बांग्लादेश के अरबों रुपए सालों से कैसे दबाए बैठा पाकिस्तान, गोल्ड से PF मनी तक

2 hours ago

पाकिस्तान के विदेश मंत्री मोहम्मद इसहाक़ डार को तब बांग्लादेश से बड़ा झटका लगा जबकि बांग्लादेश ने कहा कि उसकी मोटी संपत्ति और पैसा पाकिस्तान ने 50 सालों से दबा रखा है. यहां तक कि पाकिस्तान ने उसकी विदेशी सहायता की मोटी रकम तक खा ली.

पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री मोहम्मद इसहाक़ डार ने ढाका पहुंचने के बाद ये झूठा दावा किया कि बांग्लादेश के साथ 1971 के अनसुलझे मुद्दे हल कर लिए गए हैं. तुरंत ही उन्हें इसका जवाब मिल गया जबकि बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार तौहिद हुसैन ने उन्हें झूठ ठहराते हुए कहा कि 53 सालों से पाकिस्तान ने उनके देश का काफी पैसा और संपत्ति दबा रखी है, जो वो देने का नाम भी नहीं ले रहा.

बांग्लादेश का दावा है कि पिछले 53 सालों से पाकिस्तान ने करीब 4.52 अरब डॉलर ( ₹38,000 करोड़) की संपत्ति और पैसा दबा रखा है, जो 1971 के विभाजन से पहले संयुक्त पाकिस्तान की परिसंपत्तियों में बांग्लादेश का हिस्सा था.

बांग्लादेश अब इस संपत्ति को मांग रहा है. पाकिस्तान के पास तो खुद खाने के लिए नहीं है, वो ये धन पाकिस्तान को कहां से देगा. दरअसल बांग्लादेश पहले की संयुक्त संपत्तियों, विदेशी सहायता, भविष्य निधि और बचत योजनाओं का अपना उचित हिस्सा वापस दिया जाए.

इन सब लोगों के पैसे हड़पे

इसमें 1970 के भोला चक्रवात के लिए 200 मिलियन डॉलर की विदेशी सहायता, बांग्लादेशी कर्मचारियों की भविष्य निधि, बचत योजनाएं और अन्य बैंकिंग संपत्तियां शामिल हैं. बांग्लादेश के बनने से पहले इस ओर के पूर्वी पाकिस्तान में सरकारी आफिसों और प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों की भविष्य निधि की रकम पाकिस्तान के पास पहुंचती थी. इसे तो पाकिस्तान ने पूरा ही हड़प लिया.

सबसे शर्मनाक तो ये है

तब पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में भोला चक्रवात 12-13 नवंबर 1970 में समुद्र तट से टकराया. ये अब तक का सबसे विनाशकारी उष्णकटिबंधीय चक्रवात माना जाता है. इसमें चक्रवात की हवाएं लगभग 185 किलोमीटर प्रति घंटा (115 मील प्रति घंटा) की रफ्तार से चलीं. इसने समुद्र में 20 फीट ऊंची लहरें पैदा कीं.

इस आपदा में लगभग 3 से 5 लाख लोगों की मौत हुई. इसी के बाद दुनियाभर से सहायता पाकिस्तान पहुंचने लगी. इसी मामले में भेजी गई 20 करोड़ डॉलर की विदेशी सहायता को पाकिस्तान ने पूरा ही हड़प लिया. इसे बाद में पाकिस्तान ने अपनी लाहौर शाखा में ट्रांसफर कर लिया.

बांग्लादेश की मांग है कि विभाजन से पहले की सारी बाहरी और आंतरिक संपत्तियां जो अब पाकिस्तान के नियंत्रण में हैं, उनका उचित हिस्सा बांग्लादेश को दिया जाए. बांग्लादेश का कहना है कि वो लंबे समय से ये मामले उठाता रहा है. जिन्हें देने को पाकिस्तान तैयार ही नहीं.

प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया

1947 से 1971 तक पश्चिम पाकिस्तान (मौजूदा पाकिस्तान) ने पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) के प्राकृतिक संसाधनों और विदेशी मुद्रा (जैसे जूट निर्यात) का बड़ा हिस्सा अपने विकास के लिए इस्तेमाल किया, जबकि पूर्वी पाकिस्तान में भारी गरीबी, बेरोजगारी व आधारभूत ढांचे की कमी बनी रही. प्रशासन, सिविल सेवा, सेना और शिक्षा आदि में भी पश्चिमी पाकिस्तान का योगदान और भागीदारी अधिक थी, जबकि पूर्वी पाकिस्तान को हाशिए पर रखा गया.

बांग्लादेश बनने से पहले पूर्वी पाकिस्तान को राजनीतिक प्रतिनिधित्व और अधिकारों के लिए बार-बार संघर्ष करना पड़ा, जिसका परिणाम 1971 के मुक्ति युद्ध के रूप में हुआ.

पूर्वी पाकिस्तान से जाने वाले पैसा अपने काम में लगाया

ऐतिहासिक समीक्षा और विशेषज्ञों के अनुसार, पाकिस्तान सरकार ने 1947 से 1971 के बीच बांग्लादेश के सामाजिक, आर्थिक विकास या बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए अपेक्षाकृत कम बजट का इस्तेमाल किया, उसके उलट वहां से आने वाले ज्यादा धन को अपने लिए इस्तेमाल करने का काम लगातार किया. इसके उलट इस दौरान पूर्वी पाकिस्तान के विकास की तुलना में पश्चिमी पाकिस्तान को ही प्रधानता दी गई, जिससे क्षेत्रीय असंतुलन और असमानता लगातार बढ़ती रही.

जब बांग्लादेश स्वतंत्र हुआ, तो सवाल उठा कि पाकिस्तान की राष्ट्रीय संपत्तियों और विदेशी मुद्रा रिज़र्व में उसका हिस्सा कितना है. उसी तरह पाकिस्तान के कर्ज़ों, दूतावासों की प्रॉपर्टीज़, विदेशी कंपनियों और बैंकों में जमा पैसों को कैसे बांटा जाए.

विदेशी मुद्रा भंडार और गोल्ड रिज़र्व का हिस्सा

– 1971 में पाकिस्तान का कुल विदेशी रिज़र्व लगभग $500–600 मिलियन (करीब 4000 -5000 करोड़ रुपए) था.
बांग्लादेश का कहना था कि उसमें उसका लगभग 22फीसदी हिस्सा बनता है (क्योंकि ईस्ट पाकिस्तान की आबादी कुल आबादी का लगभग 55% थी, लेकिन GDP योगदान और अन्य फैक्टर्स को देखते हुए “22% फॉर्मूला” लगाया गया. इसका मूल्य करीब लगभग $170–200 मिलियन (1490 करोड़ रुपए से 1763 रुपए) बनता था.

विदेशों में पाकिस्तान की प्रॉपर्टीज़

पाकिस्तान के पास दुनियाभर में दूतावासों, हाई कमीशनों और सरकारी इमारतों का बड़ा नेटवर्क था. बांग्लादेश ने इसमें भी 22% हिस्सा मांगा. उदाहरण के लिए, लंदन, वॉशिंगटन, न्यूयॉर्क, नई दिल्ली जैसे शहरों में पाकिस्तान की करोड़ों डॉलर की प्रॉपर्टी थी. इसमें बांग्लादेश को कुछ नहीं मिला.

स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान में जमा ईस्ट पाकिस्तान का हिस्सा

1971 में ईस्ट पाकिस्तान के उद्योगपतियों, व्यापारियों और यहां तक कि सरकार की एजेंसियों के पास स्टेट बैंक और नेशनल बैंक जैसी संस्थाओं में अरबों टका जमा थे. युद्ध के बाद ये पैसा पाकिस्तान ने रोक लिया. बांग्लादेश लगातार कहता रहा कि यह उसके नागरिकों का धन है जिसको लौटाया जाए.

इंश्योरेंस और बैंक कंपनियां

ईस्ट पाकिस्तान की कई बीमा कंपनियां और बैंक का बड़ा हिस्सा वेस्ट पाकिस्तान ट्रांसफर हो गया. बांग्लादेश ने इनकी संपत्तियों का क्लेम किया.

औद्योगिक संपत्तियां और शेयर

बड़े उद्योगपति (ज्यादातर वेस्ट पाकिस्तान से आए) ने ईस्ट पाकिस्तान में निवेश किया. आज़ादी के बाद बांग्लादेश सरकार ने उन फैक्ट्रियों और कंपनियों को “छोड़ी संपत्ति” घोषित कर दिया. पाकिस्तान इस पर आपत्ति करता रहा, लेकिन बांग्लादेश कहता रहा कि ये भी संपत्ति-विभाजन का हिस्सा है.

सरकारी कर्ज़ और देनदारियां

पाकिस्तान कहता था कि बांग्लादेश को पाकिस्तान के विदेशी कर्ज़ में भी हिस्सा लेना चाहिए. बांग्लादेश का तर्क था कि यह कर्ज़ ज्यादातर वेस्ट पाकिस्तान के विकास पर खर्च हुआ, इसलिए हम इस बोझ को क्यों उठाएं. इस पर सहमति कभी नहीं बनी.

अनुमानित आंकड़े (कई रिसर्च और वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट्स के आधार पर)

बांग्लादेश का दावा – करीब $4 अरब (1971 की वैल्यू के हिसाब से)

पाकिस्तान का ऑफर – इससे बहुत और शर्त ये भी कि बांग्लादेश विदेशी कर्ज़ का भी हिस्सा ले. इस विवाद के कारण बांग्लादेशी बैंक खातों और निजी संपत्तियों के कई मामले भी फंसे रहे हैं.

स्थिति अब (2025 तक)
यह विवाद अब भी पूरी तरह सुलझा नहीं है. पाकिस्तान ने कई बार कहा कि मामला “क्लोज़” हो चुका है लेकिन बांग्लादेश का कहना है कि कोई मामला क्लोज नहीं हुआ है. ये दोनों देशों के बीच सामान्य रिश्तों में एक अड़चन बनता रहा है.

भारत ने बांग्लादेश अरबों की मदद लगातार की

भारत ने 1971 के युद्ध और बांग्लादेश की आज़ादी के बाद मानवीय और आर्थिक मदद बड़े पैमाने पर दी. 1971 के युद्ध के दौरान 1 करोड़ से अधिक शरणार्थी भारत के पूर्वी राज्यों (पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, असम, बिहार) में आ गए. भारत ने उन पर ही लगभग ₹600–700 करोड़ खर्च किए. यह रकम आज की वैल्यू में 10–12 अरब डॉलर के बराबर बैठती है.
– युद्ध के बाद जब बांग्लादेश स्वतंत्र हुआ, तो भारत ने तुरंत उसकी आर्थिक मदद शुरू की.
– अनाज और खाद्यान्न आपूर्ति
– बांग्लादेश में अकाल जैसी स्थिति थी. भारत ने तुरंत लाखों टन चावल और गेहूं भेजा.
– 1972 में ही भारत ने लगभग 2.5 लाख टन खाद्यान्न भेजा, जो उस समय के लिए बहुत बड़ी मदद थी.
– भारत ने बांग्लादेश को शुरुआती पुनर्निर्माण के लिए ₹200 करोड़ की आर्थिक सहायता दी. ये सीधा “बजटरी सपोर्ट” था, जिससे सरकार अपने प्रशासनिक ढांचे को खड़ा कर सके.

इंडिया ने इंफ्रास्ट्रक्चर और पुनर्निर्माण में कैसे मदद की

– रेलवे लाइन, सड़कें, पुल, और बिजली सप्लाई बहाल करने के लिए भारत ने इंजीनियरिंग और तकनीकी मदद दी.
– भारतीय पब्लिक सेक्टर कंपनियों ने शुरुआती कामों में मदद की.

भारत से ऋण और ग्रांट

भारत ने बांग्लादेश को कम ब्याज पर ऋण दिया, ताकि वह आयात कर सके. इनमें से कुछ राशि बाद में भारत ने “ग्रांट” में बदल दी, जिसे लौटाने की ज़रूरत नहीं रही. अंतरराष्ट्रीय जगत से मदद धीमी आई, इसलिए पहले दो साल तक बांग्लादेश को भारत पर ही निर्भर रहना पड़ा.

1971–72 से 2022–23 तक, बांग्लादेश को भारत की ओर से विकास सहायता के रूप में लगभग 2.143 अरब डॉलर (करीब ₹20–21 हजार करोड़ के बराबर) की सहायता मिली है. पिछले पांच वर्षों में बांग्लादेश को क़रीब ₹940 करोड़ की ग्रांट की राशि वितरित की गई.

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