Last Updated:July 16, 2025, 16:21 IST
Inflation forecast : ग्लोबल रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने कहा है कि चालू वित्तवर्ष में भारत की महंगाई दर 4 फीसदी के दायरे में रहेगी, जिससे आरबीआई के पास एक बार फिर रेपो रेट में कटौती करने का मौका मिलेगा.

क्रिसिल ने महंगाई दर 4 फीसदी रहने का अनुमान जताया है.
हाइलाइट्स
महंगाई दर 4% रहने की उम्मीद हैआरबीआई रेपो रेट में कटौती कर सकता हैGDP वृद्धि दर 6.5% रहने का अनुमाननई दिल्ली. दिग्गज रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने चालू वित्तवर्ष में खुदरा महंगाई दर औसतन 4 फीसदी रहने की उम्मीद जताई है, जबकि पिछले वित्तवर्ष में यह 4.6 फीसदी थी. क्रिसिल ने अपनी नवीनतम अध्ययन रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के सामान्य से बेहतर मानसून के पूर्वानुमान को देखते हुए वित्तवर्ष 2025-26 में खाने-पीने की चीजों पर महंगाई ज्यादा नहीं बढ़ेगी. इसके अलावा जिंस उत्पादों के दाम कम होने से नॉन-फूड आइटम्स की महंगाई दर भी बहुत ज्यादा नहीं बढ़ेगी.
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) प्रमुख ब्याज दर के संबंध में कोई भी निर्णय करते समय खुदरा मुद्रास्फीति को ही आधार बनाती है. गवर्नर संजय मल्होत्रा ने भी कहा है कि अगर खुदरा महंगाई काबू में रही तो ब्याज दरों में एक बार फिर कटौती की जा सकती है. क्रिसिल ने कहा कि चालू वित्तवर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 6.5 फीसदी रहने का अनुमान है. हालांकि, इसमें गिरावट का जोखिम बना हुआ है.
टैरिफ का निर्यात पर असर
रेटिंग एजेंसी ने कहा कि अमेरिका में सीमा शुल्क बढ़ाए जाने को निर्यात के लिए जोखिम के रूप में देखा जा रहा है, जबकि बढ़िया मानसून एवं रेपो दर में कटौती जैसे घरेलू कारक वृद्धि के लिए मददगार साबित होंगे. रिपोर्ट कहती है कि बैंकों के पास कर्ज बांटने के लिए पर्याप्त पैसे होने से अर्थव्यवस्था की वित्तीय स्थिति में मदद मिलनी चाहिए, लेकिन रुपये के साथ पूंजी प्रवाह में भी उतार-चढ़ाव की आशंका है. यह वजह है कि बैंक की कर्ज वृद्धि कमजोर बनी हुई है. यही वजह रही कि मई, 2025 तक उपलब्ध आंकड़े पहली तिमाही में बैंक ऋण वृद्धि में नरमी का संकेत देते हैं.
महंगाई कम तो सस्ता होगा कर्ज
क्रिसिल ने कहा कि मुद्रास्फीति में नरमी मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) को इस वित्तवर्ष में एक बार फिर रेपो दर में कटौती करने और फिर कुछ समय के लिए विराम देने की गुंजाइश देगी. हालांकि, वैश्विक अनिश्चितताएं पूंजी प्रवाह और मुद्रा की गतिविधियों में अस्थिरता जारी रख सकती हैं. एमपीसी ने अपनी जून की बैठक में रेपो दर में 0.50 प्रतिशत की कटौती की थी, जिससे यह घटकर 5.5 प्रतिशत हो गई थी.
क्रूड है परेशानी का सबब
वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आया है, जो जनवरी, 2025 के बाद पहली बार जून में 80 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया था. इससे बॉन्ड प्रतिफल, शेयर बाजार और रुपये पर दबाव देखने को मिला. ग्लोबल मार्केट में जारी तनाव का असर कच्चे तेल की कीमतों पर भी दिख रहा है. ईरान-इजराइल युद्ध में होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद किए जाने की आशंका के बाद क्रूड के दाम अचानक बढ़ने लगे. अगर ऐसा दोबारा हुआ तो कच्चे तेल की कीमतें एक बार फिर बढ़ सकती हैं. भारत क्रूड का 85 फीसदी हिस्सा आयात करता है, लिहाजा उसकी इकनॉमी पर इसका खासा असर पड़ सकता है.
प्रमोद कुमार तिवारी को शेयर बाजार, इन्वेस्टमेंट टिप्स, टैक्स और पर्सनल फाइनेंस कवर करना पसंद है. जटिल विषयों को बड़ी सहजता से समझाते हैं. अखबारों में पर्सनल फाइनेंस पर दर्जनों कॉलम भी लिख चुके हैं. पत्रकारि...और पढ़ें
प्रमोद कुमार तिवारी को शेयर बाजार, इन्वेस्टमेंट टिप्स, टैक्स और पर्सनल फाइनेंस कवर करना पसंद है. जटिल विषयों को बड़ी सहजता से समझाते हैं. अखबारों में पर्सनल फाइनेंस पर दर्जनों कॉलम भी लिख चुके हैं. पत्रकारि...
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