Last Updated:February 21, 2025, 11:12 IST
Mahabharata Katha : युधिष्ठिर को सूर्य ने अक्षयपात्र दिया था, जो उन्हें वनवास में तरह तरह के खाने के व्यंजन देता था, बस इसके साथ एक शर्त जरूरत थी.

हाइलाइट्स
युधिष्ठिर को सूर्य ने दिया था ये चमत्कारिक भोजन पात्रइस पात्र से पांडवों को मिलते थे तरह तरह के पके पकाए व्यंजनये चमत्कारिक पात्र केवल शाकाहारी खाना ही देता थापांडव जब 13 साल के लिए वनवास गए तो उन्हें एक चीज की कमी कभी नहीं पड़ी. वनवास में भी उन्हें तरह तरह का दिव्य भोजन मिलता रहा. यही नहीं, वनवास के दौरान उनसे मिलने जो ऋषि मुनि या मेहमान आते थे, उन्हें भी पांडव छककर स्वादिष्ट खाना खिलाते थे, जिसमें तरह तरह के व्यंजन होते थे. ये खाना ऐसा होता था कि हर कोई इसकी तारीफ करता था. आखिर क्या था इसका राज.
दरअसल इसका राज एक ऐसे पात्र में छिपा था, जिसे चमत्कारिक बर्तन कहा गया. इसे अक्षयपात्र भी कहा जाता था. ये पांडवों को कैसे मिला, इसकी भी एक कहानी है. ऐसा नहीं कि पांडव जैसे ही वनवास के लिए निकले, उन्हें ये जादुई भोजन पात्र मिल गया था, जो मनचाहे भोजन उनके सामने परोसता था.
जब पांडव 13 सालों के वनवास के लिए गए तो उनके सामने सबसे बड़ी समस्या भोजन ही थी. शुरू में तो उन्हें बहुत दिक्कत हुई. कई बार आधे पेट तो कई बार भूखा सोना पड़ा. जंगल में पर्याप्त भोजन तलाशना मुश्किल था. उसकी सीमाएं थीं.
उनके पास जब ऋषि-मुनि और अन्य मेहमान भी खूब आते थे, सभी को भोजन कराना बहुत मुश्किल होने लगा था. ऐसे में युधिष्ठिर को एक चमत्कारिक बर्तन मिला, जिससे फिर उन्हें कभी भोजन की कमी नहीं पड़ी. ये चमत्कारिक बर्तन क्या कहलाता था. इसकी भी कुछ शर्तें थीं, जिस चक्कर में वो एक बार बड़ी समस्या में भी पड़े.
ना केवल उससे वो लोग मनचाहा भोजन करते थे बल्कि उनके पास आने वाले सैकड़ों ऋषि मुनियों की भी पूरी आवभगत करते थे. बगैर भोजन किए उन्हें जाने नहीं देते थे. भोजन भी ऐसा होता था कि सभी मेहमान और ऋषि तृप्त होकर ही उनके पास से जाते थे.
ये जादुई दिव्य भोजन पात्र पांडवों को कैसे वनवास में मिला, इसकी भी एक कहानी है. (Image generated by Leonardo AI)
युधिष्ठिर को ये भोजन कैसे मिला. इसमें ऐसा क्या था कि कभी भोजन कम नहीं होता था, उसकी भी एक कहानी है. ये कहानी काफी रोचक है. जब पांडवों ने वनवास खत्म करके महल का रुख किया तो इसका क्या हुआ.
तब युधिष्ठिर ने खास तपस्या की
दरअसल जब पांडवों के वनवास के दौरान उनकी कुटिया में मेहमान और ऋषि मुनि आने लगे तो द्रौपदी ने युधिष्ठिर से इस समस्या का निदान करने के लिए कहा. उन्होंने जल में खड़े होकर सूर्यदेव की तपस्या प्रार्थना करनी शुरू की. कई दिन तक जब वह ऐसा करते रहे तो सूर्य उपस्थित हुए. उन्होंने युूधिष्ठिर से इस तप के बारे में पूछा. तब सकुचाते हुए युधिष्ठिर ने उन्हें सारी बात बताई और निदान करने को कहा.
जब पांडव वनवास में थे, तब उनके सामने एक बड़ी समस्या भोजन की थी. खुद तो वो किसी तरह रुखा-सूखा खा लेते थे लेकिन आने वाले मेहमानों को क्या खिलाएं- ये बड़ा सवाल था. (Image generated by leonardo ai)
सूर्य ने चमत्कारिक पात्र दिया
सूर्य भगवान ने युधिष्ठिर से कहा कि अब उन्हें वनवास के दौरान ना केवल खुद के भोजन की कभी चिंता नहीं करनी होगी बल्कि वह जितने भी मेहमान उनके पास आएंगे, उन्हें भी दिव्य भोजन करा सकेंगे. इतना कहने के बाद युधिष्ठिर को उन्होंने एक चमत्कारिक पात्र दिया. इस पात्र को अक्षय पात्र कहा जाता है. दरअसल युधिष्ठिर को सूर्य से इस संबंध में पूजा करने की तरकीब धौम्य नाम के पारिवारिक पुजारी ने सुझाई.
ये चमत्कारिक पात्र पांडवों और उनके मेहमानों के खाने की तरह की मांग को पूरा करता था. ये फल से लेकर दिव्य भोजन और सब्जियां देता था. (IMAGE GENERATED BY LEONARDO AI)
इसके साथ कुछ नियम भी थे
सूर्यदेव ने निर्देश दिया कि जब तक द्रौपदी अपना भोजन समाप्त नहीं कर लेती, तब तक यह पात्र हर रोज और हर प्रहर अनंत मात्रा में भोजन उपलब्ध कराता रहेगा. इस पात्र से उन्हें अन्न, फल, शाक आदि चार प्रकार की भोजन सामग्रियां मिलती थीं.
जब दुर्वासा ऋषि खाने के लिए आए
इसकी एक और कहानी भी कही जाती है. दरअसल वनवास के दौरान जब एक दिन पांडव और उसके बाद द्रौपदी भोजन कर चुकीं थीं, तब ऋषि दुर्वासा पांडवों से मिलने आए. उनके साथ उनके बहुत ढेर सारे शिष्य भी थे. उन्होंने आते ही तुरंत खाना खाने की इच्छा जताई. द्रौपदी चिंता में पड़ गईं. इस बीच दुर्वासा ने अचानक कहा कि वो और उनके शिष्य नदी में स्नान करके आ रहे हैं. फिर भोजन करेंगे.
मुश्किल में द्रौपदी ने क्या किया
अब दुखी ने द्रौपदी ने कृष्ण से मदद के लिए प्रार्थना की. कृष्ण प्रकट हुए. उनसे अक्षय पात्र लाने के लिए कहा. इसमें एक चावल का दाना बचा हुआ था. कृष्ण ने इसे खा लिया. इसके बाद कहा कि उनका पेट तो इस चावल के दाने से ही भर गया है…अब द्रौपदी तुम चिंता मत करो. दुर्वासा और उनके शिष्य आएंगे ही नहीं. ऐसा ही हुआ भी. जब दुर्वासा और उनके साथ आए लोग नहाकर निकले और उन्होंने महसूस किया कि उनका पेट भरा हुआ है. वो लोग नहाकर सीधे ही चले गए. द्रौपदी की ये पिदा टल गई.
वनवास के बाद क्या हुआ पात्र का
जब पांडवों ने अपने 13 वर्ष के वनवास को पूरा किया, तो अक्षय पात्र उनके साथ महल में आ गया. तब इस पात्र की जरूरत ही नहीं रह गई. हालांकि ये पात्र उनके वनवास के दौरान एक महत्वपूर्ण संपत्ति थी, जिससे उन्हें कभी भोजन की कमी नहीं हुई.
जाहिर सी बात है कि उन्हें तब अक्षय पात्र की जरूरत नहीं रह गई थी लेकिन चूंकि ये चमत्कारिक पात्र उन्हें सूर्य से मिला था, लिहाजा ये ईश्वरीय आशीर्वाद का प्रतीक भी था. उन्होंने इस पात्र को महल में सजाकर सुरक्षित रखा.
तब दुर्योधन क्रोधित हो गया
जब पांडव वनवास में थे तो दुर्योधन ने अपने जासूस उनके आसपास छोड़ रखे थे. जब उसे मालूम हुआ कि पांडवों को एक चमत्कारिक अक्षय पात्र मिल गया है, तो वह दुर्योधन क्रोधित हो गया. वह इस बात से परेशान था कि पांडव निर्वासन के दौरान बिना किसी कठिनाई के कैसे उनके पास पहुंचने वाले मेहमानों और ऋषियों को भोजन करा सकने में समर्थ हो गए हैं.
दुर्योधन ने ही फिर साजिश करके दुर्वासा ऋषि को पांडवों के पास ऐसे समय भेजा था जब द्रौपदी भोजन कर लें. उसके बाद अक्षय पात्र से कोई भोजन नहीं मिल सके. लेकिन इसका असर भी पांडवों पर कुछ पड़ा नहीं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अक्षय पात्र केवल शाकाहारी भोजन ही देता था. इसमें फल, सब्जियां, अनाज और अन्य शाकाहारी खाद्य पदार्थ शामिल थे. मांसाहारी भोजन का उल्लेख इसमें नहीं मिलता. हालांकि पांडव मांसाहारी भोजन के शौकीन थे, जिसे वह शिकार करके बनाते थे. ये भोजन उनके लिए खासतौर पर भीम द्वारा पकाया जाता था, जो खाना बनाने में बहुत एक्सपर्ट थे.
Location :
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
First Published :
February 21, 2025, 09:34 IST