शिंदे की 'ना' को 'हां' करवाने पर क्यों तुली BJP, जानिए मनाने की इनसाइड स्टोरी

4 days ago

मुंबई: महाराष्ट्र में नई सरकार बनाने के लिए महायुति गठबंधन तेजी से काम कर रहा है. गुरुवार रात केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और गठबंधन नेताओं के बीच दिल्ली में एक अहम बैठक हुई. इस बैठक में भारतीय जनता पार्टी ने एकनाथ शिंदे को उपमुख्यमंत्री पद देने का प्रस्ताव रखा. हालांकि, शुरू में मुख्यमंत्री पद पर बने रहने की ख्वाहिश रखने वाले एकनाथ शिंदे डिप्टी सीएम पद की पेशकश को स्वीकार करने से कतरा रहे हैं. उनके इस विरोध ने बीजेपी के लिए एक नई राजनीतिक पहेली खड़ी कर दी है.

सूत्रों का कहना है कि एकनाथ शिंदे ने बीजेपी से अपने शिवसेना गुट के किसी अन्य नेता को डिप्टी सीएम पद देने के लिए कहा है. वह खुद महायुति सरकार से पूरी तरह बाहर रहने पर भी विचार कर रहे हैं. हालांकि, बीजेपी शिंदे को सरकार से अलग रहने नहीं देना चाहती है. भाजपा का कहना है कि नई सरकार में शिंदे की भूमिका अहम है. खबर है कि शिंदे को लगता है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद डिप्टी सीएम की कुर्सी स्वीकार करना उनके कद को कम करेगा. उन्होंने डिप्टी सीएम पद के लिए अपने बेटे श्रीकांत शिंदे का नाम भी आगे बढ़ाया है. हालांकि, बीजेपी इस प्रस्ताव को मंजूर करेगी, इसकी संभावना कम है. श्रीकांत शिंदे के पास इतने हाई-प्रोफाइल पद के लिए जरूरी राजनीतिक अनुभव नहीं है.

श्रीकांत पर क्यों नहीं मान रही भाजपा
बीजेपी का मानना ​​है कि श्रीकांत शिंदे को डिप्टी सीएम पद पर बिठाने से महायुति पर परिवारवाद के आरोप लग सकते हैं. इसके अलावा, शिंदे गुट के कई सीनियर नेता खुद को दरकिनार महसूस कर सकते हैं, जिससे अंदरूनी कलह पैदा हो सकती है. अगर श्रीकांत शिंदे डिप्टी सीएम का पद संभालते हैं, तो उन्हें अजित पवार जैसे अनुभवी नेताओं के साथ काम करना होगा. दोनों के बीच तुलना शिवसेना गुट की छवि को कमजोर कर सकती है. बीजेपी के रणनीतिकारों को यह भी डर है कि श्रीकांत की आक्रामक राजनीतिक शैली सरकार में मुद्दों को जन्म दे सकती है.

शिंदे के होने से भाजपा को राहत
बीजेपी एकनाथ शिंदे को अपनी सरकार में एक अहम कड़ी मानती है. पिछले एक साल में एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के एक प्रमुख चेहरे के रूप में उभरे हैं. कार्यकर्ता मनोज जारंगे पाटिल जैसे प्रमुख मराठा नेताओं के साथ उनके जुड़ाव ने उनकी स्थिति को मजबूत किया है. मराठों के बीच एकनाथ शिंदे की लोकप्रियता और विश्वसनीयता बीजेपी के लिए बहुमूल्य है. मराठा आरक्षण मुद्दे पर भविष्य में होने वाले विरोध प्रदर्शनों या अशांति की स्थिति में बीजेपी का मानना ​​है कि सरकार में शिंदे की मौजूदगी तनाव को कम करने में मदद करेगी.

भाजपा क्यों शिंदे को मनाने में जुटी
भाजपा एकनाथ शिंदे को सरकार में बनाए रखना चाहती है, इसकी एक और वजह है अजित पवार का महायुति गठबंधन में बढ़ता प्रभाव. अगर एकनाथ शिंदे हटते हैं तो अजित पवार का सरकार पर नियंत्रण और बढ़ जाएगा. पवार को संतुलित करने के लिए भाजपा दो मजबूत मराठा नेताओं को मुख्य पदों पर चाहती है. एकनाथ शिंदे के बने रहने से यह सुनिश्चित होगा कि पवार का प्रभाव गठबंधन पर हावी न हो. यह संतुलन महायुति सरकार की एकता और स्थिरता बनाए रखने के लिए ज़रूरी है.

शिंदे ने रखी हैं शर्तें?
हालांकि शिंदे डिप्टी सीएम की भूमिका स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं, लेकिन खबर है कि उन्होंने मुआवजे के तौर पर अहम विभागों की मांग की है. इनमें गृह, शहरी विकास और लोक निर्माण शामिल हैं – जो सरकार के सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों में से एक हैं. चल रही बातचीत के तहत भाजपा इन मांगों पर विचार कर रही है. देखना होगा कि ये मांगें मानी जाती हैं या नहीं. हालांकि, ये मांगें महायुति सरकार के भीतर राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखने के शिंदे के दृढ़ संकल्प को दर्शाती हैं.

क्यों इतना अहम है शिंदा का सरकार में होना
महायुति सरकार में एकनाथ शिंदे का रोल मंत्री पदों से कहीं बड़ा है. उन्हें मराठा समुदाय से जोड़ने वाली एक अहम कड़ी माना जाता है, जो महाराष्ट्र की राजनीति के केंद्र में रहा है. मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान एकनाथ शिंदे के नेतृत्व ने बीजेपी को शिवसेना में फूट और मराठा आंदोलन जैसी मुश्किल परिस्थितियों से निकलने में मदद की. उनके जाने से एक ऐसा खालीपन आ सकता है जिसे भरने के लिए बीजेपी को मशक्कत करनी पड़ सकती है. इसके अलावा, शिंदे के बाहर होने से अजीत पवार का हौसला बढ़ सकता है, जिन्होंने महायुति गठबंधन के भीतर पहले ही अपनी स्थिति मजबूत कर ली है. पवार का बढ़ता प्रभाव बीजेपी की योजनाओं को बाधित कर सकता है और सरकार में शक्ति असंतुलन पैदा कर सकता है.

महायुति में फंसा है पेच
एकनाथ शिंदे के डिप्टी सीएम की भूमिका लेने से हिचकिचाहट ने महायुती सरकार के गठन को और भी जटिल बना दिया है. शिंदे की अहम मंत्रालयों की मांग बताती है कि वह अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना चाहते हैं, वहीं भाजपा का उनको शामिल करने पर जोर गठबंधन में उनके महत्व को दिखाता है. शिंदे और पवार की आकांक्षाओं के बीच संतुलन बनाना भाजपा के लिए एक नाजुक काम है. यह राजनीतिक रस्साकशी कैसे सुलझती है, इसका असर महाराष्ट्र की नई सरकार के समीकरणों पर लंबे समय तक रहेगा.

Tags: Devendra Fadnavis, Eknath Shinde, Maharashtra News

FIRST PUBLISHED :

November 30, 2024, 11:21 IST

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