दिल्ली में मिले 2 'दिलजले'... क्या बिहार में दिखेगा 'सिंह इज किंग' का जलवा?

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Last Updated:August 19, 2025, 12:59 IST

Pawan Singh RK Singh News: पवन सिंह और आरके सिंह की मुलाकात क्या बिहार की राजनीति में बदलाव के संकेत हैं? क्या दोनों नेता 2025 विधानसभा चुनाव में नई रणनीति के साथ उतर सकते हैं?

दिल्ली में मिले 2 'दिलजले'... क्या बिहार में दिखेगा 'सिंह इज किंग' का जलवा?बिहार चुनाव से पहले पवन सिंह और आरके सिंह की मुलाकात के मायने.

पटना. क्या बिहार में दो दिलजलेएक मंच पर आएंगे? क्या विधानसभा चुनाव 2025 में सिंह इज किंगका जलवा दिखेगा? बिहार चुनाव 2025 से पहले पार्टियां नेताओं की भूमिका पार्टी तय करे या न करे, पर उन्होंने अपने लिए रोल अभी से चुनना शुरू कर दिया है. इसी कड़ी में दिल्ली में भोजपुरी सिनेमा के पावर स्टार पवन सिंह और बीजेपी नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह का मिलन हुआ है. मुलाकात की तस्वीर जैसे ही सोशल मीडिया पर आई, पटना में बैठे कुछ बड़े और खास जाति के नेताओं की होश उड़ने लगे. लोकसभा चुनाव 2024 में दोनों दिग्गज शिकस्त खाकर ‘घायल’ हो चुके हैं. अब जैसे ही चुनाव का मौका आया है दोनों घायल शेर जग गए हैं. ऐसे में दिगग्ज अभिनेता अशोक कुमार का एक डायलॉग ‘घायल का घत घायल जाने’ दोनों पर एकदम फिट बैठ रहा है. कहा जा रहा है कि दोनों ने बिहार चुनाव में वैसे नेताओं को सबक सिखाने का प्लान तैयार कर लिया है, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में दोनों को हरवाने में अहम रोल अदा किया था. ऐसे में बड़ा सवाल क्या बिहार में राजपूत वर्सेज कोइरी-कुर्मी की जंग शुरू होने वाली है? आरके सिंह और पवन सिंह का मिलन क्या राजपूत पॉलिटिक्स की नई पटकथा बिहार में लिखेगी?

आरके सिंह और पवन सिंह की मुलाकात महज एक औपचारिक मुलाकात नहीं, बल्कि बिहार की जमीनी राजनीति में बदलाव की तैयारी की पटकथा हो सकती है. बिहार के राजनीतिक विश्लेषक दोनों की मुलाकात पर नजर बनाए हुए हैं, क्योंकि यह मुलाकात चुनाव के परिणामों को नया रंग दे सकती है. एक बात तय है कि इस बार बिहार चुनाव में ‘पुरानी राजनीति’ के बजाय ‘नई सोच’ और ‘नई राजनीति’ की प्रतिस्पर्धा होगी, जिसमें आरके सिंह और पवन सिंह की जोड़ी निर्णायक भूमिका निभाए तो हैरानी नहीं होगी.

दो ‘दिलजले’ की मुलाकात क्या गुल खिलाएगी?

पवन सिंह ने अपने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट में लिखा है, ‘एक नई सोच के साथ, एक नई मुलाकात’. दोनों 2024 के लोकसभा चुनाव में आरा और काराकाट सीटों पर हार का सामना कर चुके हैं, लेकिन उनकी यह मुलाकात राजपूत समाज के सियासी प्रभाव और बिहार की बदलती राजनीतिक गणित को नए सिरे से परिभाषित करने की ओर इशारा करती है. पवन सिंह ने काराकाट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और 2.74 लाख वोट हासिल किए, लेकिन सीपीआई-माले के राजाराम सिंह से 1.05 लाख वोटों के अंतर से हार गए. उनकी उम्मीदवारी ने एनडीए के उपेंद्र कुशवाहा की हार में अहम भूमिका निभाई, क्योंकि पवन सिंह ने राजपूत वोटों को बांटा, जिसका फायदा माले को मिला.

कुशवाहा वर्सेज राजपूत होगा?

दूसरी ओर, आरा में बीजेपी के दिग्गज नेता आरके सिंह को सीपीआई माले के सुदामा प्रसाद ने करीब 60 हजार वोटों से हराया. आरके सिंह ने अपनी हार का ठीकरा बीजेपी के कुछ बड़े नेताओं पर फोड़ा. उन्होंने हाल ही में सार्वजनिक मंच से एक जाति विशेष पर हार का ठिकरा फोड़ा था. पवन सिंह की काराकाट में मिली हार में भी इस जाति के वोटर ने अहम रोल अदा किया था. उपेंद्र कुशवाहा तो दावा कर चुके हैं कि पवन सिंह को उनके खिलाफ साजिश के तहत काराकाट से खड़ा किया गया, जिससे कुशवाहा और राजपूत वोटों का बंटवारा हुआ.

किस गठबंधन को नुकसान?

पवन सिंह और आरके सिंह दोनों राजपूत समाज के प्रभावशाली चेहरे हैं. बिहार में राजपूत जाति को एनडीए का कोर वोटर माना जाता है और इस समुदाय का प्रभाव शाहाबाद क्षेत्र आरा, बक्सर, सासाराम, काराकाट में खासा है. पवन सिंह की भोजपुरी सिनेमा में लोकप्रियता और युवाओं के बीच उनकी फैन फॉलोइंग उन्हें एक मजबूत जनाधार देती है, जबकि आरके सिंह का प्रशासनिक अनुभव और बीजेपी में रसूख उन्हें सियासी रणनीति का माहिर बनाता है.

क्या कहते हैं जानकार?

बिहार को करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार संजीव पांडेय कहते हैं, ‘इस मुलाकात को केवल शिष्टाचार भेंट मानना भूल होगी. पवन सिंह का नई सोच वाला बयान इस बात का संकेत है कि दोनों नेता 2025 के विधानसभा चुनाव में एक नई रणनीति के साथ उतर सकते हैं. चर्चा है कि पवन सिंह एक नई राजनीतिक पार्टी बना सकते हैं या फिर एक नई नवेली पार्टी में जा सकते हैं. यदि आरके सिंह और पवन सिंह एक मंच पर आते हैं तो यह राजपूत वोटों को एकजुट करने की दिशा में बड़ा कदम हो सकता है, जो बीजेपी और एनडीए के लिए चुनौती बन सकता है.

बिहार में राजपूत वोटरों की संख्या करीब 5-6% है, लेकिन उनकी सामाजिक और आर्थिक प्रभावशीलता उन्हें महत्वपूर्ण बनाती है. काराकाट और आरा में राजपूत वोटों का बंटवारा 2024 में एनडीए की हार का बड़ा कारण बना. ऐसे में देखना होगा कि दोनों नेताओं की मुलाकात किस रणनीति के तहत हुई है?

रविशंकर सिंहचीफ रिपोर्टर

भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...और पढ़ें

भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...

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First Published :

August 19, 2025, 12:59 IST

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