भारत बना चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था, मगर नन्हें मिज़ोरम की ये कामयाबी भी कम नहीं

2 weeks ago

शेफाली चतुर्वेदी

आप मिजोरम के बारे में क्या जानते हैं? शायद यही कि यह पूर्वोत्तर का एक छोटा पहाड़ी राज्य है, जहाँ बांस के जंगल हैं और जिसकी 87% आबादी ईसाई धर्म को मानती है. लेकिन क्या छोटे आकार का मतलब छोटे सपने होते हैं? बिल्कुल नहीं! मिजोरम ने एक ऐसा सम्मान पाया है जिसकी चाह कई बड़े राज्य रखते हैं—भारत का पहला पूर्ण साक्षर राज्य बनने का गौरव. छोटे से राज्य मिजोरम ने एक बड़ी लकीर खींच दी है. मई 2025 में जब मिजोरम ने 98.20% साक्षरता दर के साथ यह मुकाम हासिल किया, तो यह महज आंकड़ों की जीत नहीं थी—यह उस दृढ़ संकल्प की विजय थी जिसने असंभव को संभव बना दिया. हालांकि, भारत का जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना निश्चित रूप से गर्व की बात है . इसपर कई लोग अपनी पीठ थपथपा रहे हैं ,मौका भी है लेकिन मिजोरम की शैक्षिक क्रांति इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि साक्षरता वह मास्टर चाबी है जो प्रगति के सभी दरवाजे खोलती है. आर्थिक उन्नति अस्थायी हो सकती है, लेकिन शिक्षा एक ऐसी संपत्ति है जो कभी नष्ट नहीं होती.इसलिए मैंने मिज़ोरम की पूर्ण साक्षरता की यात्रा को समझने को प्राथमिकता दी.

“एक बच्चा, एक शिक्षक, एक किताब और एक कलम दुनिया को बदल सकते हैं.” अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी के इन शब्दों को मिजोरम ने जीवंत कर दिखाया है. तो क्या 31% से 98% तक की यात्रा रातों-रात हो सकती है? कतई नहीं! मिजोरम की यात्रा एक प्रेरणादायक गाथा है. 1951 में केवल 31.14% साक्षरता दर से शुरू होकर आज 98.20% तक पहुंचना कोई सामान्य उपलब्धि नहीं है. यह परिवर्तन सात दशकों की रणनीतिक योजना, सामुदायिक भागीदारी और अटूट संकल्प का परिणाम है. जब मुख्यमंत्री लालदुहोमा ने पूर्ण साक्षरता की घोषणा की, तो उनके पीछे दो महत्वपूर्ण कार्यक्रमों की शक्ति थी—समग्र शिक्षा और नव भारत साक्षरता कार्यक्रम.


सफलता का असली राज


अब सवाल उठता है कि, सफलता का असली राज क्या है—संसाधन या रणनीति? मिजोरम का जवाब स्पष्ट है—रणनीति! सरकार ने पहले व्यवस्थित सर्वेक्षण करवाए और 15 साल से अधिक उम्र के 3,026 निरक्षर लोगों की पहचान की. इनमें से 1,692 लोगों ने सीखने में रुचि दिखाई. यहीं पर मिजोरम की बुद्धिमत्ता दिखी—उन्होंने जबरदस्ती नहीं की, बल्कि उत्साही लोगों पर ध्यान केंद्रित किया. 292 स्वयंसेवी शिक्षकों का एक मजबूत नेटवर्क तैयार किया गया जिसमें छात्र, शिक्षक और स्थानीय अधिकारी शामिल थे. हर “एनीमेटर” को पांच निरक्षरों को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई. लक्षित दृष्टिकोण हमेशा बेतरतीब प्रयासों से बेहतर परिणाम देता है.

मिजोरम ने शिक्षा के लिए स्थानीय संस्कृति का सहारा लिया. उन्होंने मिजो भाषा में वर्तियान जैसी अध्ययन सामग्री बनाई, अंग्रेजी संस्करण तैयार किए, और स्वयंसेवी शिक्षकों के लिए मार्गदर्शिका विकसित की. यह दिखाता है कि सफल शिक्षा वही होती है जो स्थानीय भाषा और संस्कृति का सम्मान करते हुए आगे बढ़ती है. जब लोग अपनी भाषा में सीखते हैं, तो वे न केवल तेजी से समझते हैं बल्कि गर्व भी महसूस करते हैं.


रंगबिरंगी मिजो संस्कृति हर किसी को आकर्षित करती है.


महिलाओं की भूमिका


मिजोरम की साक्षरता क्रांति में महिलाओं की भूमिका के उल्लेख के बिना ये कहानी बिलकुल अधूरी है. राज्य में अधिकांश दुकानें महिलाएं चलाती हैं, टैक्सी ड्राइविंग को छोड़कर हर क्षेत्र में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी है. शिक्षित महिलाएं अपने बच्चों की शिक्षा की सबसे बड़ी समर्थक बनीं और इस तरह साक्षरता की एक सकारात्मक श्रृंखला शुरू हुई. जब एक महिला शिक्षित होती है, तो वह पूरे परिवार को शिक्षा की राह पर ले जाती है.

चुनौतियां कभी-कभी अवसर भी बन जाती हैं .मिजोरम की कहानी तो कम से कम ये ही कहती है. पहाड़ी इलाका, बिखरी हुई आबादी, दूरदराज के गांव और सीमित संसाधन—ये सभी बाधाएं किसी भी राज्य को हतोत्साहित कर सकती थीं. लेकिन मिजोरम ने इन्हें अवसर में बदल दिया. मोबाइल साक्षरता इकाइयां, समुदाय-आधारित शिक्षा केंद्र और स्वयंसेवी नेटवर्क के जरिए वे हर दूर-दराज के गांव तक पहुंचे. 360 निरंतर शिक्षा केंद्र स्थापित करके उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि एक बार मिली साक्षरता कभी न खोए.

आंध्र प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्य मिजोरम से पीछे क्यों हैं? आंध्र प्रदेश में साक्षरता दर महज 66.2% है, राजस्थान में 69.7% है. राजस्थान में पुरुष-महिला साक्षरता का अंतर 23.3% है, जो चिंताजनक है. समस्या संसाधनों की नहीं, बल्कि दृष्टिकोण की है. जब तक लैंगिक भेदभाव रहेगा, तब तक सच्ची साक्षरता असंभव है. मिजोरम ने दिखाया है कि समानता के बिना शिक्षा अधूरी रह जाती है.


मॉडल का अनुकरण


तो क्या मिजोरम मॉडल की नकल संभव है? मुझे लगता है सटीक नक़ल न की जाए, पर इस मॉडल का अनुकरण कर के अपने राज्य के हिसाब से मॉडल बनाकर साक्षरता दर बेहतरी ज़रूर संभव है. मिजोरम की सफलता का फार्मूला स्पष्ट है—पहले सटीक सर्वेक्षण करें, समुदाय को साथ लेकर चलें, सांस्कृतिक संवेदनशीलता बरतें, महिलाओं को मुख्यधारा में लाएं, और स्थायी शिक्षा संरचना बनाएं. जरूरत है सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति और सामुदायिक प्रतिबद्धता की.

मिजोरम की यह उपलब्धि , केवल एक राज्य की जीत नहीं है. यह पूरे भारत के लिए एक संदेश है कि यदि दृढ़ संकल्प, सही रणनीति और सामुदायिक भागीदारी हो तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है. पूर्ण साक्षरता का यह पुरस्कार मिजोरम को न केवल ज्ञान-आधारित उद्योगों के लिए आकर्षक बनाएगा, बल्कि स्वास्थ्य, लोकतांत्रिक भागीदारी और समग्र विकास में भी नई ऊंचाइयां दिलाएगा. एक शिक्षित समाज हमेशा एक समृद्ध समाज का आधार बनता है.

मिजोरम ने जो किया है, वह सिर्फ आंकड़ों की बाजीगरी नहीं है—यह एक नया मानदंड खींचना है. जब इतिहास लिखा जाएगा, तो यह दर्ज होगा कि 2025 में एक छोटे से पहाड़ी राज्य ने बड़े-बड़े राज्यों को आईना दिखाया. अब गेंद दूसरे राज्यों के पाले में है. वे या तो मिजोरम की बराबरी करने का दम दिखा सकते हैं, या फिर बहानों की फेहरिस्त में एक और पन्ना जोड़ सकते हैं. विकल्प स्पष्ट है, और समय भी सीमित है. मिजोरम ने रास्ता दिखा दिया है—अब दूसरों को तय करना है कि वे इस रास्ते पर चलना चाहते हैं या किनारे खड़े होकर तमाशा देखना चाहते हैं.

नोट : लेखिका वरिष्ठ ब्रॉडकास्टर , विकास पत्रकार और मानवीय संचार विशेषज्ञ हैं.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

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