Last Updated:May 21, 2025, 08:08 IST
Bhanu Mushtaq wins Booker Prize: कर्नाटक की लेखिका बानू मुश्ताक को कन्नड़ कहानी संग्रह हार्ट लैंप के लिए 2025 का बुकर प्राइज मिला है. यह पहली बार है जब किसी कन्नड़ रचना को यह पुरस्कार मिला है.

हार्ट लैंप की लेखिका बानू मुश्ताक और अनुवादक दीपा भस्ती.
हाइलाइट्स
बानू मुश्ताक को 2025 का बुकर प्राइज मिला.यह पहली बार है जब किसी कन्नड़ रचना को बुकर प्राइज मिला.हार्ट लैंप में मुस्लिम महिलाओं की कहानियां हैं.Bhanu Mushtaq wins Booker Prize: कर्नाटक की लेखिका, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता बानू मुश्ताक को उनकी कन्नड़ कहानी संग्रह हार्ट लैंप के लिए वर्ष 2025 का प्रतिष्ठित बुकर प्राइज मिला है. मंगलवार को लंदन के टेट मॉडर्न में आयोजित एक समारोह में उनको यह पुरस्कार सौंपा गया. यह पहली बार है जब किसी कन्नड़ रचना को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला है. बानू मुश्ताक और उनकी अनुवादक दीपा भास्थी ने 50,000 पाउंड (लगभग57 लाख रुपये) का यह पुरस्कार आपस में बांटा. इस जीत को कन्नड़ साहित्य और भारतीय क्षेत्रीय साहित्य के लिए बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है.
कौन हैं बानू मुश्ताक
76 वर्षीय बानू मुश्ताक कर्नाटक के हासन जिले की रहने वाली हैं. उन्होंने छह दशकों तक लेखन, पत्रकारिता और सामाजिक कार्यों में योगदान दिया है. उनकी कहानियां दक्षिण भारत की मुस्लिम महिलाओं और लड़कियों के रोजमर्रा के जीवन, उनकी चुनौतियों और संघर्षों को बयां करती हैं. 1970 के दशक में उन्होंने कन्नड़ साहित्य के बंडाया आंदोलन से जुड़कर लेखन शुरू किया, जो जाति, वर्ग और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाता था. उनकी पहली कहानी 1974 में प्रजामाता पत्रिका में छपी थी. इसके बाद उन्होंने छह कहानी संग्रह, एक उपन्यास, निबंध और कविताएं लिखीं. उनकी प्रमुख रचनाओं में हेज्जे मूडिदा हादी (1990), बेंकी माले (1999), एडेया हनाते (2004), सफीरा (2006) और हसेना और अन्य कहानियां (2015) शामिल हैं.
हार्ट लैंप की खासियत
हार्ट लैंप में 1990 से 2023 के बीच लिखी गईं 12 कहानियां हैं, जिन्हें दीपा भास्थी ने कन्नड़ से अंग्रेजी में अनुवाद किया. ये कहानियां मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के जीवन, सामाजिक दबावों, धार्मिक रूढ़ियों और पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खिलाफ उनकी जुझारूपन को दर्शाती हैं. जजों ने इन कहानियों को हास्यपूर्ण, जीवंत, बोलचाल वाली और मार्मिक बताया. बानू की कहानियों में चुलबुले बच्चे, साहसी दादियां, दकियानूसी मौलवी और दुखी पति जैसे किरदार जीवंत हो उठते हैं. उनकी लेखन शैली में सूक्ष्म हास्य और गहरी संवेदनशीलता है, जो सामाजिक मुद्दों को उजागर करती है.
जीवन और संघर्ष
बानू का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ, लेकिन उनके पिता ने उन्हें कन्नड़ माध्यम से पढ़ाया, जो उस समय असामान्य था. उन्होंने कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाई की और कॉलेज जाने वाली अपनी पीढ़ी की पहली लड़कियों में थीं. 1973 में उन्होंने प्रेम विवाह किया और पत्रकारिता में कदम रखा. लंकेश पत्रिके में काम करते हुए उन्होंने सामाजिक मुद्दों पर लिखा. बाद में उन्होंने वकालत शुरू की और महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी. 2000 में जब उन्होंने मस्जिदों में महिलाओं के नमाज पढ़ने के अधिकार की वकालत की तो उन्हें धमकियां मिलीं लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.
पुरस्कार का महत्व
बानू ने अपनी जीत को विविधता की जीत बताया और कहा कि साहित्य वह जगह है जहां हम एक-दूसरे के दिमाग में झांक सकते हैं. दीपा भास्थी ने इसे कन्नड़ भाषा के लिए गर्व का पल बताया. यह पुरस्कार 2022 में गीतांजलि श्री की हिंदी रचना टॉम्ब ऑफ सैंड के बाद भारत की दूसरी बड़ी बुकर जीत है. हार्ट लैंप ने कन्नड़ साहित्य को वैश्विक मंच पर स्थापित किया है.
न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...और पढ़ें
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