन हैं. जानिए 200-250 साल...और पढ़ें

भूकंप से बचने के 200-250 साल पुराने तरीके.
हाइलाइट्स
म्यांमार और थाईलैंड में भूकंप से 700 से ज्यादा मौतें हुईं.पुराने समय में लोग प्राकृतिक संकेतों और धार्मिक आस्थाओं से बचाव करते थे.भूकंप से बचाव के लिए आज भी सीमित संसाधनों और अनुभव पर निर्भर रहना पड़ता है.Earthquake News: म्यांमार और थाईलैंड में भूकंप ने भयंकर तबाही मचाई है. शुक्रवार से ही बचाव कार्य युद्धस्तर पर किए जा रहे हैं. भूकंप से सबसे अधिक म्यांमार प्रभावित हुआ है. अब तक 700 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मौत का आंकड़ा कई हजार तक पहुंच सकता है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि 200-250 साल पहले भूकंप आने पर बचाव कार्य कैसे होते थे? भूकंप आने से पहले संकेत कैसे मिलते थे? आज की तरह जब उन्नत तकनीक और विज्ञान नहीं थे, तब सरकार और लोग भूकंप से बचाव और राहत का काम कैसे करते थे? आप सुनकर चौंक जाएंगे कि पुराने जमाने में भूकंप आने के संकेत और बचाव कार्य भी लोग उसी तरह से करते थे, जैसे आज करते हैं. हालांकि, इसके तरीके अलग थे, जिसे साइंस के लिए आज भी पहेली है.
बता दें कि 200-250 साल पहले जब विज्ञान उतना उन्नत नहीं था, तब भी लोग भूकंप से बचाव का तरीका ढूंढ लेते थे. तकनीक और वैज्ञानिक समझ की कमी के बावजूद भूकंप से बचाव होता था. हालांकि, उस समय भूकंप आने के बाद जान-माल की सुरक्षा का कोई निश्चित तरीका नहीं था. फिर भी लोग इंसानियत और कुदरती आस्थाओं के बल पर राहत कार्य करते थे. उस समय ऊंची-ऊंची इमारतों और कंक्रीट के जंगल की जगह लकड़ी के घर होते थे. इस वजह से भूकंप की तीव्रता 7.7 होने के बाद भी ज्यादा नुकसान नहीं होता था.
200-250 साल पहले वाला भूकंप कितना खतरनाक?
200-250 साल पहले घरों और इमारतों का निर्माण पारंपरिक तरीके से होता था. ज्यादातर इमारतें लकड़ी, पत्थर या मिट्टी से बनी होती थीं. ये इमारतें भूकंप से ज्यादा प्रभावित होती थीं, लेकिन बहुत कम जानें जाती थीं. इसके साथ ही लोग भूकंप को देवी-देवताओं या आस्था से जोड़कर देखते थे. कई बार लोग भूकंप के समय मंदिरों या पवित्र स्थलों में शरण लेते थे, यह मानकर कि भगवान उनकी सुरक्षा करेगा. इसके अलावा, जब भूकंप आता था, तो लोग खुले में चले जाते थे. आज की तरह ऊंची-ऊंची इमारतों में नहीं रहते थे. घरों के गिरने या ढहने से बचने के लिए लोग बाहर निकलने की कोशिश करते थे और उसमें ज्यादातर सफल हो जाते थे. भूकंप में राहत के लिए एक गांव के लोग दूसरे गांव और कस्बों में जाकर संकट में एक-दूसरे की मदद करते थे.
200-250 साल पहले भूकंप आने की चेतावनी देना लगभग असंभव था. कोई वैज्ञानिक या विज्ञान तकनीक या उपकरण उपलब्ध नहीं थे. लेकिन फिर भी लोग कुछ प्राकृतिक संकेतों से पता कर लेते थे. नीचे वे तरीके हैं, जिससे भूकंप आने की जानकारी हो जाती थी
पानी में बदलाव: कुछ लोग मानते थे कि अगर कुओं या तालाबों का पानी अचानक बढ़ जाए या घट जाए, तो यह भूकंप आने का संकेत हो सकता था. हालांकि, बाद में यह वैज्ञानिक रूप से पुष्टि नहीं हुई.
जानवरों या पशु का व्यवहार: पहले के लोग मानते थे कि जानवरों का व्यवहार भूकंप के आने से पहले बदल जाता था. जैसे, कुत्ते भौंकने लगते थे, गायें रस्सी तोड़ने लगती थीं. इससे किसान मानते थे कि भूकंप आ सकता है. लेकिन, यह भी ठोस वैज्ञानिक आधार पर साबित नहीं हुआ.
आसपास के वातावरण में बदलाव: लोगों का मानना था कि भूकंप से पहले मौसम में अचानक बदलाव आ जाते हैं. जैसे, तेज हवा चलना, वातावरण में ठंडक आना. लेकिन, यह भी सिर्फ अनुमान होते थे, जिसे विज्ञान ने नकार दिया.
दैवीय विश्वास: हिंदू और मुस्लिम संस्कृतियों में भूकंप आने का देवताओं और अल्लाह का क्रोध माना जाता था. इसलिए लोग भूकंप के बाद धार्मिक अनुष्ठान या पूजा-पाठ और नमाज अदा करते थे. हालांकि, इसे भी नकार दिया गया.
कुत्तों का भौंकना, गाय-भैंस जैसे जानवरों का रस्सी तोड़कर नाचना, पक्षियों का अचानक आकाश में चहचहाना और चिल्लाना, पुराने जमाने यानी 200-250 साल पहले भूकंप के आने के संकेत हुआ करते थे. लेकिन, आज के दौर में रिक्टर स्केल से अनुमान लगा लेना, मर्कली स्केल से भूकंप के प्रभाव को मापना, सिस्मोमीटर और सिस्मोग्राफ के जरिए भूकंप के झटकों को रिकॉर्ड करना और अर्थक्वेक वार्निंग सिस्टम विकसित करने के बाद भी भूकंप से बचाव के लिए सीमित संसाधनों और अनुभव पर ही निर्भर रहना पड़ता है.
First Published :
March 29, 2025, 20:41 IST