Last Updated:May 16, 2025, 16:10 IST
Rare white frog India: सांगली के अमनपुर गांव में फोटोग्राफर को एक दुर्लभ सफेद 'स्पाइडरमैन मेंढक' मिला है, जो पेड़ों और दीवारों पर चढ़ता है. यह मेंढक पर्यावरण की सेहत का संकेत और किसानों के लिए फायदेमंद माना जात...और पढ़ें

दुर्लभ सफेद मेंढक
महाराष्ट्र के सांगली जिले के पलुस तालुका के अमनपुर गांव में एक अनोखा और दुर्लभ सफेद रंग का मेंढक मिलने से गांव में खलबली मच गई है. यह मेंढक अपनी खासियत की वजह से चर्चा का विषय बन गया है. आम मेंढकों की तरह यह जमीन पर नहीं, बल्कि पेड़ों और दीवारों पर चढ़ जाता है. इसी वजह से इसे ‘स्पाइडरमैन मेंढक’ का नाम दिया गया है. इस मेंढक को देखकर गांव के लोग हैरान रह गए और इसे देखने के लिए भीड़ लग गई.
फोटोग्राफर के स्टूडियो में दिखा चौंकाने वाला नजारा
यह अनोखा मेंढक अमनपुर के वेतालपेठ इलाके में रहने वाले फोटोग्राफर आनंद राडे के स्टूडियो में देखा गया. जब आनंद राडे ने इसे पहली बार देखा तो वह खुद भी हैरान रह गए. उन्होंने मेंढक की कुछ तस्वीरें खींची और फिर इसे सुरक्षित तरीके से उसके प्राकृतिक ठिकाने में छोड़ दिया. आनंद का मानना है कि इस तरह के जीवों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए.
शोधकर्ता ने की मेंढक की पहचान
इस सफेद मेंढक की पहचान करने के लिए जब तस्वीरें अम्बोली के मशहूर मेंढक विशेषज्ञ काका भिसे को भेजी गईं, तो उन्होंने बताया कि यह एक दुर्लभ किस्म का ‘वृक्ष मेंढक’ (Tree Frog) है. यह मेंढक बहुत ज्यादा बारिश के वक्त बाहर निकलता है और इसकी त्वचा प्राकृतिक रूप से सफेद होती है. भिसे ने बताया कि यह मेंढक आमतौर पर उन जगहों पर मिलता है, जहां नमी और हरियाली होती है.
पेड़ों पर चढ़ने वाला ‘उड़ता मेंढक’
इसमेंढक की बनावट भी बाकी मेंढकों से अलग होती है. इसके पंजे प्लेट की तरह होते हैं, जो चौड़े होते जाते हैं. यह अपनी उंगलियों के बीच मौजूद झिल्ली का इस्तेमाल करके एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक ‘उड़’ सकता है. इसकी खास बनावट की वजह से इसे ‘स्पाइडरमैन मेंढक’ कहा जा रहा है. इसकी टांगों के अंदर काली धारियां होती हैं, जो छलांग लगाते वक्त चमकने लगती हैं.
दुश्मनों को चकमा देने वाला रंग
यह मेंढक अपने चमकीले रंगों की वजह से अपने दुश्मनों को चकमा देने में कामयाब रहता है. इन रंगों से यह खुद को छिपा भी सकता है और खतरे को भांपकर तुरंत भाग सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरह के मेंढकों की मौजूदगी यह संकेत देती है कि उस इलाके का पर्यावरण साफ-सुथरा और सेहतमंद है.
किसानों के लिए फायदेमंद मेंढक
इस मेंढक का भोजन कीड़े-मकोड़े होते हैं, जिनसे फसल को नुकसान पहुंचता है. इसलिए यह मेंढक किसानों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है. यह कीटों को खाकर खेतों की रक्षा करता है और कीटनाशकों की जरूरत को भी कम करता है.
1830 में सामने आया था पहली बार
ऐसे मेंढकों की जानकारी सबसे पहले 1830 में ब्रिटिश वैज्ञानिक जॉन एडवर्ड ग्रे ने दुनिया के सामने रखी थी. इसे संस्कृत में ‘चूर्ण’ और कोंकण में ‘चूणम’ कहा जाता है. यह मेंढक खासतौर पर दक्षिण एशिया और भारी बारिश वाले इलाकों में पाया जाता है.
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