सांय से कान के बगल से निकली गोली... पहलगाम हमले में बचने वाले परिवार की कहानी

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Last Updated:April 30, 2025, 09:44 IST

Pahalgam Survivor: पहलगाम में आतंकियों के हमले में 26 लोगों की मौत हो चुकी है. मगर, सैकड़ों टूरिस्टों ने इस हमले में खुद की जान बचाकर निकल पाए. यह कहानी कर्नाटक के एक ऐसे ही परिवार की, जो इस हमले में बाल-बाल खु...और पढ़ें

सांय से कान के बगल से निकली गोली... पहलगाम हमले में बचने वाले परिवार की कहानी

पहलगाम हमले में बचने वाला परिवार ने कहा?

Pahalgam Survivor: बस बाल-बाल बच गए… पहलगाम हमले में बचे परिवार की कहानी है. उस खौफनाक दिन को याद करते हुए, पूरा परिवार कांप उठता है. कहते हैं कि उम्मीद तो छोड़ ही दिया था कि बच पाएंगे. जमीन पर पत्नी और बेटे के साथ लेटे हुए थे… मैं बार-बार कह रहा था कि आज मर जाएंगे, मगर मेरे पत्नी की आत्मविश्वास ने आज बचा लिया. दरअसल, पहलगाम के बैसरन मैदानों में घूमने आए कर्नाटक के हेगड़े परिवार चमत्कारिक रूप से बच निकले थे. आतंकवादियों ने 25 पर्यटकों और एक कश्मीरी टट्टू चालक की निर्मम हत्या कर दी थी. आइये जानते हैं इनकी कहानी.

प्रदीप हेगड़े, उनकी पत्नी शुभा हेगड़े और उनका बेटा सिद्धांत ने एनडीटीवी को अपनी कहानी बताई है. पूरा परिवार 21 अप्रैल को श्रीनगर को पहुंचा था. हमले वाले दिन की सुबह पहलगाम के लिए रवाना हुए थे. उनके कार्यक्रम में बैसरन सबसे टॉप था. परिवार के बाल-बाल बचने के की कहानी में प्रदीप ने बताया, ‘हमने तीन घोड़े किराए पर लिए . सड़क बहुत खराब थी. बारिश हो रही थी, बहुत कीचड़ थी और फिसलन भी. हमें चोटी पर पहुंचने में एक घंटा 15 मिनट लगे.’

उन्होंने बताया कि बैसरन में घुड़सवार पर्यटकों को उतारते हैं. फिर बाद में नीचे ले जाते हैं. प्रदीप ने बताया, ‘जब हम अंदर गए तो वहां बहुत भीड़ थी. जब आप प्रवेश करते हैं, तो आपके दाईं ओर जहां ज़िपलाइन शुरू होती है. वहां एक खाली क्षेत्र है. हमने सोचा कि हम वहां कुछ तस्वीरें क्लिक करेंगे. हमने वहां लगभग एक घंटा बिताया.’

उन्होंने कहा कि अब हम घाटी में जाने की तैयारी में थे. दोपहर के करीब 1.45 हम वहां पर जाने की तैयारी की. लेकिन, मेरे बेटे ने कहा कि उसे भूख लगी है. हमने उसे मनाने की कोशिश की कि हम जाने से पहले कुछ खा सकते हैं. लेकिन वह अड़ा रहा. इसलिए हम स्टॉल की ओर चल पड़े. हमने मैगी का ऑर्डर दिया. फिर मेरी पत्नी 500 मीटर दूर वॉशरूम चली गई. पे एंड यूज टॉयलेट था. वह वापस लौट के आई, क्योंकि वह पैसे लेकर नहीं गई थी. पैसे लेकर गई. तब तक हम बाप-बेटे खाना खा चुके थे. वह उसने जल्दी से खाना खाया.’

जब हमने पहली गोली की आवाज सुनी तब चाय का ऑर्डर दिया था. उन्होंने कहा, ‘उस समय हमें नहीं पता था कि ये गोलियां हैं. हमें और दुकानदार को लगा कि जंगली जानवरों को भगाने के लिए पटाखे फोड़े जा रहे होंगे. हम स्थिर हो कर चाय पीने लगे. करीब 15-20 सेकंड बाद, हमने दो लोगों को बड़ी बंदूकों के साथ देखा. वे लगातार गोलियां चला रहे थे. एक आतंकवादी घाटी के निचले हिस्से की ओर गया, जबकि दूसरा उनकी ओर बढ़ रहा था.

प्रदीप ने कहा कि शुरू में, हमें एहसास नहीं हुआ कि क्या हो रहा है. फिर भी हम जमीन पर लेट गए. तभी मेरी पत्नी ने मेरा बैग लेने के लिए टेबल पर हाथ बढ़ाया. उसमें हमारे आईडी और फोन थे. महसूस किया कि उसके दाहिने कान के पास से कुछ गुजरा. यह गोली थी, जी हां हम कांप उठे, जैसे ही गोली गुजरी. मुझे 100 प्रतिशत यकीन था कि हम मर जाएंगे, लेकिन मेरी पत्नी कहती रही, ‘कुछ नहीं होगा. उसकी आत्मविश्वास ने हमें बचा लिया.’

कान के पास से गोली गुजरने पर शुभा ने कहा, ‘मैं सिर्फ यहीं सोच रही थी कि मैं क्यों उठी. मगर, भगवान ने मुझे बचा लिया. लेकिन मैंने अपने पति और बेटे को नहीं बताया क्योंकि मुझे डर था कि वे डर जाएंगे.’ प्रदीप ने कहा कि उस समय उन्हें बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि यह एक आतंकवादी हमला था. किसी ने आवाज दी, शायद घुड़सवार ही थे, गेट की ओर जल्दी से भागो. गेट पर भीड़ थी, हर कोई बाहर जाने की कोशिश कर रहा था. मेरा बेटा गिर गया, मगर, किसी तरह हम बाहर निकल आए.

बाहर निकलने के बाद, हमें नहीं पता था कि किस रास्ते से जाना है. किसी ने हमें रास्ता दिखाया. हम कई बार गिरे, हम 2-3 किलोमीटर तक भागे, फिर हमने देखा कि हमारा घोड़ा वाला एक पेड़ के पीछे छिपा हुआ है. हमने उससे हमें बचाने के लिए कहा और वह हमारे साथ आया. मेरे बेटे ने आखिरकार कहा कि वह अब और नहीं भाग सकता. हमने घोड़ों को नीचे की ओर भागते देखा, इसलिए हमने उससे अनुरोध किया कि वह हमारे बेटे के लिए एक घोड़ा पकड़ ले. घुड़सवार ने हमें सुरक्षित नीचे की ओर आने में मदद की.

Location :

Bangalore,Karnataka

First Published :

April 30, 2025, 09:44 IST

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