वो दो देश कौन से, जहां बिना पासपोर्ट जा सकते हैं भारतीय, पहले थे ऐसे 4 देश

1 day ago

जब अंग्रेज भारत पर राज करते थे तब भारत के लोग बगैर पासपोर्ट 20 से 30 देशों की यात्रा कर सकते थे. लेकिन आजादी के बाद हालात तुरंत बदल गई. लेकिन 70-80 के दशक तक कम से कम चार ऐसे देश जरूर थे, जो भारत के लोगों को बगैर पासपोर्ट यात्रा की अनुमति देते थे. लेकिन अब ये घटकर दो रह गई है. यानि दुनिया के दो देश ऐसे हैं , जहां भारत के लोग बगैर पासपोर्ट जाकर रह सकते हैं और घूम सकते हैं. इसमें से एक देश तो ऐसा है जहां भारतीय आराम से जाकर जब तक चाहें तब तक रह सकते हैं.

ये दोनों देश भारत के पड़ोसी देश हैं. भारत से इनके संबंध बहुत अच्छे हैं. भारत इनके हितों का बहुत खयाल रखता है और इसी वजह से ये दोनों देश भारत और भारतीयों को खास दर्जा देते हैं.

भारत के लोग जिन दो देशों में बिना पासपोर्ट के यात्रा कर सकते हैं, उनके नाम नेपाल और भूटान हैं. भारत के साथ इन दोनों देशों के विशेष द्विपक्षीय समझौते हैं, जो भारतीय नागरिकों को बिना पासपोर्ट के प्रवेश की अनुमति देते हैं.

नेपाल के साथ पिछले 75 सालों से खास मैत्री संधि

भारत और नेपाल के बीच 1950 की भारत-नेपाल मैत्री संधि है, जो दोनों देशों के नागरिकों को एक-दूसरे के देश में बिना पासपोर्ट या वीजा के यात्रा करने की अनुमति देती है. भारतीय नागरिकों को नेपाल में प्रवेश के लिए केवल एक वैध पहचान पत्र (जैसे आधार कार्ड, वोटर आईडी, या ड्राइविंग लाइसेंस) की जरूरत होती है.

नेपाल में भारतीय नागरिक बिना किसी समय सीमा के रह सकते हैं, बशर्ते वे स्थानीय नियमों का पालन करें. यह सुविधा पर्यटन, व्यापार, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देती है.

इस देश में भी बगैर पासपोर्ट जा सकते हैं लेकिन 14 दिनों के लिए

दूसरा देश भूटान है, जिसके साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंध और समझौते हैं, जो भारतीय नागरिकों को बिना पासपोर्ट के भूटान में प्रवेश की अनुमति देते हैं. भूटान में प्रवेश के लिए भारतीय नागरिकों को केवल एक वैध पहचान पत्र, जैसे वोटर आईडी या आधार कार्ड, दिखाना होता है. हालांकि कुछ मामलों में भूटान के अधिकारियों द्वारा प्रवेश परमिट जारी किया जाता है. भारतीय नागरिक भूटान में 14 दिनों तक बिना वीजा के रह सकते हैं.

किन दो देशों ने भारत के साथ ये सुविधा खत्म कर दी

पहले भारत के लोग बगैर पासपोर्ट श्रीलंका और बांग्लादेश की यात्रा कर लेते थे लेकिन अब वो वैसा नहीं कर सकते. 1980 के दशक तक भारत और श्रीलंका के बीच एक समझौता था, जिसके तहत भारतीय नागरिक बिना पासपोर्ट के श्रीलंका की यात्रा कर सकते थे. यह सुविधा दोनों देशों के बीच घनिष्ठ सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों के कारण थी. तब तक केवल एक वैध पहचान पत्र के साथ यात्रा संभव थी.

1980 के दशक के अंत में श्रीलंका में गृहयुद्ध (LTTE और श्रीलंकाई सरकार के बीच) के कारण सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए इस सुविधा को समाप्त कर दिया गया. इसके बाद श्रीलंका ने भारतीय नागरिकों के लिए पासपोर्ट और वीजा अनिवार्य कर दिया. अब भारतीय नागरिकों को श्रीलंका जाने के लिए पासपोर्ट और इलेक्ट्रॉनिक ट्रैवल ऑथराइजेशन (ETA) या वीजा-ऑन-अराइवल की आवश्यकता होती है.

बांग्लादेश भी जा सकते थे लेकिन अब नहीं

1971 में बांग्लादेश के आजाद होने से पहले, जब यह पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा था, तब भारत और पूर्वी पाकिस्तान के बीच कुछ सीमित क्षेत्रों में बिना पासपोर्ट के यात्रा की सुविधा थी, खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों में. बांग्लादेश बनने के बाद भी 1970 के दशक के शुरुआती वर्षों में कुछ विशेष परिस्थितियों में भारतीय नागरिक बिना पासपोर्ट के बांग्लादेश जा सकते थे, विशेष रूप से पारिवारिक या व्यापारिक संबंधों के कारण.

लेकिन कुछ सालों बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में बदलाव और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर सख्त नियमों के कारण यह सुविधा समाप्त हो गई. अब बांग्लादेश जाने के लिए भारतीय नागरिकों को वैध पासपोर्ट और वीजा की जरूरत होती है.

ब्रिटिश राज में भारतीय बगैर पासपोर्ट कहां कहां जा सकते थे

ब्रिटिश राज के दौरान (1858–1947) भारत के लोग, जो उस समय ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन थे. तब हमारे देश के लोग कम से कम 20 से 30 देशों में बगैर पासपोर्ट केवल कुछ दस्तावेजों के साथ यात्रा कर सकते थे. इसके लिए ब्रिटिश राज द्वारा जारी पहचान पत्र, परमिट या यात्रा दस्तावेज़ पर्याप्त होते थे. तब इन दोनों में भारतीय बगैर पासपोर्ट जा सकते थे.

ब्रिटिश मलाया (वर्तमान मलेशिया) – भारतीय श्रमिकों को तमिलनाडु और अन्य क्षेत्रों से रबर बागानों में काम करने के लिए भेजा जाता था. उनके लिए पासपोर्ट की जरूरत नहीं थी. इसकी जगह औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा जारी परमिट या अनुबंध पत्र का उपयोग होता था.

सिंगापुर – ब्रिटिश मलाया के हिस्से के रूप में, सिंगापुर में भी भारतीय व्यापारी और श्रमिक बिना पासपोर्ट के जा सकते थे.

सीलोन (वर्तमान श्रीलंका) – तमिल श्रमिकों को चाय बागानों के लिए भेजा जाता था और इसके लिए पासपोर्ट के बजाय परमिट या अनुबंध की जरूरत होती थी.

ब्रिटिश पूर्वी अफ्रीका (केन्या, युगांडा, तंजानिया) – भारतीय रेलवे निर्माण और व्यापार के लिए पूर्वी अफ्रीका गए. उनके लिए भी बस उनके पास औपनिवेशिक परमिट होना काफी होता था.

दक्षिण अफ्रीका – भारतीय अनुबंधित श्रमिक और व्यापारी दक्षिण अफ्रीका (नेटाल और ट्रांसवाल) गए. उनके लिए पासपोर्ट के बजाय अनुबंध पत्र या परमिट का उपयोग होता था.

फिजी, मॉरीशस, त्रिनिदाद और गुयाना – ये ब्रिटिश उपनिवेश थे, जहां भारतीय श्रमिकों को चीनी और अन्य बागानों के लिए भेजा गया. यात्रा के लिए औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा अनुबंध पत्र और परमिट जारी किए जाते थे.

बर्मा (वर्तमान म्यांमार) – बर्मा उस समय ब्रिटिश भारत का हिस्सा था (1937 तक), इसलिए भारतीय बिना किसी औपचारिक पासपोर्ट के बर्मा की यात्रा कर सकते थे. 1937 के बाद जब बर्मा को अलग प्रशासनिक इकाई बनाया गया, तब भी भारतीयों के लिए यात्रा अपेक्षाकृत आसान थी और पासपोर्ट की जरूरत नहीं होती थी.

नेपाल – नेपाल ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा नहीं था, लेकिन भारत के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों के कारण भारतीय बिना पासपोर्ट के नेपाल जा सकते थे. व्यापारियों, तीर्थयात्रियों और श्रमिकों का आवागमन आम था.

भूटान – भूटान भी ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा नहीं था, लेकिन ब्रिटिश भारत के साथ घनिष्ठ संबंध थे. भारतीय व्यापारी और तीर्थयात्री बिना पासपोर्ट के भूटान जा सकते थे, बशर्ते उनके पास स्थानीय प्रशासन का परमिट हो.

अफगानिस्तान – ब्रिटिश भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा (वर्तमान खैबर पख्तूनख्वा) पर अफगानिस्तान के साथ व्यापार और आवागमन होता था. स्थानीय पश्तून और अन्य समुदाय बिना पासपोर्ट के सीमा पार कर सकते थे, लेकिन यह औपचारिक यात्रा से अधिक अनौपचारिक थी.

तिब्बत (चीन के अधीन) – ब्रिटिश भारत के व्यापारी और तीर्थयात्री सिक्किम और अन्य मार्गों के माध्यम से तिब्बत जा सकते थे. इसके लिए पासपोर्ट की जरूरत नहीं थी, लेकिन ब्रिटिश प्रशासन या स्थानीय अधिकारियों से परमिट लेना पड़ता था.

पर्सियन गल्फ क्षेत्र (ब्रिटिश संरक्षित राज्य) – बहरीन, कतर, और संयुक्त अरब अमीरात (तब त्रुशियल स्टेट्स) जैसे क्षेत्र ब्रिटिश संरक्षण में थे. भारतीय व्यापारी और श्रमिक इन क्षेत्रों में बिना पासपोर्ट के जा सकते थे, बशर्ते उनके पास ब्रिटिश प्रशासन द्वारा जारी परमिट या पत्र हों.

कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड – ये देश ब्रिटिश डोमिनियन थे. भारतीय (विशेष रूप से सिख व्यापारी और श्रमिक) इन देशों में यात्रा कर सकते थे. हालांकि इन देशों में प्रवेश के लिए औपचारिक दस्तावेज़ (जैसे परमिट या सिफारिश पत्र) की जरूरत होती थी. पासपोर्ट का उपयोग सीमित था. बाद में, 1900 के दशक की शुरुआत में, इन देशों ने सख्त इमिग्रेशन नीतियाँ लागू कीं, जिससे भारतीयों के लिए यात्रा कठिन हो गई.

आजादी के बाद ये व्यवस्था बदल गई

भारत की आजादी (15 अगस्त 1947) के तुरंत बाद, बिना पासपोर्ट के यात्रा करने की व्यवस्था में कुछ बदलाव आए. हालांकि ये एक झटके में नहीं बदले. आजादी के बाद, भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया और अंतरराष्ट्रीय यात्रा नियमों, नई सीमाओं, और राजनयिक संबंधों के कारण इस व्यवस्था में धीरे-धीरे बदलाव हुआ.

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