पत्थर मेलाः 26 मिनट तक एक-दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं लोग, फिर हुआ राजतिलक

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Last Updated:October 22, 2025, 08:33 IST

Shimla Pathar Mela: हिमाचल प्रदेश के शिमला में हर साल दिवाली के एक दिन पत्थर मेले का आयोजन होता है. शिमला के धामी गांव में लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं. मंगलवार को भी मेले का आयोजन किया गया और बड़ी संख्या में लोग मेले में पहुंचे थे.

शिमला. हिमाचल प्रदेश में हर साल दिवाली के एक दिन बाद अनोखे ‘पत्थर मेले’ का आयोन किया जाता है. राजधानी शिमला से 26 किलोमीटर दूर धामी क्षेत्र के हलोग गांव में पत्थरों का ये अनोखा मेला मंगलवार को आयोजित किया गया.

दीपावली पर्व के एक दिन बाद मनाए जाने वाले इस ‘पत्थर मेले’ में स्थानीय गांव और आसपास के गांव के युवाओं की दो टोलियों एक दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाए हैं. दोपहर बाद इस मेले की शुरूआत हुई. मंगलवार को दोपहर साढ़े तीन बजे मेले में पत्थरबाजी का आगाज हुआ और फिर लोग चौक पर एक दूसरे पर पत्थरबाजी करते हुए नजर आए. करीब 26 मिनट तक दो टोलियों में पत्थरबाजी होती रही और फिर एक युवक को पत्थर लगा औऱ उसके खून से देवी मां का राजतिलक किया गया.

हलोग गांव के रहने वाले सुभाष (60) को भी पत्थर लगा. वे कटेडू खुंद से हैं और पुलिस विभाग में एसएचओ के पद से सेवानिवृत हुए हैं. सेवानिवृत एचएसओ सुभाष ने News 18 से कहा कि वे सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें ये पत्थर लगा है. उन्होंने कहा कि ये आस्था का विषय है और अगाध आस्था के चलते अपनी खुशी से पत्थर के इस मेले में शामिल होते हैं और आज तक किसी को भी इसमें कोई गंभीर चोट नहीं आई है, पत्थर लगने से केवल इतना ही खून निकलता है जितना कि एक तिलक लगाने की जरूत होती है.

दरअसल, सदियों से चली आ रही इस परंपरा का जुड़ाव धामी रियासत के राजपरिवार से है. यहां का राजपरिवार पृथ्वी राज चौहान के वंशज है. यहां पर स्थानीयों खूंदों यानी की वीर युवाओं की टोलियां इस पत्थरबाजी में शामिल होती है. परंपरा के अनुसार दीपावली पर्व के एक दिन बाद मनाए जाने वाले इस ‘पत्थर मेले’ में स्थानीय गांव और आसपास के गांव के युवाओं की दो टोलियों एक दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाते हैं. इन खुदों की एक टोली होती है और ये टोलियां इस पत्थरबाजी में शामिल होती है.

सबसे पहला पत्थर राज परिवार की ओर से मारा जाता है, उसके बाद दोनों ओर से तुरंत पत्थरों की बौछार शुरू होती है. दोनों ओर से पत्थरों की बरसात तब तक बंद नहीं होती, जब तक कि कोई लहूलुहान न हो जाए.

इस पत्थरबाजी में जिस व्यक्ति का रक्त निकलता है, उससे मां भद्रकाली को रक्ततिलक किए जाने की परंपरा है. मान्यता है कि धामी में क्षेत्र में आई आपदाओं से प्रजा को बचाने के लिए इस मेले का आयोजन होता है.

राज परिवार के सदस्य जगदीप सिंह ने News 18 को बताया कि मेले की शुरूआत से पहले राजदरबार में सबसे पहले ग्राम देवता देव कुर्गुण की पूजा की जाएगी, ग्राम देवता की पूजा के बाद नरसिंह भगवान की पूजा की जाएगी. पूरे क्षेत्र की सुरक्षा के लिए की नरसिंह की पूजा की जाती है.

राज परिवार के सदस्य जगदीप सिंह बताते हैं कि इस पूजा के बाद नरसिंह के पुजारी सुरक्षा के फूल लेकर आएंगे और यहां से राजपरिवार के सदस्य फूल लेकर मेले के मुख्य स्थान, जिसे स्थानीय बोली में शारड़ा कहा जाता है, तक जुलूस की शक्ल में जाएंगे. रास्ते में जितने भी देवस्थान आएंगे वहां पर पूजा करते हुए शारड़ा तक पहुंचते हैं.

उन्होंने बताया कि राजपरिवार के खूंद (टोली) के साथ धगोई, जठौती, कटेड़ू और टुनसू की टोली चलती है और दूसरी ओर से जमोगी खुंद (टोली) आएंगे. उसके बाद विधिपूर्वक राजपरिवार की ओर से पहला पत्थर मारा जाएगा, उसके साथ ही दोनों ओर से पत्थरों की बरसात शुरू हो जाएगी. इस मेले में देव कुर्गुण, नरसिंह और माता भीमकाली के पुजारी हिस्सा लेते हैं.

उन्होंने बताया कि धामी रियासत में सैकड़ों वर्ष पूर्व सुख-शांति के लिए नरबलि की प्रथा थी. हालांकि, बाद में एक रानी ने नरबलि की जगह खून से तिलक लगाने की प्रथा शुरू की. इस रिसायत की रानी शारड़ा नामक स्थान पर सती हुई थी और उन्होंने सती होने से पहले नरबलि और पशुबलि पर रोक लगाई गई थी. बलि के स्थान पर इस पत्थर के मेले का आयोजन किया जाता है.

First Published :

October 21, 2025, 15:31 IST

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