क्या आपको मालूम है कि यमन मौजूदा समय में दुनिया के सबसे संकटग्रस्त देशों में है. वहां गरीबी है, व्यापक तौर पर बीमारियां हैं, अभाव है, बेरोजगारी है, पैसा नहीं है, इसके बावजूद करीब एक लाख भारतीय वहां रहते हैं. इसमें कुछ सौ तो वहां स्थायी तौर पर बस चुके हैं. खासकर केरल से बड़े पैमाने पर नर्सें वहां जाती हैं.
यमन में भारतीय मूल के लोगों की कुल संख्या लगभग एक लाख के आसपास बताई जाती है, हालांकि इस आंकड़े को लेकर बहुत भ्रम है. वैसे सैकड़ों भारतीय वहां स्थायी तौर पर भी बसे हुए हैं. उन्होंने वहां की नागरिकता ले ली है. कुछ रिपोर्टों में यमन में रह रहे भारतीयों की संख्या 10,000 से 10,500 तक बताई गई है. भारत के विदेश मंत्रालय का आधिकारिक आंकड़ा यमन में मौजूदा समय में रह रहे भारतीयों की संख्या करीब 1120 बताता है. 2010 के पहले की रिपोर्ट के अनुसार, यमन में हिंदू समुदाय (ज्यादातर भारतीय मूल) की संख्या लगभग 1,50,000 थी, जो अदन, मुकल्ला, शिहर, लाहज, मोखा और हुदायदा क्षेत्रों में केंद्रित थी.
लेकिन कई रिपोर्ट्स ये भी कहती हैं कि वहां रह रहे भारतीयों की सटीक संख्या का कोई एकदम पक्का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. ये सही है कि यमन के गृहयुद्ध और अस्थिर हालात के चलते वहां रहने वाले भारतीयों की संख्या में कमी आई है. वहां से भारत सरकार ने अपने नागरिकों को निकाला भी था. इसके बाद भी हाल के बरसों में भारतीय वहां जाते रहे हैं. वहां उनके जाने का उद्देश्य नौकरी से लेकर कारोबार है.
यमन में क्या करने जाते हैं भारतीय
यमन में भारतीय समुदाय मुख्य तौर पर नर्सिंग, चिकित्सा, और व्यापार-आधारित नौकरियों में सक्रिय रहा है लेकिन गृहयुद्ध, सुरक्षा संकट व वीजा प्रतिबंधों के चलते वहां भारतीय बसावट कम हो रही है. अधिकांश भारतीय अस्थायी निवासी या वर्क परमिट पर रहते आए हैं. अब भी वहां रहने वाले ज्यादा भारतीय नर्सें और मेडिकल स्टाफ हैं. कई भारतीय हॉस्पिटल्स, क्लिनिक्स, मेडिकल अस्पतालों में नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ या प्रशासनिक भूमिकाओं में कार्यरत हैं.
क्या केरल से गई भारतीय नर्सें वहां काफी हैं?
– हां, केरल से आने वाले नर्स स्टाफ यमन में बहुतायत में पाए जाते हैं.कई नर्सों ने अपनी शैक्षिक ऋण, परिवारिक ज़िम्मेदारियां और बेहतर नौकरी (मध्य पूर्व में तनख़्वाह ₹25,000–₹50,000 या डॉलर 550–600 प्रति माह) के कारण यमन में रहने का फैसला किया था. वैसे यमन जैसी अस्थिर जगहों में काम करना सचमुच जोखिम भरा है.
केरल से आने वाले नर्स स्टाफ यमन में बहुतायत में पाए जाते हैं. यहां भारतीय नर्सों की काफी डिमांड भी है. (news18)
सुरक्षा व काम का माहौल कैसा
यमन की मौजूदा स्थिति बहुत खराब है. वहां लगातार चल रहे गृह युद्ध जैसे हालात ने चीजों को और बदतर कर दिया है. सुरक्षा सबसे बड़ा चिंता का पहलू है. यमन में कामगारों की सुरक्षा को लेकर सतर्कता बढ़ी है. भारतीय माध्यमों और मानवाधिकार समूहों ने भारत सरकार से यह आग्रह किया है कि वह यमन में काम करने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करे.
कितना वेतन मिलता है वहां
यमन में गृह युद्ध की स्थिति पिछले करीब 11 सालों से है. तो भी भारतीय खासकर केरल की नर्सें और वर्कर्स वहां क्यों जाते हैं? भारत के कई गरीब या मध्यमवर्गीय परिवारों से आने वाले लोग (खासकर केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश) अपने नर्सिंग कोर्स या विदेश यात्रा के लिए लोन लेते हैं. ये लोग फिर किसी भी खाड़ी या अफ्रीकी देश में नौकरी मिलने पर जाने को मजबूर हो जाते हैं, भले ही देश अस्थिर क्यों न हो.
यमन में प्राइवेट अस्पतालों में 500–800 USD (₹40,000–₹65,000) महीना वेतन मिल सकता है, जो भारत के छोटे कस्बों से बेहतर होता है. कुछ का मानना होता है कि 4 साल जोखिम लेकर काम कर लेंगे, जिससे कर्ज चुक जाएगा. कुछ पैसा घर भी भेज पाएंगे.
यमन के कुछ इलाके सुरक्षित भी हैं
पूरे यमन में युद्ध नहीं है. दक्षिण यमन का अदन या हुदैदा जैसे इलाकों में जहां लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार चल रही है, वहां स्थितियां बेहतर हैं और कुछ स्थिरता है. वहां प्राइवेट अस्पताल, NGO और क्लीनिक अब भी विदेशी स्टाफ को काम पर रखते हैं, क्योंकि स्थानीय हेल्थकेयर सिस्टम चरमराया हुआ है.
उत्तर और पश्चिम यमन की तुलना में दक्षिणी यमन काफी सुरक्षित और स्थिर है, यहां लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार है. (news18)
यमन में नर्सिंग की भारी मांग
यमन में स्थानीय स्वास्थ्यकर्मियों की भारी कमी है. युद्ध के कारण कई डॉक्टर भाग चुके हैं. भारत खासकर केरल की नर्सों की विश्वसनीयता और मेहनत इन देशों में प्रसिद्ध है. इसलिए उन्हें वीज़ा, स्पॉन्सर और रहने की सुविधा दी जाती है.
एजेंट भी फंसा देते हैं
कई बार प्राइवेट रिक्रूटमेंट एजेंट विदेश में बढ़िया नौकरी दिलाने का वादा करते हैं, लेकिन यमन जैसे असुरक्षित देश में भेज देते हैं. कई बार लोग नहीं जानते कि जिस “दुबई” नौकरी के लिए चुने गए हैं, वह असल में “सना (यमन)” है. निमिषा प्रिया जैसी घटनाओं में भी ये रिक्रूटमेंट रैकेट अक्सर जिम्मेदार होते हैं.
यमन में कौन से भारतीय स्थायी तौर पर रह रहे
कुछ भारतीय यमन में स्थायी रूप से रह रहे हैं. उन्होंने यमनी नागरिकता भी प्राप्त की है. हालांकि यह संख्या बहुत बड़ी नहीं है. 19वीं सदी से ही भारतीय व्यापारी, मजदूर और धार्मिक समुदाय (जैसे शिया बोहरा मुसलमान) यमन में जाकर बसते रहे हैं.
ब्रिटिश भारत के दौरान अडन एक बड़ा ब्रिटिश बंदरगाह था, जहां बहुत से गुजराती, मलयाली, तमिल, और उत्तर भारतीय मुसलमानों ने जाकर व्यापार, दुकानदारी या नौकरी शुरू की. अडन और सना जैसे शहरों में 3–4 पीढ़ियों से बसे हुए भारतीय मूल के लोग हैं, जो अब खुद को यमनी मानते हैं.
दाऊदी बोहरा समुदाय के भारतीय व्यापारी हुदैदा, सना और ताइज़ जैसे इलाकों में बसे हुए हैं. उन्होंने स्थानीय नागरिकता ले ली, मगर अपनी भारतीय जड़ें बनाए रखीं.