नकारात्मक भावनाओं से कैसे बाहर निकलें?

1 month ago

आज के समय में कई व्यक्ति कभी न कभी ईर्ष्या, क्रोध, लोभ और घृणा जैसी नकारात्मक भावनाओं के शिकार हो जाते हैं. इन भावनाओं का न केवल हमारे मन और शरीर पर बहुत गहरा असर पड़ता है बल्कि हमारे रिश्तों पर भी इसका बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. देखा जाए तो इसका मुख्य कारण प्रेम है. प्रेम कभी बेचैनी पैदा करता है तो कभी ईर्ष्या पैदा करता है. प्रेम के कारण ही क्रोध आता है और प्रेम की वजह से ही दुख भी होता है.

वस्तु के प्रेम को लोभ कहते हैं, व्यक्ति का प्रेम मोह में बदल जाता है और परिस्थिति से प्रेम व्यक्ति को दुखी करता है. लेकिन प्रेम के बिना जीवन कोई जीवन भी नहीं है. इसके बिना तो एक कीड़ा भी नहीं जीना चाहता. प्रेम तो सबको चाहिए. ईश्वर भी प्रेम से ही प्रसन्न होते हैं. लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि प्रेम कोई भावना नहीं है; वह तो हमारा अस्तित्व है. गहराई से देखा जाए तो प्रेम ही दुनिया की सभी समस्याओं का कारण है लेकिन प्रेम ही सभी समस्याओं का हल भी है.

प्रेम सूक्ष्म होने के नाते बड़ा नाज़ुक होता है, इसलिए प्रेम प्रहार का शिकार बन जाता है. जहां प्रेम होता है, वहां बहुत जल्दी घाव होने लगता है. जब आप अपने बच्चों, बड़ों, भाई-बहनों से प्रेम करते हैं और वे आपकी अपेक्षाओं के अनुसार व्यवहार नहीं करते, तो आघात लगता है. यदि सड़क पर जाने वाला कोई अनजान व्यक्ति आपको नमस्कार न करे तो आपके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, मगर यदि आपके जान-पहचान के लोग आपको देखकर मुस्कुराएं नहीं या जल्दी में बिना नमस्कार किए चले जाएं तो आपको बुरा लगता है. आप देखेंगे कि अक्सर इसी कारण लोग निष्ठुर हो जाते हैं और वे दूसरे लोगों को हर बात पर ‘न’ बोलने लगते हैं; उनकी बातों में कठोरता और क्रूरता झलकती है. साथ ही यदि हर समय सिर्फ प्रेम की ही बातें करते रहें, तो प्रेम को क्रोध, नफरत, ईर्ष्या, द्वेष और शिकायत में बदलने में कोई देरी नहीं लगती. तो प्रेम को कैसे बचाएं?

प्रेम को सुरक्षित रखने का तरीका है ज्ञान. जब प्रेम ज्ञान के कवच से सुरक्षित हो जाता है, तो वह विकार नहीं बनता. प्रेम को प्रेम ही बने रहने दें; उसे मोह, लोभ या ईर्ष्या में न बदलने दें. ज्ञान दिमाग को ठंडा रखता है और इससे प्रेम शुद्ध बना रहता है. ज्ञानियों और संतों का प्रेम ऐसा ही होता है जिसमें विकार की संभावना नहीं होती. यदि आपका प्रेम ईर्ष्या में बदल गया है, तो ईर्ष्या से बाहर निकलने के लिए यह समझना जरूरी है कि जिसके प्रति ईर्ष्या है, वह भी मरेगा और एक दिन आप भी समाप्त हो जाएंगे. सब कुछ क्षणिक है; सब कुछ खत्म हो जाना है. ऐसा जानकर मन शांत हो जाता है.

इसी तरह यदि किसी से मोह या लगाव है, तो उसे ईश्वर को समर्पित कर दें. यदि बेटे से मोह है, तो ईश्वर से प्रार्थना करें कि “ईश्वर, आपने ही यह बेटा दिया है, मैं इसे आपको समर्पित करता हूं.” जिससे हमें पीड़ा हो रही है, जब हम वह ईश्वर को समर्पण कर देते हैं, तो वह पीड़ा समाप्त हो जाती है और जीवन में प्रसन्नता आने लगती है. दुख बांटने से कभी समाप्त नहीं होता और सुख बांटने से कभी कम नहीं होता. अपने सुख बांटें और अपने दुख केवल ईश्वर को समर्पित कर दें या फिर उसे तपस्या समझकर झेल लें. जीवन तो क्षणिक है, यह पता नहीं कब खत्म हो जाएगा. तो खुद रो-रोकर या औरों को रुलाकर, शिकायत करके, पीड़ा सहन कर जीने में क्या रखा है? ऐसा जीवन अज्ञानियों का जीवन है. ज्ञानी कैसे जीते हैं? वे जानते हैं कि मुझे जो मिलना है, वह मिलकर रहेगा और जो प्रयास मुझे करना है, वह मैं करता रहूंगा. अगर आप ऐसा करेंगे, तो आपका व्यक्तित्व निखरेगा. आप अपने जीवन का आनंद लेंगे.

जब आप प्रसन्न रहते हैं, तो हर व्यक्ति आपके साथ रहना चाहता है. घर पहुंचने पर यदि आपके परिवार के लोग प्रसन्न हैं, शिकायत नहीं कर रहे हैं, तो आपका घर पर रहने का मन करता है; नहीं तो यदि घर में कोई व्यक्ति हमेशा शिकायत करता हो, तो आप घर से बाहर निकलने के तरीके सोचने लगते हैं. हम अक्सर एक-दूसरे के जीवन को शिकायतों, क्रोध, घृणा और दुख से भर देते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए. हमारा व्यवहार ऐसा होना चाहिए कि हमारे दोस्त या परिवार के लोग जब हमारे संपर्क में आएँ, तो वे खुश होकर जाएं.

इस संसार में हर चीज कर्म के हिसाब से चलती है. आप अपने जीवन में देखें, ऐसे कितने लोग हुए हैं जिनके लिए आपने बहुत कुछ अच्छा किया, एक भी गलत शब्द नहीं कहा, फिर भी वह आपके दुश्मन बन गए. ऐसा लगता है कि अच्छा खासा आदमी हमारा दुश्मन कैसे बन गया? आपने तो उसके लिए अच्छा किया, फिर भी उसने दुश्मनी पाल ली. ऐसे ही जीवन में कुछ ऐसे भी लोग मिले जिनके लिए आपने कुछ विशेष नहीं किया, फिर भी वे लोग आपके काम आ गए. कई बार तो आपको किसी अनजान व्यक्ति से मदद मिली है. कई बार दुश्मन भी आपकी मदद कर देते हैं. इसलिए समझ में नहीं आता है कि कौन दुश्मन है और कौन दोस्त है. आप यह परख नहीं सकते क्योंकि सब कुछ कर्म के हिसाब से चलता है.

हमारा कर्म और हमारा समय ठीक रहे, तो दुश्मन भी हमारे काम आ जाएँगे, वे भी हमारी मदद करेंगे. लेकिन अगर हमारा समय खराब है, तो दोस्त भी दुश्मन की तरह व्यवहार करते हैं. यह सब कर्मों के कारण है. इसलिए हम अपनी तरफ से सबके लिए अच्छा करें, अपनी तरफ से सबको आज़ाद कर दें और अपने मन को खाली रखें. यदि आप ऐसा संकल्प लेकर जीवन जीते हैं, तो आप सत्संगी हैं और आप पाएँगे कि कोई भी नकारात्मक भावनाएँ आपको परेशान नहीं करेंगी.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

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