Last Updated:August 27, 2025, 07:45 IST
क्या आपको मालूम है कि भारत की सबसे धीमी ट्रेन कौन सी है. ये इतनी धीमी है कि इससे तेज को कोई आदमी दौड़ लेगा. लेकिन हर कोई इस पर बैठना चाहता है.

क्या आपको मालूम है कि भारत की सबसे धीमी ट्रेन कौन सी है. इस ट्रेन को भारत में चलते हुए 100 सालों से कहीं ज्यादा हो गए. ये इतनी धीमी है कि देश की तो सबसे स्लो ट्रेन है ही, साथ ही दुनिया की सबसे धीमी ट्रेनों में भी गिनी जाती है. लेकिन इस पर बैठने वाले अपनी यात्रा को हमेशा यादगार मानता है.
तो हम आपको ये बता देते हैं कि ये ट्रेन मुश्किल से 3-4 डिब्बों की ही होती है. पूरी ट्रेन सीटिंग ट्रेन है. इसे चलाने का श्रेय अंग्रेजों को जाता है. कभी कभार इस ट्रेन पर संकट के बादल मंडराए लेकिन ये चलती रही…और आपको ये भी बता दें कि ये ट्रेन आमतौर पर हमेशा भरी हुई चलती है. इसके लिए लोगों को एडवांस में रेलवे से बुकिंग करानी होती है.
ये बहुत खूबसूरत ट्रेन है. इसके डिब्बे नीले रंग के हैं चमचमाते रहते हैं. तो देश की ये सबसे धीमी ट्रेन है मेट्टुपालयम–ऊटी नीलगिरि पैसेंजर ट्रेन. जो ऊटी और कुन्नूर आने वाले टूरिस्ट की फेवरिट ट्रेन है.
मेट्टुपालयम से ऊटी तक ट्रेन
यह ट्वाय ट्रेन तमिलनाडु में मेट्टुपालयम से ऊटी तक चलती है. ये इस सफर में 46 किलोमीटर चलती है. इसमें ये करीब 5 घंटे का समय लेती है. इसकी औसत गति करीब 10–12 किमी/घंटा ही रहती है. इसकी स्पीड इतनी कम क्यों है, इसका जवाब ये है कि ये ट्रेन पहाड़ों पर चलती है और रैक एंड पिनियन सिस्टम (दांतेदार रेल और गियर सिस्टम) का इस्तेमाल करती है ताकि तीखी चढ़ाई पर चढ़ सके.
इसी ट्रेन पर मशहूर गाना चल छैंया छैंया …फिल्माया गया. वैसे ये ट्रेन और इलाका कई फिल्मों में शूट हो चुका है.
पटरियों में कई तीखे मोड़ और ढलान हैं, इसलिए स्पीड बहुत सीमित रखनी पड़ती है. ये ट्रेन यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का हिस्सा है. इसका अपना टूरिस्ट अट्रैक्शन भी है. ये रास्ते भर खूबसूरत नजारे दिखाती चलती है, लिहाजा कोई भी इस ट्रेन पर बैठकर इसकी स्लो स्पीड से बोर नहीं होता है बल्कि इस स्पीड के कारण हर मोड़ पर प्रकृति के नजारों का पूरा आनंद लेता है.
वैसै तो भारत की कई पैसेंजर ट्रेनें स्लो हैं, जिनकी स्पीड 25–30 किमी/घंटा तक ही रहती है लेकिन भारत की सबसे स्लो ट्रेन का रिकॉर्ड नीलगिरि माउंटेन पैसेंजर के पास ही है.
इंजीनियरिंग चुनौती थी इसे बनाना
इसे बनाना इंजीनियरिंग के लिए एक चुनौती ही थी. इस रेललाइन का प्रस्ताव 1854 में रखा गया, मगर मुश्किल रास्तों, पहाड़ों और ऊंचाई के कारण निर्माण में बहुत सी बाधाएं थीं. जिस वजह से इसका निर्माण 1891 में शुरू हो सका. 1908 में पूरा हुआ.
इसकी ऊंचाई और तेज ढलान के कारण पारंपरिक व्हील-ट्रैक सिस्टम इसके लिए काफी नहीं था. इसी वजह से इस चुनौती से निपटने के लिए नीलगिरी माउंटेन रेलवे ने रैक और पिनियन सिस्टम अपनाया, इसमें एक मध्य पटर में दांतों वाला रैक और इंजन में पिनियन व्हील, जो उसे पकड़ते हुए खींचते हैं, ताकि ट्रेन फिसले नहीं. इसे स्टीम और डीज़ल इंजन दोनों चलाते हैं. तकनीकी बदलावों के बावजूद पुराने अंदाज़ को संजोए रखते हैं.
208 मोड़, 250 से ज्यादा पुल, 16 सुरंगें
इस रेल मार्ग पर 208 मोड़, 16 सुरंगें और 250 से ज्यादा पुल हैं – हर मोड़, सुरंग और पुल ट्रेन की गति को सीमित करता है. बेशक नई तकनीक की वजह से ट्रेन की गति तेज की जा सकती है लेकिन यूनेस्को हैरिटेड होने की वजह से इसे आधुनिक स्पीड से बचाया जाता है.
ऊटी से जब ये ट्रेन चलती है…
ऊटी भारत के सबसे पुराने हिल स्टेशनों में से एक है. ऊंचाई पर स्थित ये शहर ब्रिटिश राज के ग्रीष्मकालीन विश्राम स्थल हुआ करते थे. अंग्रेजों को जब मैदानी इलाकों की भीषण गर्मी से बचने की ज़रूरत होती थी तो वो यहां आ जाते थे. आज यह एक छोटा सा भीड़-भाड़ वाला शहर है. ऊटी से जब ये ट्रेन चलती है तो रास्ते में लवडेल, वेलिंगटन, एडर्ली, कुन्नूर और रननीमेड जैसे स्टेशन पड़ते हैं.
इस ट्रेन यात्रा में यात्रियों को प्राकृतिक दृश्य, बर्फीली वादियां, चाय बागान, कोलाहल रहित वातावरण और क्लासिक रेलवे अनुभव का आनंद लेने का मौका मिलता है.
ये ट्रेन आमतौर पर हमेशा फुल चलती है. पहले से बुकिंग हो चुकी होती है. रास्तेभर खूबसूरत नजारों के दर्शन कराती चलती है.
दिन में कई फेरे
ये ट्रेन ऊटी से मेट्टुपालयम तक दिन में कई बार फेरे करती है. करीब 120 सालों से चल रही इस ट्रेन और रेलवे लाइन को यूनिस्को हैरिटेज दर्जा मिला हुआ है. नीलगिरि माउंटेन रेलवे की स्थापना 1899 में हुई थी. 1908 में इसे पूरी तरह से चालू किया गया. ब्रिटिश काल में इसे पहाड़ी क्षेत्रों में यातायात के लिए बनाया गया.
यह रेल लाइन 1,000 मिमी (मीटर गेज) की संकरी गेज पर चलती है. इस पूरी ट्रेन के रास्ते में जितने भी स्टेशन पड़ते हैं, वो सभी नीले रंग के हैं. ट्रेन भी नीले रंग की होती है, क्योंकि ये नीलगिरी माउंटेन रेलवे है. यहां के नीलगिरी पहाड़ को नीले रंग का बताया जाता है.
Sanjay Srivastavaडिप्टी एडीटर
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...और पढ़ें
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...
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Location :
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
First Published :
August 27, 2025, 07:44 IST