यहां हनुमानजी की मूर्ति नहीं, बल्कि पेड़ में छिपा है उनका चमत्कार! ये है रहस्य

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Last Updated:May 22, 2025, 16:57 IST

Valsad Hanuman temple: वलसाड के कलगाम गांव में रैणीवाला हनुमान मंदिर में हनुमानजी की मूर्ति नहीं, बल्कि प्राचीन रैणी वृक्ष में उनकी जीवित उपस्थिति मानी जाती है. यह मंदिर भक्तों की आस्था और गांव के लोगों के लिए ...और पढ़ें

यहां हनुमानजी की मूर्ति नहीं, बल्कि पेड़ में छिपा है उनका चमत्कार! ये है रहस्य

हनुमानजी का रैणी मंदिर

गुजरात के वलसाड जिले के कलगाम गांव में एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जो बाकी मंदिरों से बिल्कुल अलग है. यहां हनुमानजी की न कोई मूर्ति है, न ही कोई प्रतिमा. फिर भी लाखों लोग यहां दर्शन करने आते हैं, क्योंकि इस मंदिर में हनुमानजी को एक विशेष रैणी (गूलर जैसा) वृक्ष में जीवित रूप में पूजा जाता है. यहां के लोगों का अटूट विश्वास है कि भगवान हनुमान आज भी इस पेड़ में निवास करते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

कलगाम गांव बना भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र
वलसाड जिले के उमरगाम तालुका का छोटा सा तटीय गांव कलगाम, दक्षिण गुजरात और महाराष्ट्र में आस्था का बड़ा केंद्र बन चुका है. यहां स्थित रैणीवाला हनुमानजी मंदिर को देखने के लिए दूर-दराज से लोग आते हैं. विशाल और घना रैणी वृक्ष इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण है, जिसे लोग हनुमानजी का जीवंत स्वरूप मानकर पूजते हैं.

पेड़ की पूजा की अनोखी परंपरा
इस मंदिर में रैणी वृक्ष की पूजा किसी मूर्ति की तरह की जाती है. बताया जाता है कि यह वृक्ष सदियों पुराना है और इसकी आयु 350 से 400 वर्षों से अधिक आंकी गई है. वन विभाग के अधिकारियों ने इस वृक्ष पर अध्ययन किया है और इसकी निरंतर बढ़ती परिधि व विशेषताओं को चमत्कार ही माना है. स्थानीय लोगों का विश्वास है कि यह कोई साधारण पेड़ नहीं, बल्कि भगवान हनुमान का जीवित रूप है.

चमत्कारी कहानी से जुड़ी मान्यता
स्थानीय मान्यता के अनुसार, यह क्षेत्र पहले घना जंगल था, जहां कोई नहीं रहता था. एक रात अचानक यहां एक चमत्कार हुआ और इस जगह पर एक पत्थर से बना निर्माण मिला, साथ ही एक कुआं भी खुदा हुआ मिला. आसपास के गांवों के किसान इसे देखकर हैरान रह गए और जल्दी ही यह खबर फैल गई कि यहां भगवान हनुमान का प्रकट होना हुआ है. तभी से यह स्थान पवित्र माना जाने लगा.

रात में अधूरा रह गया निर्माण और प्रकट हुए दादा
लोककथाओं के अनुसार, जब हनुमानजी और अन्य देवी-देवता इस स्थान पर कुछ निर्माण कार्य कर रहे थे, तभी सुबह होने से पहले मुर्गे की आवाज सुनकर हनुमानजी कार्य अधूरा छोड़कर अचानक रैणी के पेड़ में समा गए. तभी से माना जाता है कि वे इसी पेड़ में वास करते हैं और आज भी जीवित रूप में मौजूद हैं.

कुएं का भी है खास महत्व, सिक्का डालने से होती है मनोकामना पूरी
मंदिर परिसर में स्थित एक प्राचीन कुआं भी भक्तों की आस्था का केंद्र है. कहा जाता है कि यह कुआं भी हनुमानजी ने एक ही रात में तैयार किया था. यहां आने वाले श्रद्धालु कुएं में सिक्का डालते हैं और अपनी इच्छाएं व्यक्त करते हैं. जब मनोकामना पूरी हो जाती है तो वे दोबारा लौटकर दर्शन करते हैं और दादा को धन्यवाद देने के लिए फिर से सिक्का डालते हैं.

हर शनिवार लगता है मेला, सावन में उमड़ती है भीड़
हर शनिवार यहां मेले जैसा माहौल होता है. खासकर सावन के महीने में यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. मंदिर परिसर में भक्तों के लिए भजन-कीर्तन, रामधुन और धार्मिक आयोजन होते हैं, जिससे यहां पूरे साल भक्ति का माहौल बना रहता है.

गांव को मिला रोज़गार, हनुमानजी बनें वरदान
रैणीवाला हनुमानजी मंदिर न सिर्फ आस्था का केंद्र है, बल्कि गांव के लिए रोज़गार का जरिया भी है. मंदिर के आसपास करीब 150 दुकानें चलती हैं, जिनसे गांव के 150 से अधिक परिवारों को रोज़गार मिलता है. गांववाले मानते हैं कि यह भी हनुमानजी की ही कृपा है कि वे सबकी रोज़ी-रोटी का इंतज़ाम कर रहे हैं.

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