Last Updated:September 19, 2025, 11:07 IST
1947-48 के युद्ध में ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान ने साहस और बलिदान की ऐसी मिसाल कायम की, जो आज भी देशभक्ति की प्रेरणा है. ‘शेर-ए-नौशेरा’ कहलाने वाले इस वीर ने अंतिम सांस तक दुश्मन से लोहा लिया. पाकिस्तानी सेना का इनाम और मौत का खतरा भी उन्हें डरा न सका.

भारत के सैन्य इतिहास में कुछ नाम ऐसे हैं जो कालजयी (वह व्यक्ति जो समय की सीमाओं से परे हो) बन जाते हैं. ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान, महावीर चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित, उन्हीं में से एक हैं. ‘शेर-ए-नौशेरा’ के नाम से मशहूर इस वीर सपूत की शौर्यगाथा आज भी भारतीयों की रगों में जोश और गर्व भर देती है. नौशेरा में बना उनका स्मारक और संग्रहालय केवल एक इमारत नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति का जीवंत प्रतीक है.
वीरता की मिसाल
15 जुलाई 1912 को उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले के बीबीपुर गाँव में जन्मे मोहम्मद उस्मान ने बचपन से ही साहस और सेवा का परिचय दिया. 12 वर्ष की आयु में उन्होंने एक बच्चे की जान बचाने के लिए कुएँ में छलांग लगा दी थी. यही जज़्बा आगे चलकर उन्हें भारतीय सेना का अभिन्न अंग बना गया.
ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान, महावीर चक्र (मरणोपरांत)
सैंडहर्स्ट सैन्य अकादमी से प्रशिक्षण लेकर वे ब्रिटिश भारतीय सेना में नियुक्त हुए. विभाजन के समय जब पाकिस्तान ने उन्हें पहला सेना प्रमुख बनने का प्रस्ताव दिया, तो उन्होंने निःसंकोच मना कर दिया और भारत के प्रति अपनी अटूट निष्ठा दिखाई. यही नहीं, उन्होंने शरणार्थियों की सहायता के लिए अपनी तनख्वाह तक दान कर दी थी.
1947-48 का युद्ध और “शेर-ए-नौशेरा” की उपाधि
ब्रिगेडियर उस्मान को 50 (पैरा) ब्रिगेड का कमांड सौंपा गया. फरवरी 1948 में नौशेरा की लड़ाई में उनकी टुकड़ी ने दुश्मन की दस हज़ार से अधिक कबायली सेना को खदेड़ दिया. यह भारत की एक निर्णायक विजय थी, जिसने नौशेरा को हमेशा के लिए सुरक्षित कर दिया. स्थानीय लोगों ने उन्हें सम्मानपूर्वक ‘शेर-ए-नौशेरा’ कहा.
झांगर मेमोरियल और म्यूज़ियम, ब्रिगेडियर उस्मान की शौर्य-गाथा का स्थल
झांगर की पुनःविजय (मार्च 1948)
दुश्मन के कब्ज़े से झांगर को मुक्त कराने में उस्मान ने हल्के टैंकों का साहसी इस्तेमाल किया. 18 मार्च को निर्णायक विजय मिली. उन्होंने प्रण लिया था कि जब तक झांगर वापस न मिलेगा, वह बिस्तर पर नहीं सोएँगे. कड़ाके की ठंड में भी उन्होंने ज़मीन पर सोकर यह व्रत निभाया.
दुर्भाग्यवश, 3 जुलाई 1948 को केवल 35 वर्ष की आयु में वह दुश्मन की तोप का निशाना बने और शहीद हो गए. उनके शव को में राजकीय सम्मान के साथ जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में दफ़नाया गया. अंतिम यात्रा में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, शेख़ अब्दुल्ला और मौलाना आज़ाद जैसे नेता मौजूद रहे.
उनके प्रेरक शब्द आज भी गूंजते हैं—
“चिंता मत करो, अंतिम आदमी, अंतिम गोली और अंतिम सांस तक लड़ना है”
सम्मान और विरासत
ब्रिगेडियर उस्मान को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. पाकिस्तानी सेना ने उन पर 50,000 रुपये का इनाम रखा था, मगर वह बिना डरे हमेशा अग्रिम पंक्ति में रहे. उन्होंने शरणार्थियों की मदद के लिए अपनी तनख्वाह का बड़ा हिस्सा दान किया.
झांगर मेमोरियल और म्यूज़ियम में स्तिथ विजयंता टैंक
झांगर मेमोरियल और म्यूज़ियम
ब्रिगेडियर उस्मान और अन्य वीर शहीदों की स्मृति में झांगर मेमोरियल बनाया गया है. जहाँ वह शहीद हुए थे, उसी स्थान पर उनकी संगमरमर की प्रतिमा स्थापित है. इसका अनावरण 2009 में उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने किया था.
प्रतिमा तक जाते मार्ग के दोनों ओर खड़े दो विजयंत टैंक इस स्थल को गौरव और ऐतिहासिक महत्त्व प्रदान करते हैं. हाल ही में सेना ने इस स्मारक को नया रूप दिया है – यहाँ कम्युनिटी लर्निंग सेंटर, समर्पित म्यूज़ियम और नवीनीकृत परिसर तैयार किया गया है.
म्यूज़ियम में उनकी जीवनी, दुर्लभ चित्र, युद्ध से जुड़े पुरावशेष, स्थानीय कलाकार द्वारा बनाया गया उनका स्केच और 3D वीडियो प्रस्तुति मौजूद है. यह सब आगंतुकों को न सिर्फ जानकारी देते हैं, बल्कि उन्हें उस दौर की धड़कनों से जोड़ देते हैं.
Source: Usman Memorial & Museum
झांगर मेमोरियल और म्यूज़ियम कैसे पहुंचे
यदि आप ब्रिगेडियर उस्मान की शौर्य-गाथा से रूबरू होना चाहते हैं तो झांगर मेमोरियल और म्यूज़ियम तक पहुँचना आसान है.
जम्मू से सड़क मार्ग द्वारा राजौरी ज़िले के झांगर तक पहुँचा जा सकता है. यात्रा के दौरान घाटियों की खूबसूरती और सीमा पर तैनात जवानों की झलक, दोनों ही इस सफ़र को अविस्मरणीय बना देते हैं.
उस्मान मेमोरियल म्यूज़ियम का आधिकारिक लिंक: https://maps.app.goo.gl/vcTFh87oBni1YsES7?g_st=ipc
झांगर मेमोरियल और म्यूज़ियम केवल इतिहास को संजोने की जगह नहीं, बल्कि उस आत्मा की याद है जिसने हमें आज़ादी की रक्षा करना सिखाया. ब्रिगेडियर उस्मान का जीवन हमें यह बताता है कि सच्ची ताक़त बंदूक में नहीं, बल्कि उस दिल में होती है जो देश के लिए धड़कता है. उनकी गाथा हर भारतीय को यह संदेश देती है – “देशभक्ति सबसे बड़ा धर्म है और बलिदान ही सबसे बड़ी पूजा”.
Mohit Chauhan brings over seven years of experience as an Editorial Researcher, specializing in both digital and TV journalism. His expertise spans Defense, Relations, and Strategic Military Affai...और पढ़ें
Mohit Chauhan brings over seven years of experience as an Editorial Researcher, specializing in both digital and TV journalism. His expertise spans Defense, Relations, and Strategic Military Affai...
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Location :
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
First Published :
September 19, 2025, 11:07 IST