भारत के किस पीएम ने लिया रुपए को बाहरी देश से छपवाने का फैसला, रखा गया सीक्रेट

1 month ago

Last Updated:March 05, 2025, 14:49 IST

भारत में एक समय ऐसा भी आया जब एक प्रधानमंत्री ने बड़े पैमाने पर इंडियन करेंसी यानि रुपए को बाहर छपवाने का फैसला किया. और ये सब किया बहुत गुपचुप तरीके से. किसी को पता तक नहीं लगने दिया.

भारत के किस पीएम ने लिया रुपए को बाहरी देश से छपवाने का फैसला, रखा गया सीक्रेट

हाइलाइट्स

तब गठजोड़ सरकार के प्रधानमंत्री ने लिया था ये फैसलाअमेरिका, कनाडा और यूरोपीय कंपनियों से नोट छपवाए1999 में मैसूर और 2000 में सालबोनी में नई करेंसी प्रेस

ये बात 90 के दशक के आखिरी सालों की है, तब भारत सरकार ने गुपचुप बाहर से नोट छपवाने का फैसला किया. ये फैसला लिया तत्कालीन प्रधानमंत्री के जरिए. ये फैसला 08 मई 1997 के दिन लिया गया. इसे इतने गुपचुप तरीके से लिया गया कि देश को लंबे समय तक भनक ही नहीं लगी. जब मालूम हुआ तो हैरान रह गए.

पहली बार सरकार ने भारतीय करेंसी को विदेश में छपवाने का फैसला किया था. उसके बाद सालों तक भारतीय करेंसी रुपया बाहर से छपकर आता रहा.

दरअसल 1997 में भारतीय सरकार ने महसूस किया कि ना केवल देश की आबादी बढ़ने लगी है बल्कि आर्थिक गतिविधियां भी बढ़ गई हैं. इससे निपटने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रवाह के लिए ज्यादा करेंसी की जरूरत है. भारत के दोनों करेंसी छापाखाने बढ़ती मांग को पूरा करने में नाकाफी थे.

1996 में देश में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार बनी थी. एचडी देवेगौडा प्रधानमंत्री बने. देवेगौडा ने इंडियन करेंसी को बाहर छापने का फैसला लिया. आजादी के बाद ये पहला और आखिरी मौका था जब भारतीय करेंसी विदेश में छपने की नौबत आई.

90 के दशक के आखिर में जब भारत में बाजार फैलने लगा और आबादी भी बढ़ी तो नोटों की डिमांड भी बढ़ी. तब हमारे पास केवल दो ही छापेखाने थे. बाद में दो नए नोट प्रिंटिंग छापेखाने भारत में खोले गए. (news18)

कई देशों से छपवाए जा रहे थे 
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से मंत्रणा करने के बाद केंद्र सरकार ने अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय कंपनियों से भारतीय नोटों को छपवाने का फैसला किया. कई साल तक भारतीय नोटों का एक बड़ा हिस्सा बाहर से छपकर आता रहा. ये बहुत मंहगा सौदा था. भारत को इसके एवज में कई हजार करोड़ रुपए खर्च करने पड़े.

सुरक्षा का जोखिम भी था
बताते हैं कि तब सरकार तब 360 करोड़ करेंसी बाहर छपवाने का फैसला किया था. इस पर 9.5 करोड़ डॉलर का खर्च आया था. इसकी बहुत आलोचना हुई थी. देश की करेंसी की सुरक्षा के भी जोखिम में पड़ने आशंका जाहिर की जाने लगी. लिहाजा बाहर नोट छपवाने का काम जल्दी ही खत्म कर दिया गया.

फिर शुरू हुईं दो नई करेंसी प्रेस
भारत सरकार ने दो नई करेंसी प्रेस खोलने का फैसला किया. 1999 में मैसूर में करेंसी छापाखाना खोला गया तो वर्ष 2000 में सालबोनी (बंगाल) में. इससे भारत में नोट छापने की क्षमता बढ़ गई.

 करेंसी का कागज
करेंसी के कागजों की मांग पूरी करने के लिए देश में ही 1968 में होशंगाबाद में पेपर सेक्यूरिटी पेपर मिल खोली गई, इसकी क्षमता 2800 मीट्रिक टन है, लेकिन इतनी क्षमता हमारे कुल करेंसी उत्पादन की मांग को पूरा नहीं करती, लिहाजा हमें बाकी कागज ब्रिटेन, जापान और जर्मनी से मंगाना पड़ता था.

 नोटों का कागज
इसके बाद बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए होशंगाबाद में नई प्रोडक्शन लाइन डाली गई. मैसूर में दूसरे छापेखाने ने काम शुरू किया. अब करेंसी के लिए कागज की सारी मांग यहीं से पूरी होती है. हमारे हाथों में 500 रुपए के जो नोट छपकर आते हैं, उनका कागज भारत में ही निर्मित होता है. 2000 के बंद हो रहे नोट के खास कागज भी यहीं बनते थे. कुछ समय पहले तक भारतीय नोटों में इस्तेमाल होने वाला कागज का बड़ा हिस्सा जर्मनी और ब्रिटेन से आता था.

2 हजार नोट होंगे चलन से बहार 

अब नोटों में काम आने वाले कागज से लेकर स्याही के उत्पादन का काम भारत में ही होता है. (news18)

हालांकि इस खास कागज का उत्पादन कहां होता है, इसका खुलासा आरबीआई ने नहीं किया. नोट में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला खास वाटरमार्क्ड पेपर जर्मनी की ग्रिसेफ डेवरिएंट और ब्रिटेन की डेला रूई कंपनी से आता था, जो अब भारत में ही तैयार हो रहा है.

अब सबकुछ देश में ही
90 साल पहले भारत में पहली करेंसी प्रिंटिंग प्रेस नासिक में शुरू हुई थी. तब अंग्रेजों ने यहीं करेंसी छापनी शुरू की थी. आजादी के बाद यहीं से भारत की सारी नोटों का मुद्रण होता था. करेंसी के कागज से लेकर स्याही तक का एक बड़ा हिस्सा हम विदेश से आयातित करते थे लेकिन अब सरकार का दावा है कि इन सब जरूरी सामान का उत्पादन देश में ही होने लगा है.

150 साल पहले कहां से छपकर आते थे
जब ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने 1862 में पहली बार भारत में रुपये के नोट जारी किए तो उसने उन्हें यूके स्थित थॉमस डी ला रू से प्राप्त किया, जिसने मुद्रा व्यवसाय में प्रवेश करने से पहले ताश और डाक टिकटों की छपाई शुरू कर दी थी. 200 साल पुरानी इस कंपनी को अब डी ला रू के नाम से जाना जाता है. ये दुनिया की सबसे बड़ी वाणिज्यिक बैंक नोट प्रिंटर है. ये कंपनी खुद नोट छापने वाले कागज भी बनाती है.
1920 के दशक में, अंग्रेजों ने भारत में पैसा छापने का फैसला किया. 1926 में, उन्होंने नासिक, महाराष्ट्र में क्षेत्र की पहली मुद्रा प्रिंटिंग प्रेस का निर्माण शुरू किया. “द रिवाइज्ड स्टैंडर्ड रेफरेंस गाइड टू इंडियन पेपर मनी” के सह-लेखक रेजवान रजाक के अनुसार, शहर को इसकी स्थिर जलवायु और एक प्रमुख रेलवे लाइन की निकटता के लिए चुना गया था, जो इसे शेष भारत से जोड़ती थी.

दो साल बाद, नासिक प्रेस ने उसी डिज़ाइन का 5 रुपये का नोट छापना शुरू किया, जो पहले इंग्लैंड से लाया गया था. अगले कुछ वर्षों में इस प्रेस ने 100 रुपये, 1,000 रुपये और यहां तक ​​कि 10,000 रुपये के मूल्यवर्ग में नोटों को नए डिजाइन के साथ छापने का काम शुरू कर दिया.

सिक्कों का काम
भारतीय रिज़र्व बैंक मुद्रा छापता है, भारत सरकार सीधे सिक्कों की ढलाई का काम संभालती है. सिक्के चार टकसालों में ढाले जाते हैं, ये हैं दक्षिण कोलकाता में अलीपुर, हैदराबाद में सैफाबाद, हैदराबाद में चेरलापल्ली और उत्तर प्रदेश में नोएडा. हालांकि इन्हें जारी करने का काम रिजर्व बैंक ही करता है.

Location :

Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh

First Published :

March 05, 2025, 14:49 IST

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