Last Updated:March 05, 2025, 18:50 IST
TEJAS: लाइट कॉम्बेट एयरक्राफ्ट का निर्माण एचएएल कर रहा है. भारत में ही इसे डिजाइन और डेवलप किया गया है यह आधुनिक और 4+ जेनेरेशन का फाइटर एयरक्राफ्ट है. तजस के कुल 11 स्क्वॉड्रन अभी वायुसेना ले रही है. 2021 मे...और पढ़ें

तेजस के लिए तैयार है इंटीग्रेटेड लाइफ सपोर्ट सिस्टम
हाइलाइट्स
तेजस में ऑन-बोर्ड ऑक्सीजन जेनरेटिंग सिस्टम लगेगा.तेजस की उड़ान रेंज अब अनलिमिटेड होगी.50,000 फीट पर ऑक्सीजन सिस्टम का सफल परीक्षण.TEJAS: भारतीय वायुसेना में आने वाले दिनों में सुखोई-30 के बाद सबसे ज्यादा फाइटर स्वदेशी तेजस होंगे. इसकी ताकत और मारक क्षमता को स्वदेशी तरीके से बढ़ाया जा रहा है. कोई ना कोई नया सिस्टम इजाद किया जा रहा है. डीआरडीओ ने इस बार ऐसा सिस्टम बनाया है जो तेजस की फलाइंग रेंज के अनलिमिटेड कर देगा. DRDO के बैंगलुरू स्थित बायो-इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रो मेडिकल लैब (DEBEL) ने ऑन-बोर्ड ऑक्सीजन जेनरेटिंग सिस्टम (OBOGS)-आधारित इंटीग्रेटेड लाइफ सपोर्ट सिस्टम (ILSS) का सफल परिक्षण किया. इस सिस्टम से पायलट को उड़ान के दौरान सांस लेने के लिए जरूरी ऑक्सिजन मिलती रहगी.
फ्यूल के साथ साथ ऑक्सीजन है सबसे जरूरी
फाइटर की रेंज फ्यूल पर नहीं ऑक्सीजन पर निर्भर करती है. सुनकर जरूर चौंक गए होंगे लेकिन यह सच है. फाइटर ऑपरेशन तो तब तक ही अंजाम दिया जा सकता है जब तक पायलट के पास सांस लेने वाली ऑक्सीजन है. अभी तक मौजूदा एयरक्राफ्ट में पायलट पारंपरिक लिक्विड ऑक्सीजन सिलेंडर-आधारित सिस्टम के साथ उड़ान भरता है. अमूमन 10,000 फीट की उंचाई तक में ऑक्सीजन की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन जैसे ही एलटिट्यूड बढ़ता है ऑक्सीजन की जरूरत शुरू हो जाती है. मिशन के हिसाब से पायलट फ्यूल और ऑक्सीजन लेकर चलता है. अगर उड़ान 10,000 फिट की उंचाई तक है तो तेल की ज्यादा खपत होती है. उंचाई बढ़ाई तो फ्यूल की खपत तो कम हो जाती है लेकिन ऑक्सीजन की खपत शुरू हो जाती है. मिशन के दौरान अगर फ्यूल कम हो गया तो एयरक्राफ्ट को मिड एयर रिफ्यूल किया जा सकता है. लेकिन अब तक ऑक्सीजन के लिए लिए एयरक्राफ्ट वापस आना ही पड़ता है. इन नए सिस्टम के जरिए अब एयरक्राफ्ट में ही ऑक्सीजन जेनरेट होती रहेगी. इससे मिशान ज्यादा लंबा चलाया जा सकता है.
50,000 फिट पर रहा परिक्षण सफल
यह परिक्षण HAL और एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA) के LCA- प्रोटोटाइप वेहिकल-3 एयरक्फट किया गया. इस प्रणाली अलग अलग उड़ान परिस्थितियों में 50,000 फीट तक की ऊंचाई और हाई-G फोर्स मनूवर में सभी एयरोमेडिकल मानकों पर खरी उतरी. यह प्रणाली विभिन्न उड़ान परिस्थितियों में 50,000 फीट तक की ऊंचाई और हाई-G फोर्स की परिस्थितियों में एयरोमेडिकल मानकों पर खरी उतरी. हर परिक्षण में इस सिस्टम ने 100 फासदी ऑक्सीजन के सप्लाइ की. सेंटर फॉर मिलिट्री एयरवर्थिनेस एंड सर्टिफिकेशन (CEMILAC) से उड़ान मंजूरी मिलने के बाद किए इस परिक्षण में सबी प्रणाली ने सभी निर्धारित मानकों को सफलतापूर्वक पूरा किया. इस सिस्टम का निर्माण L&T ने विकास सह उत्पादन भागीदार (Development cum Production Partner) के तौर में किया है. यह DRDO और भारतीय रक्षा उद्योगों के बीच महत्वपूर्ण सहयोग को दिखाती है. इस ILSS में 90 फीसदी स्वदेशी कंटेंट सेवदेशी है. जरूरी बदलाव के साथ इस प्रणाली को नौसेना के MiG-29K और दूसरे विमानों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. यह उपलब्धि DEBEL, ADA, HAL, CEMILAC, नेशनल फ्लाइट टेस्ट सेंटर, डायरेक्टरेट जनरल ऑफ एरोनॉटिकल क्वालिटी एश्योरेंस और भारतीय वायु सेना (IAF) के साझा प्रयासों से हासिल हुई है.
First Published :
March 05, 2025, 18:50 IST