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Last Updated:February 21, 2025, 11:19 IST
Mandya Dog Kali Heroic Story: 950 ईस्वी में कर्नाटक के अटागुरु गांव में कुत्ते काली की बहादुरी के सम्मान में शिलालेख स्थापित किया गया. काली ने युद्ध में मालिक मनलेरु का साथ दिया और वीरगति पाई.

कुत्ते काली की वीरता और वफादारी की कहानी
हाइलाइट्स
950 ईस्वी में कुत्ते काली की बहादुरी के सम्मान में शिलालेख स्थापित किया गया.कुत्ते काली ने युद्ध में मालिक मनलेरु का साथ दिया और वीरगति पाई.शिलालेख बेंगलुरु के राज्य पुरातत्व संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है.मांड्या: कुत्ते को इंसान का सबसे वफादार दोस्त कहा जाता है और कर्नाटक के मांड्या के अटागुरु गांव का एक शिलालेख इस बात का गवाह है. सोचिए, कोई जानवर अपने मालिक के लिए इतनी वफादारी दिखाए कि उसकी याद में बाकायदा पत्थरों पर उसका नाम उकेरा जाए. दिलचस्प कहानी है, सुनिए…
साल था 950 ईस्वी. उस दौर में युद्ध, तलवारों की झंकार और वीरता के किस्से आम थे, लेकिन इस कहानी के हीरो कोई राजा-महाराजा नहीं, बल्कि एक बहादुर कुत्ता था—काली. अब जरा सोचिए, इंसानों की लड़ाई तो आपने सुनी होगी, लेकिन एक कुत्ते की बहादुरी के किस्से कम ही सुनने को मिलते हैं.
एक कुत्ते की मांग कर डाली
हुआ यूं कि उस समय राष्ट्रकूटों के तीसरे कृष्ण और उनके सेनापति मनलेरु, चोल राजा राजादित्य के खिलाफ युद्ध लड़ रहे थे. जब लड़ाई खत्म हुई और मनलेरु ने बहादुरी दिखाई, तो राजा ने खुश होकर कहा, “मांगो, जो चाहो!” अब मनलेरु ने कोई महल, जमीन-जायदाद या सोने-चांदी की फरमाइश नहीं की, बल्कि एक कुत्ते की मांग कर डाली—काली!
काली सिर्फ कोई आम पालतू कुत्ता नहीं था, बल्कि उसने युद्ध में भी मनलेरु का साथ दिया था. राजा ने काली को तोहफे में दे दिया और फिर शुरू हुई एक और दास्तान—वफादारी की, बलिदान की. एक दिन, जब मनलेरु शिकार के लिए जंगल गया, तो उसके प्यारे कुत्ते काली की मुठभेड़ एक खूंखार जंगली सूअर से हो गई. काली ने अपनी जान की परवाह किए बिना सूअर से भिड़ंत कर दी. लड़ाई जबरदस्त थी, आखिरकार काली ने सूअर को हरा दिया, लेकिन खुद भी वीरगति को प्राप्त हो गया.
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अब, जिसे कोई अपना समझता है, उसकी याद यूं ही नहीं मिटती. मनलेरु ने काली की याद में अटागुरु गांव के चल्लेश्वर मंदिर के सामने एक वीरगल्ल (यानी वीरता का शिलालेख) स्थापित कर दिया. सोचिए, एक कुत्ते के प्रति इतनी श्रद्धा कि उसकी बहादुरी हमेशा के लिए पत्थरों में दर्ज कर दी गई.
शिलालेख बेंगलुरु में सुरक्षित रखा है
आज यह शिलालेख राज्य पुरातत्व संग्रहालय, बेंगलुरु में सुरक्षित रखा गया है. इतना ही नहीं, इसकी एक प्रतिकृति मांड्या के उप-आयुक्त कार्यालय में भी लगाई गई है. हालांकि, अफसोस की बात यह है कि इस प्रतिकृति में कुत्ते का नाम दर्ज नहीं किया गया, लेकिन कहते हैं ना, जिनकी वफादारी इतिहास में दर्ज हो जाती है, उन्हें भला कौन भूल सकता है.
First Published :
February 21, 2025, 11:17 IST