रूह अफजा पर 'शरबत जिहाद', क्या सच में मुसलमानों की है यह ड्रिंक

1 week ago

Sharbat Jihad: योग गुरु बाबा रामदेव ने एक पेय पदार्थ को कथित धार्मिक फंडिंग से जोड़कर विवाद पैदा कर दिया है. बाबा रामदेव ने दावा किया कि एक खास कंपनी शरबत बेचती है, लेकिन उससे होने वाली कमाई का इस्तेमाल मदरसे और मस्जिद बनाने में किया जाता है. उन्होंने पतंजलि के गुलाब शरबत का प्रचार करते हुए यह बात कही. रामदेव ने आरोप लगाया, “एक कंपनी है जो आपको शरबत देती है, लेकिन इससे होने वाली कमाई का इस्तेमाल मदरसे और मस्जिद बनाने में किया जाता है. अगर आप वह शरबत पीते हैं, तो मदरसे और मस्जिद बनेंगे. लेकिन अगर आप यह (पतंजलि के गुलाब शरबत का जिक्र करते हुए) पीते हैं, तो गुरुकुल बनेंगे, आचार्य कुलम विकसित होगा, पतंजलि विश्वविद्यालय का विस्तार होगा और भारतीय शिक्षा पद्धति का विकास होगा.” 

बाबा रामदेव ने एक विवादास्पद समानता स्थापित करते हुए कहा, “जैसे लव जिहाद है, वैसे ही यह भी एक तरह का शरबत जिहाद है. इस शरबत जिहाद से खुद को बचाने के लिए यह संदेश सभी तक पहुंचना चाहिए.” उन्होंने अन्य पेय पदार्थों की तुलना ‘टॉयलेट क्लीनर’ भी की. पतंजलि ने सोशल मीडिया पर लिखा, “अपने परिवार और मासूम बच्चों को सॉफ्ट ड्रिंक और शरबत जिहाद के नाम पर बेचे जा रहे टॉयलेट क्लीनर के जहर से बचाएं. घर पर सिर्फ पतंजलि शरबत और जूस लाएं.” 

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पहले भी फंस चुके हैं विवाद में
पतंजलि और इसके संस्थापकों को पिछले कुछ सालों में अपनी बयानबाजी और विज्ञापनों के कारण कई कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. यह मामला तब सुर्खियों में आया था जब इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ याचिका दायर की. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसके विज्ञापनों पर अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगा दिया और भ्रामक दावा करने के लिए अदालत की अवमानना ​​का नोटिस जारी किया. इस बार बाबा रामदेव ने भले ही किसी ड्रिंक का नाम नहीं लिया, लेकिन वो निश्चित तौर पर रूह अफजा का जिक्र कर रहे थे, जिसे हमदर्द ने तैयार किया था. उनके बयान पर सोशल मीडिया पर हंगामा मचा हुआ है. आइए जानते हैं रूह आफजा का पाकिस्तान कनेक्शन और क्या ये वाकई मुस्लिमों का ड्रिंक है.

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1906 में बना हमदर्द
रूह अफजा को हमदर्द ने तैयार किया था जिसकी कहानी 119 साल से अधिक पुरानी है. जिसे पुरानी दिल्ली के एक यूनानी चिकित्सक हकीम हाफिज अब्दुल मजीद द्वारा तैयार किया गया था. चिलचिलाती गर्मी से निपटने के लिए एक ठंडा मिश्रण बनाने की इच्छा से प्रेरित होकर, उन्होंने फलों, जड़ी-बूटियों और फूलों के अर्क का एक अनूठा मिश्रण तैयार किया. हमदर्द प्रयोगशालाओं की ऑफिशियल वेबसाइट के अनुसार, 1906 में, हकीम अब्दुल मजीद ने पुरानी दिल्ली में एक यूनानी क्लिनिक हमदर्द (जिसका अर्थ है ‘सभी के लिए सहानुभूति’) खोला. यहीं पर उन्होंने ‘शरबत रूह अफजा’ बनाया जो एक ताजा पेय था. इसका उर्दू में अनुवाद ‘आत्मा का कायाकल्प’ होता है.

रूह अफजा फिर हुआ मुसलमानों का शरबत!

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हकीम मजीद ने बनाया रूह अफजा
भारत-पाकिस्तान विभाजन के बावजूद, रूह अफजा एक सदी से भी अधिक समय से गर्मियों में सभी लोगों का एक पसंदीदा पेय पदार्थ बना हुआ है, जो एक सच्चा दक्षिण एशियाई पेय है. कुछ साल पहले इस तरह के आरोप लगे थे कि रूह अफजा का उत्पादन पाकिस्तान में होता है, लेकिन उसकी बिक्री भारत में की जाती है. एक रिपोर्ट के अनुसार हमदर्द लैबोरेटरीज (इंडिया) के फूड डिवीजन के सीईओ और ट्रस्टी और हकीम अब्दुल मजीद के पड़पोते हामिद अहमद ने बताया कि इस ड्रिंक का ट्रेडमार्क हमदर्द लैबोरेटरीज (इंडिया) के पास है.

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यह एक सच्चा भारतीय उत्पाद
एक रिपोर्ट के अनुसार हामिद अहमद ने बताया, “1906 में सिर्फ एक हमदर्द था, लेकिन 1947 के बाद, जब मेरे परदादा अपने एक बेटे के साथ भारत में ही रहे, तो उनके दूसरे बेटे हकीम मोहम्मद सईद ने पाकिस्तान जाकर वहां एक और हमदर्द शुरू किया. फिर, जब 1971 में बांग्लादेश अस्तित्व में आया, तो एक तीसरा हमदर्द अस्तित्व में आया, हमदर्द बांग्लादेश. लेकिन तीनों ही रूह अफजा बनाते हैं.” हामिद अहमद ने बताया कि हमदर्द द्वारा 1907 में बनाया गया पहला ब्रांडेड उत्पाद साधारण रूह अफजा था. उन्होंने कहा,  “यह पाकिस्तान और बांग्लादेश के जन्म से भी पुराना है. यह एक भारतीय उत्पाद है.”

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रूह अफजा से होती है जोरदार कमाई
हकीम अब्दुल मजीद के पड़पोते और वर्तमान में हमदर्द इंडिया के खाद्य प्रभाग के सीईओ हामिद अहमद ने बताया, “दोनों देशों में बिजनेस आज स्वतंत्र रूप से चलाए जाते हैं, लेकिन उनके उत्पाद ‘लगभग समान हैं. हमदर्द इंडिया का वार्षिक कारोबार लगभग 70 मिलियन डॉलर है. 2020 में, कंपनी ने बताया था कि उसने अकेले रूह अफजा की बिक्री से 37 मिलियन डॉलर से अधिक की कमाई की. हमदर्द कंपनी का बिजनेस आज 25 से ज्यादा देशों में है और इसके 600 से ज्यादा प्रोडक्ट्स हैं. 

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धर्मार्थ शैक्षिक ट्रस्ट को जाता है मुनाफा
1922 में संस्थापक हकीम अब्दुल मजीद के निधन के बाद, उनकी पत्नी रबीआ बेगम और उनके दो बेटों ने ‘हमदर्द ट्रस्ट’ की स्थापना की. जिसके मुनाफे का 85 प्रतिशत धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए खर्च किया जाता था.  उनके बेटे हकीम अब्दुल हमीद ने 14 साल की उम्र में हमदर्द प्रयोगशालाओं का कामकाज संभाला. उसके बाद अब्दुल हमीद ने अपने छोटे भाई हकीम मुहम्मद सईद के साथ मिलकर कंपनी को चलाया, जब तक कि 1948 में वे पाकिस्तान नहीं चले गए. हकीम मुहम्मद सईद ने कराची में हमदर्द पाकिस्तान का गठन किया. 1948 में हमदर्द इंडिया एक वक्फ यानी गैरलाभकारी ट्रस्ट बन गया. हमदर्द ने एक हमदर्द फाउंडेशन की स्थापना की, जो धर्मार्थ शैक्षिक ट्रस्ट से जुड़ा है. इसके बाद से कंपनी का सारा मुनाफा फाउंडेशन को जाता है. 

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इसकी शोहरत किसी भी धर्म से ऊपर
रूह अफजा हमेशा से समाज के सभी वर्गों में एक बहुत पसंद किया जाने वाला शरबत रहा है. इसे देश भर में लोग पीढ़ियों से पीते आ रहे हैं. विशेष रूप से कड़ी गर्मी के महीनों में इसकी बिक्री बेतहाशा बढ़ जाती है. शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा जिसने रूह अफजा शरबत का स्वाद नहीं चखा हो. रमजान के समय, हिंदुओं त्योहारों के मौके पर लगाए जाने वाले शरबत के स्टाल या सिख पर्वों पर लगने वाली छबीलों में इसका इस्तेमाल जरूर होता है. एक सदी से ज्यादा पुराने गहरे लाल रंग के इस शरबत से सभी की कोई ना कोई यादें जरूर जुड़ी होंगी. यह शरबत हर घर और हर मजहब में स्वीकार्य है.  

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