Last Updated:August 18, 2025, 07:58 IST
गुजरात के आलवाडा गांव में पहली बार दलितों को नाई की दुकान पर बाल कटवाने का अधिकार मिला है. 24 वर्षीय कीर्ति चौहान ने 7 अगस्त को यह ऐतिहासिक कदम उठाया, जिसे दलित समुदाय ने "छोटी कटिंग, बड़ा बदलाव" करार दिया.

Gujarat: गुजरात के बनासकांठा जिले के आलवाडा गांव में 7 अगस्त को एक ऐसी ऐतिहासिक घटना घटी, जिसने सामाजिक बराबरी को एक नई दिशा दिखाई. दरअसल, इस दिन 24 साल के खेत मजदूर कीर्ति चौहान ने गांव के नाई की दुकान पर बैठकर बाल कटवाए. यह पहली बार था जब गांव के किसी दलित को नाई की दुकान पर यह सुविधा मिली हो. गांव के दलितों ने इसे आजादी जैसा अहसास बताया.
दशकों से जारी भेदभाव
आलवाडा गांव की आबादी लगभग 6500 है. इनमें से करीब 250 लोग दलित समुदाय के हैं. लेकिन पीढ़ियों से गांव के नाई दलितों के बाल काटने से मना करते थे. इस वजह से दलितों को नाई की दुकान तक पहुंचने के लिए दूसरे गांव जाना पड़ता था. कई बार उन्हें अपनी जाति छुपानी पड़ती थी, ताकि बाल कटवा सकें.
58 साल के छोगाजी चौहान बताते हैं, “हमारे बाप-दादा आजादी से पहले भी यह भेदभाव झेलते थे और मेरे बच्चे भी आठ दशक बाद तक उसी तकलीफ से गुजरे.”
कीर्ति चौहान ने दिखाई हिम्मत
कीर्ति चौहान ने जब गांव की दुकान पर बाल कटवाए, तो वह बेहद भावुक हो गए. उन्होंने कहा, “24 साल में पहली बार मैं अपने गांव में नाई की दुकान पर बैठा. पहले हमें हमेशा बाहर जाना पड़ता था. उस दिन मुझे लगा कि मैं आजाद हूं और अपने ही गांव में स्वीकार किया गया हूं.”
कैसे आया बदलाव?
इस भेदभाव को खत्म करने के लिए दलित समुदाय ने लंबे समय से संघर्ष किया. उन्हें स्थानीय समाजसेवी चेतन दाभी का साथ मिला. उन्होंने ऊंची जातियों और नाइयों को समझाने की कोशिश की कि यह प्रथा असंवैधानिक है. लेकिन जब समझाने से बात नहीं बनी, तो पुलिस और जिला प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ा. ममलतदार जनक मेहता ने गांव के नेताओं और सभी वर्गों से बातचीत की और समस्या का समाधान कराया.
गांव के सरपंच सुरेश चौधरी ने भी माना – “सरपंच होने के नाते मुझे पहले की प्रथा पर शर्म आती थी. खुशी है कि यह गलत रिवाज मेरे कार्यकाल में खत्म हुआ.”
नाई भी हुए राजी
अब गांव के सभी पांचों नाई की दुकानें दलितों के लिए खुल चुकी हैं. 21 साल के पिंटू नाई, जिन्होंने कीर्ति चौहान के बाल काटे, उन्होंने कहा – “पहले हम समाज के नियमों के कारण ऐसा नहीं करते थे. अब जब बड़ों ने बदलाव को मंजूरी दे दी, तो कोई रोक नहीं. इससे हमारे धंधे को भी फायदा है.”
समाज में धीरे-धीरे आ रहा बदलाव
इस फैसले का समर्थन गांव के ऊंची जाति के लोग भी कर रहे हैं. प्रकाश पटेल, जो पाटीदार समुदाय से हैं, उन्होंने कहा – “अगर मेरे किराना स्टोर पर सभी ग्राहक आते हैं, तो नाई की दुकान पर क्यों नहीं? अच्छा हुआ कि यह गलत प्रथा अब खत्म हो गई.”
हालांकि, दलित समुदाय मानता है कि अभी भी लंबा रास्ता तय करना बाकी है. ईश्वर चौहान, जो एक दलित किसान, उन्होंने कहा – “आज हमें नाई की दुकान पर जगह मिल गई है, लेकिन सामूहिक भोज में हमें अब भी अलग बैठाया जाता है. उम्मीद है, एक दिन यह भी खत्म होगा.”
“छोटी कटिंग, बड़ा बदलाव”
दलित समाज इस बदलाव को एक नई शुरुआत मान रहा है. उनके शब्दों में – “यह सिर्फ एक हेयरकट नहीं, बल्कि बराबरी की ओर उठाया गया बड़ा कदम है.”
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Location :
Banas Kantha,Gujarat
First Published :
August 18, 2025, 07:58 IST