बिहार में कांग्रेस और पीके की रैलियों में खाली कुर्सियां क्या कहानी कहती हैं?

6 hours ago

पटना. कांग्रेस का बिहार में क्या है? ना नेता है ना नीति है…केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का यह पटना में दिया गया बयान है. …प्रशांत किशोर तो बहरूपिया है और वह बीजेपी की बी टीम हैं, गांधी मैदान में खाली कुर्सियों ने उनको बिहार की राजनीति का आईना दिखा दिया… यह बयान निर्दलीय सांसद पप्पू यादव का है. दरअसल, राहुल गांधी की कांग्रेस और प्रशांत किशोर की जन सुराज की राजनीतिक ताकत को लेकर दिये गए बयानों के मूल में वो खाली कुर्सियां हैं जो प्रशांत किशोर की बदलाव रैली में गांधी मैदान में दिखी और 20 अप्रैल को मल्लिकार्जुन खड़गे की बक्सर की जनसभा दिखी. इन खाली कुर्सियों की राजनीतिक पृष्ठभूमि बड़ी दिलचस्प है और राजनीति के जानकार इसको अलग ही नजरिये से देखते हैं और इस स्थिति का आकलन करते हैं.

दरअसल, बिहार में खाली कुर्सियों की इस कहानी के दोनों किरदारों पर हाल में विमर्श ने अधिक जोर पकड़ा है, क्योंकि जन सुराज के प्रमुख प्रशांत किशोर की बदलाव रैली पटना में हुई थी. इसको लेकर दावा किया गया था कि 5 लाख लोगों की भीड़ जुटेगी. लेकिन, यह चंद हजार में ही सीमित होकर रह गई. तब प्रशांत किशोर के राजनीतिक आधार के बारे में गंभीरता से चर्चा होने लगी और सवाल पूछा जाने लगा कि क्या पीके बिहार में वास्तव में बदलाव लाने की कूवत रखते हैं?

जनसुराज की बदलाव रैली में खाली कुर्सियों ने प्रशांत किशोर को बड़ा सियासी झटका दिया है.

कांग्रेस की जनसभा में खाली कुर्सियां और मल्लिकार्जुन खड़गे की खीझ
ठीक ऐसे ही सवाल कांग्रेस को लेकर भी पूछा जा रहा है, क्योंकि हाल में कांग्रेस ने भी अपने तेवर दिखाये हैं. राहुल गांधी ने बिहार का लगातार कई दौरे किये. यहां तक कि कांग्रेस पार्टी ने बिहार प्रभारी बदल दिए और युवा चेहरा कृष्णा अल्लावरु को जिम्मेदारी दी गई. बिहार के अध्यक्ष बदल दिए गए और दलित नेता राजेश राम को सवर्ण अखिलेश सिंह की जगह बिहार कांग्रेस का चेहरा बनाया गया. वहीं, बिहार महागठबंधन में कांग्रेस ने अपने लिए एक विमर्श खड़ा कर लिया और यह दावा किया कि कांग्रेस का भी अपना आधार है. कांग्रेस ने 70 सीटों से कम पर नहीं मानने की बात भी कह दी. लेकिन, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे जब बक्सर में 20 अप्रैल को जनसभा के लिए पहुंचे तो वहां खाली कुर्सियों के आगे खीझते हुए दिखे.

कांग्रेस जो अपना समझती है, वह उसकी नहीं है!
दरअसल,कांग्रेस का दावा था कि हजारों की भीड़ जुटेगी, लेकिन हजार भी नहीं जुटा पाई. जाहिर तौर पर कांग्रेस की फजीहत हुई.खास सवाल यह कि क्या कांग्रेस की ऐसी फजीहत क्या कोई नई है? राजनीति के जानकार इसको अपने नजरिये से देखते हैं कि कांग्रेस के आधार से जोड़ते हैं. बता दें कि वर्ष 1990 के बाद से ही कांग्रेस के जनाधार का ग्राफ बिहार में लगातार गिरता गया है. जानकार कहते हैं कि अब बिहार में कांग्रेस को जो भी वोट मिलते हैं वह उनका अपना नहीं है.

कांग्रेस के लिए कहीं यह कहावत तो चरितार्थ नहीं हो रही?
वरिष्ठ पत्रकार अशोक शर्मा कहते हैं कि कांग्रेस बिहार में मुस्लिम, दलित और सवर्ण के आधार वोट को लेकर राजनीति करती रही है, लेकिन हाल के दिनों में कांग्रेस ने अपनी पॉलिटिक्स शिफ्ट करने की कोशिश की है. वह दलित विमर्श, जातीय जनगणना, संविधान बचाओ और तमाम ऐसी बातों को लेकर आगे आने लगी है जिस पर आधारित वोटों पर पहले से ही अन्य क्षेत्रीय पार्टियों की दावेदारी चलती है. कांग्रेस उस आधार को चटकाना (सेंधमारी) चाहती है जो उसका था ही नहीं. मुस्लिम परस्ती के साथ ही कभी वह अब ओबीसी और ईबीसी पर फोकस कर रही है तो कई बार दलितों को लेकर अपना आधार पुख्ता करना चाहती है. यहां कहावत चरितार्थ होती दिखती है कि- दुविधा में दोनों गए, माया मिली ना राम!

बक्सर में मल्लिकार्जुन खड़गे की सभा में खाली कुर्सियों ने कांग्रेस की राजनीतिक आधार पर सवाल उठाए हैं.

खाली कुर्सियां और पब्लिक का जिंदाबाद, फिर खड़गे चिढ़ गए
अशोक कुमार शर्मा कहते हैं, मल्लिकार्जुन खड़गे की खाली कुर्सियों की कहानी कुछ ऐसी ही है, क्योंकि कांग्रेस के नये बने अध्यक्ष राजेश राम ने पूरा जोर लगा दिया था कि भीड़ जुटाएं. उन्होंने तैयारियों का जायजा लिया था. कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं ने बक्सर का दौरा भी किया. लेकिन, कुर्सियां खाली की खाली ही रह गईं. इस बात की खीझ मल्लिकार्जुन खड़गे के भाषण में कई बार दिखी भी. जब वह अपना संबोधन दे रहे थे तो थोड़ी बहुत मजूद पब्लिक जिंदाबाद के नारे लगाने लगती जो मल्लिकार्जुन खड़गे को चिढ़ा रहा था. उन्होंने कई बार भीड़ को नारा लगाने से भी रोक दिया.

कांग्रेस ने अपनी गलतियों से गंवाई अपनी सियासी जमीन!
जाहिर तौर पर बिहार में कांग्रेस की मिट्टी पलीद है क्योंकि उसका अपना वोट नहीं है.अशोक शर्मा कहते हैं कि कांग्रेस को ट्रांसफर वोट मिलते हैं और उसका अपना आधार नहीं है और यह पार्टी की बहुत बड़ी कमी है. अगर कांग्रेस का अपना 20% भी वोटों का हिस्सा होता तो वह किसी और गठबंधन में बेहतर प्रदर्शन कर सकती थी.उसके पास विकल्प भी हैं. चिराग पासवान और प्रशांत किशोर जैसे विकल्प उभर रहे हैं और इनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी हैं, ऐसे में कांग्रेस को इनका समर्थन मिल जा सकता है. प्रशांत किशोर ने तो कई बार अपनी विचारधारा भी कांग्रेस के करीब बताई है.परन्तु कांग्रेस की खाली कुर्सियों की ताजा कहानी उस कहानी को ही दुहराती है जो 1990 के दशक में कांग्रेस ने अपनी गलतियों की वजह से गंवाई है.

बिहार के लिए गहराई से नये प्लान पर सोचेगी कांग्रेस?
अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि कई बार कांग्रेस अपना स्टैंड राजद से अलग दिखाना चाहती है, लेकिन उसके पास कोई मसौदा नहीं है, कोई योजना नहीं है और यहां तक कि इच्छाशक्ति की भी कमी है. केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध के आधार पर मत मिलना संभव नहीं है. नरेंद्र मोदी भी पिछड़े समाज के बड़े चेहरे हैं जिस पर कांग्रेस अब नई दावेदारी ठोक रही है. लेकिन, नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी का डेडली कॉन्बिनेशन बिहार में कांग्रेस को इसका लाभ तो नहीं देने जा रहा, यह पक्का है. वहीं, अन्य वोट बैंक-जैसे मुसलमान मतों पर राजद और असदुद्दीन ओवैसी की बड़ी दावेदारी है. प्रशांत किशोर इसके बड़े हिस्सेदार बनते दिख रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस को अभी बिहार में और गहराई से नीति बनाने और उसे जमीन पर लागू करने की आवश्यकता है.

Rahul Gandhi

राहुल गांधी बिहार में कांग्रेस का नया आधार तैयार करना चाहते हैं.

प्रशांत किशोर की राजनीति को लेकर क्या है पॉजिटिव?
वहीं, प्रशांत किशोर को लेकर राजनीति के जानकार अलग तरह की सोच रखते हैं. प्रशांत किशोर बिहार में विकल्प की राजनीति करने वाले नेता के तौर पर उभरे हैं और उन्होंने इसे एक हद तक साबित भी किया है. वर्ष 2022 के 2 अक्तूबर से ही वह बिहार की पदयात्रा पर निकले और लगातार बिहार के प्रखंडों, पंचायतों और प्रखंडों का दौरा कर रहे हैं. उनके जोश, जज्बे और जुनून में कोई कमी नहीं दिखती है. जातिगत जटिलताओं से जकड़े बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर एक अलग ‘सितारा’ लगते तो हैं, लेकिन ‘बदलाव रैली’ में अपेक्षा से बहुत कम आई भीड़ ने उनकी इस छवि को काफी डेंट पहुंचाया है. लेकिन, यह भी तय है कि वह हरने वाले नहीं है उन्होंने इस बात को इसी ‘फ्लॉप रैली’ के मंच से इन्हीं खाली कुर्सियों के बीच दोहराया और अपनी नई योजना लेकर वह आगे भी बढ़ चले. 23अप्रैल से वह बिहार की यात्रा पर फिर निकल रहे हैं और बिहार के प्रखंडों और पंचायत में घूमेंगे.

नीतीश कुमार के बाद बिहार में बड़ा वैक्यूम और युवा चेहरे
वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि निश्चित तौर पर प्रशांत किशोर जज्बा के साथ राजनीति कर रहे हैं.चूंकि वह एक सियासी रणनीतिकार हैं तो वह अपनी उस रणनीति पर आगे भी बढ़ रहे हैं. वह यह दिखाना चाहते हैं कि किसी भी सूरत में हार मानने वाले नहीं हैं. 2025 नहीं तो 2029 और 2030 भी उनके टारगेट में है. ऐसे भी बिहार की राजनीति में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बाद एक बड़ा शून्य आने वाला है जब शीर्ष पद को लेकर दावेदारी पर दावेदारी होगी. तेजस्वी यादव तो इस रेस में सबसे आगे हैं ही, लेकिन हाल में सी वोटर के सर्वे से साफ हो गया कि प्रशांत किशोर भी इस रेस में आ चुके हैं. चिराग पासवान, सम्राट चौधरी और अब तो सीएम नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार जैसे नए दावेदार भी उभरने लगे हैं. खास बात यह भी है कि ये सभी युवा हैं और भविष्य की राजनीति के नायक भी यही हैं.

प्रशांत किशोर ने बिहार में बदलाव के अपने इरादे को और मजबूत करते हुए कहा कि वह बिहार के प्रखंडों और पंचायतों में जनता तक पहुंच बनाएंगे.

प्रशांत किशोर और तेजस्वी के आधार का बड़ा अंतर
खास बात यह है कि प्रशांत किशोर और तेजस्वी यादव सियासत की जमीन पर हैं और जनता के बीच जा रहे हैं. इसके अलावा चिराग पासवान कई बार अपना मैसेज देते हैं. हाल में उन्होंने यह कहा था कि उनको उनका प्रदेश बुला रहा है. लेकिन, राजनीति के जानकार फिलहाल चिराग पासवान की भूमिका केंद्र में ही देख रहे हैं और आने वाले वैक्यूम को लेकर, सम्राट चौधरी, प्रशांत किशोर और तेजस्वी यादव के बीच कड़ा मुकाबला देखते हैं. प्रशांत किशोर की खाली कुर्सियों की कहानी से इतर जमीन की लड़ाई बेहद दिलचस्प है. तेजस्वी यादव के पास एक मजबूत वोट का आधार है और 31 से लेकर 38% वोटों की दावेदारी है. लेकिन, प्रशांत किशोर के पास यह आधार नहीं है.

जो धरती पर रहेगा वही आकाश में उड़ान भरेगा!
वहीं, सम्राट चौधरी को भाजपा के संगठन का साथ है, लेकिन बीजेपी में उनकी स्वीकार्यता कितनी है, यह बड़ा सवाल है. अब रही बात प्रशांत किशोर की तो, पीके अपनी पार्टी के सर्वेसर्वा हैं और कई मामलों पर उनका स्पष्ट स्टैंड दिखता भी है. रवि उपाध्याय कहते हैं, बीते दिनों में उन्होंने सारण के एमएलसी चुनाव में अपना परफॉर्मेंस करके दिखाया और अपने उम्मीदवार को जितवाया. इसके बाद पहले पूर्णिया के रूपौली और फिर गया के इमामगंज, बेलागंज सहित तरारी और रामगढ़ के उपचुनाव में अपनी दमदार उपस्थिति दिखा चुके हैं. खाली कुर्सियों से आगे बढ़ते हुए वह एक बार फिर धरातल पर हैं और यह बात पक्की है कि जो धरती पर रहेगा वही सत्ता सियासत के आकाश पर पहुंचेगा.

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