Last Updated:January 11, 2025, 12:58 IST
Rajsamand News: राजस्थान के मेवाड़ इलाके में दो किसानों ने स्ट्रॉबेरी की खेती कर कमाल कर दिया है. अब लोग दूर-दूर से इन किसानों से स्ट्रॉबेरी की खेती के गुर सिखने आ रहे हैं. नारायण सिंह मेवाड़ में स्ट्रॉबेरी के 'सम्राट' बन गए हैं. स्ट्रॉबेरी...और पढ़ें
राजसमंद में 65 हजार वर्ग फीट क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी की यह खेती की गई है.
राजसमंद. कहते हैं कि मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो सफलता आपके कदम चूम लेती है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है राजसमंद जिले के घोड़च पंचायत के गांव कुंडा में नारायण सिंह और डॉ. महेश दवे ने. इन दोनों ने ऐसा काम कर दिखाया है जो कभी असंभव माना जाता था. इन्होंने मेवाड़ की धरा पर स्ट्रॉबेरी की खेती करके ना केवल अपना सपना पूरा किया है, बल्कि मेवाड़ के किसानों के लिए एक प्रेरणा भी बन गए हैं.
राजसमंद जिले के नाथद्वारा उपखंड की घोड़च पंचायत के गांव कुंडा गांव में एक ऐसी कहानी लिखी गई है जो संघर्ष, मेहनत और समर्पण का प्रतीक है. यह कहानी सिखाती है कि सही दिशा में प्रयास करने से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है. खास बात यह है कि फील्ड दूसरा होने के बाद भी प्रतिभा के धनी किसान नारायण सिंह और डॉक्टर महेश दवे ने मेवाड़ की धरती पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर ना केवल सफलता हासिल की बल्कि क्षेत्र के किसानों के लिए कृषि में एक नई लाइन खींच दी है.
65 हजार वर्ग फीट क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी की खेती की
उदयपुर जिले की मावली तहसील के आसलियों की मादड़ी गांव निवासी किसान नारायण सिंह ने बताया कि उनके क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी के लिए जरूरी क्लाइमेट नहीं है. बैंकिंग क्षेत्र में काम करने वाले नारायण सिंह ने खेती के नए आयाम तलाशने का फैसला लिया. उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती का विचार किया और इसके लिए रिसर्च की. उन्होंने महाबलेश्वर, हिमाचल और अन्य जगहों का दौरा कर उत्पादन के बारे में जानकारी ली. अपने शोध के दौरान नारायण सिंह की मुलाकात आरएनटी मेडिकल कॉलेज उदयपुर के प्रोफेसर मेडिसिन डॉ. महेश दवे से हुई. डॉ. दवे की भी खेती में रुचि थी. घोड़च के कुंडा गांव में उनके पास खाली जमीन थी. वहां पर दोनों ने 65 हजार वर्ग फीट क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने का निर्णय लिया.
दिसंबर में ही खेतों में भरपूर स्ट्रॉबेरी तैयार हो गई
नारायण सिंह ने डॉ. महेश दवे के सहयोग से स्ट्रॉबेरी की बुवाई बीते अक्टूबर में की. इसके लिए ऑर्गेनिक खाद, नीम की खली और छाया के लिए मल्च का उपयोग किया गया. मधुमक्खियों की मदद से पौधों का पोलिनेशन कराया गया जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में वृद्धि हुई. दो महीने बाद दिसंबर में ही खेतों में भरपूर स्ट्रॉबेरी तैयार हो गई. अब बड़े सुपर मार्केट, वरिष्ठ अधिकारी और उद्योगपति इनकी स्ट्रॉबेरी खरीदने के लिए पहुंच रहे हैं. अब तक इस खेती पर 8 लाख की लागत आई है. इससे अभी तक 2 लाख रुपये की कमाई हो चुकी है. फसल के दो चक्र पूरे होने पर कुल 16 लाख रुपये की कमाई होने का अनुमान है. एक ही फसल में 8 लाख रुपये का शुद्ध लाभ होने का दावा किया जा रहा है.
सुबह 4 बजे से ही सिंचाई और पौधों की देखभाल शुरू हो जाती है
दोनों ने बताया कि स्ट्रॉबेरी की खेती में लगातार ध्यान और मेहनत की जरूरत है. इस फसल के रखरखाव के लिए चार व्यक्तियों की एक टीम हर समय तैनात रहती है. सुबह 4 बजे से ही सिंचाई और पौधों की देखभाल शुरू हो जाती है. स्ट्रॉबेरी की संवेदनशील प्रकृति के कारण पौधों की नमी, पोषण और तापमान पर निरंतर ध्यान देना पड़ता है.
स्ट्रॉबेरी उत्पादन के लिए ये हैं आवश्यकताएं
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए आदर्श तापमान 15°C से 20°C के बीच होता है.
अत्यधिक गर्मी और सर्दी दोनों ही स्ट्रॉबेरी के लिए हानिकारक हैं.
स्ट्रॉबेरी के बलुई दोमट मिट्टी (सैंडी लोम) सबसे उपयुक्त होती है. इसका पीएच स्तर 5.5 से 7.0 के बीच होना चाहिए.
मिट्टी में अच्छी जल निकासी और उपजाऊपन जरूरी है. सिंचाई के लिए नियमित पानी की आवश्यकता होती है.
ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग बेहतर परिणाम देता है. पौधों की नमी बनाए रखना आवश्यक है.
खेती के लिए समतल या थोड़ी ढलान वाली जमीन उपयुक्त है.
इस खेती के लिए तेज हवा वाले क्षेत्रों से बचना चाहिए.
प्लास्टिक मल्चिंग का उपयोग भी खेती में मददगार होता है.
भारत में चैंडलर, कैमारोसा, और साबरगम जैसी किस्में अधिक लोकप्रिय है.
उर्वरकों में जैविक खाद जैसे नीम की खली और कम्पोस्ट का उपयोग लाभदायक है.
नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलित अनुपात बनाए रखना चाहिए.
बुवाई का समय अक्टूबर से नवंबर के बीच रहता है.
फसल की नियमित निराई-गुड़ाई और कीट रोग प्रबंधन बेहद जरूरी है.
फसल बुवाई के 60-80 दिनों बाद तैयार होती है. एक एकड़ में 6-10 टन तक स्ट्रॉबेरी का उत्पादन संभव है.
कृषि विभाग भी कर रहा है नियमित मॉनिटरिंग
कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक संतोष दुरिया और उद्यान विभाग के उप निदेशक हरिओम सिंह राणा ने बताया कि राज्य सरकार से इन्हें मलचिंग शीट, लो टनल और ड्रिप सिस्टम पर सब्सिडी दी है. इसके साथ ही समय समय पर तकनीकी मदद उपलब्ध कराई है. विभाग की ओर से उन्हें पूरा सहयोग दिया जा रहा है. विभाग की ओर से यहां निरंतर दौरा और निगरानी की जा रही है.