पहले बारिश, अब देश में पड़ेगी हाड़ कंपाने वाली सर्दी...आ गई डरावनी भविष्यवाणी!

3 hours ago

Last Updated:August 28, 2025, 07:33 IST

Winter Weather Forecast: देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में अभी भी अच्‍छी बारिश हो रही है. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग यानी IMD ने दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्‍य रहने की संभावना जता दी थी. IMD की यह भविष्‍यवाणी पूरी ...और पढ़ें

पहले बारिश, अब देश में पड़ेगी हाड़ कंपाने वाली सर्दी...आ गई डरावनी भविष्यवाणी!भारत में इस बार कड़ाके की ठंड पड़ने की संभावना है. (फाइल फोटो)

Winter Weather Forecast: भारत में इस बार मानूसन पूरी तरह से मेहरबान रहा है. बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में लगातार नए सिस्‍टम डेवलप होने की वजह से मानसून लगातार मजबूत बना रहा. इसके वजह से उत्‍तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक जोरदार बारिश हुई. इसके लिए एक कारण सबसे ज्‍यादा जिम्‍मेदार है – पैसिफिक रीजन (प्रशांत महासागर क्षेत्र) में अल-नीनो के बजाय ला-नीना का एक्टिव होना. ला-नीना का भारत में पड़ने वाली सर्दी पर भी व्‍यापक प्रभाव पड़ने की संभावना प्रबल है. अमेरका के नेशनल ओश‍िएनिक एंड एटमॉसफेरिक एडमिस्‍ट्रेशन ( Oceanic and Atmospheric Administration – NOAA) ला-नीना के प्रभावी रहने का पूर्वानुमान जारी किया है. इससे इंडोनेशिया से लेकर लैटिन अमेरिका तक के क्षेत्र पर प्रभाव तो पड़ेगा ही, इंडियन सब-कॉन्टिनेंट पर भी इसका व्‍यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है. इस तरह भारत में इस बार कड़ाके की ठंड पड़ने की संभावना है.

NOAA ने बताया है कि सितंबर से नवंबर के बीच ला नीना विकसित होने की संभावना करीब 53% है, जबकि साल के अंत तक यह संभावना 58% तक पहुंच सकती है. एक बार शुरू होने पर यह क्‍लाइमेट पैटर्न सर्दियों के अधिकांश समय तक सक्रिय रह सकता है और शुरुआती वसंत तक असर डाल सकता है. ला नीना एक प्राकृतिक जलवायु प्रणाली है, जिसमें भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर (Equatorial Pacific) का पानी सामान्य से ठंडा हो जाता है. इसका असर ऊपरी वायुमंडलीय पैटर्न पर भी पड़ता है, जो वैश्विक मौसम को प्रभावित करता है. इसके विपरीत एल नीनो के दौरान महासागर का पानी सामान्य से ज्यादा गर्म हो जाता है. दोनों ही स्थितियां उत्तरी गोलार्ध की सर्दियों में सबसे ज्यादा असर डालती हैं. इस बार आने वाली ला नीना अपेक्षाकृत कमज़ोर मानी जा रही है, जिसका मतलब है कि इसके प्रभाव हमेशा साफ़ तौर पर दिखाई नहीं देंगे. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि यह मौसम का एक ब्लूप्रिंट जरूर प्रदान करता है.

ला-नीना मतलब तापमान में गिरावट

ला-नीना एक जलवायु पैटर्न है जिसमें मध्य प्रशांत महासागर का सतही जल सामान्य से अधिक ठंडा हो जाता है, जिससे दुनिया भर के मौसम पर असर पड़ता है. यह आमतौर पर भारत में तेज़ मानसून और भारी वर्षा लाता है, जबकि अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों में सूखे का कारण बनता है. यह वैश्विक तापमान को थोड़ा ठंडा भी करता है. इसके विपरीत अल नीनो के प्रभावी होने से तापमान बढ़ता है. इस तरह ला-नीना के एक्टिव होने से भारत समेत एशिया के अधिकांश देशों में कड़ाके की ठंड पड़ने की संभावना रहती है. अमेरिका के मौसम विज्ञानियों की मानें तो इस बार उसी तरह का माहौल बन सकता है.

ला-नीना और अल-नीनो

ला-नीना और उसका विपरीत चक्र एल-नीनो वैश्विक स्तर पर मौसम के पैटर्न को गहराई से प्रभावित करते हैं. जहां ला-नीना के दौरान प्रशांत महासागर का इंडोनेशिया से दक्षिण अमेरिका तक का हिस्सा सामान्य से ठंडा हो जाता है, वहीं एल-नीनो में यही समुद्री क्षेत्र ज्यादा गर्म हो जाता है. ला-नीना के असर से भारत में सामान्य या सामान्य से अधिक मानसूनी बारिश होती है, लेकिन अफ्रीका के कई हिस्सों में सूखा और अटलांटिक क्षेत्र में तूफानों की तीव्रता बढ़ जाती है. दूसरी ओर, एल-नीनो भारत में भीषण गर्मी और सूखे की वजह बनता है, जबकि दक्षिणी अमेरिका में यह अतिरिक्त वर्षा लाता है. पिछले दशक की शुरुआत में 2020 से 2022 तक लगातार तीन साल ला-नीना सक्रिय रहा था, जिसे ट्रिपल डिप ला-नीना कहा जाता है. इसके बाद 2023 में एल-नीनो ने दस्तक दी. वैज्ञानिक मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के चलते अब ला-नीना और एल-नीनो जैसी घटनाएं और ज्यादा बार और ज्यादा तीव्रता के साथ हो सकती हैं.

Manish Kumar

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Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

August 28, 2025, 07:14 IST

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