सैकड़ों किमी की दूरी... फिर क्यों धराली और चसोटी में आई एक जैसी त्रासदी?

4 hours ago

Last Updated:August 22, 2025, 07:58 IST

Dharali and Chasoti Flood: महज 9 दिनों में उत्तरकाशी की धराली और जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ के चसोटी गांव अचानक आई बाढ़ से तबाह हो गए. वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सिर्फ बादल फटना नहीं, बल्कि ग्लेशियर झील फटने ...और पढ़ें

सैकड़ों किमी की दूरी... फिर क्यों धराली और चसोटी में आई एक जैसी त्रासदी?वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सिर्फ बादल फटना नहीं, बल्कि ग्लेशियर झील फटने जैसी बड़ी आपदा भी हो सकती है.

Dharali and Chasoti Tragedy: हिमालयी इलाकों में आपदा की कहानियां नई नहीं हैं, लेकिन इस बार स्थिति और भी चिंताजनक रही. नौ दिनों के भीतर दो अलग-अलग राज्यों की दो घाटियां – उत्तरकाशी (उत्तराखंड) की धराली और जम्मू-कश्मीर (किश्तवाड़) की चसोटी अचानक आई भीषण बाढ़ से उजड़ गईं. दरअसल, ये दोनों गांव एक-दूसरे से सैकड़ों किलोमीटर दूर हैं, लेकिन जीवन-शैली और अर्थव्यवस्था में एक जैसे हैं, जैसे: तीर्थयात्रा और सेब-अखरोट की खेती पर निर्भर. लेकिन, यहां अचानक आई बाढ़ ने मंदिर, पुल और खेत सब कुछ बहा दिए.

धराली और चसोटी की त्रासदी

धराली (उत्तरकाशी): 5 अगस्त को आई बाढ़ ने गांव को तहस-नहस कर दिया. एक की मौत हुई और 68 लोग लापता हो गए. इस वजह से गंगोत्री की यात्रा रोकनी पड़ी.

चसोटी (किश्तवाड़): यहां 14 अगस्त को अचानक बाढ़ आई, जिस वजह से गांव के मंदिर और खेत चंद मिनटों में बह गए. आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि करीब 70 लोगों की मौत हुई और लगभग उतने ही लोग लापता हैं.

चश्मदीदों की आंखों-देखी

चसोटी के 49 वर्षीय सुरेश चंदर ने बताया, “13 अगस्त की रात को कोई तेज बारिश नहीं हुई. अगले दिन भी बस हल्की बूंदाबांदी थी. लेकिन दोपहर को अचानक तेज आवाज आई और पानी का सैलाब नीचे उतर आया. हम भागकर जान बचा पाए, लेकिन मेरे चाचा, 75 वर्षीय पुजारी बह गए. तीन मंदिर मिनटों में खत्म हो गए.”

बादल फटने से हुई तबाही या कुछ और?

आम तौर पर ऐसे हादसों को “बादल फटना” कहकर समझा दिया जाता है. लेकिन इस बार मौसम विभाग के आंकड़े अलग कहानी कह रहे हैं.

धराली में हुई तबाही को लेकर मौसम विभाग ने बताया कि उस दिन बहुत हल्की बारिश हुई थी. इतनी कम बारिश से इतनी बड़ी बाढ़ आना संभव नहीं. वहीं, चसोटी जिले में लगभग 4–5 मिमी हल्की बारिश दर्ज हुई. यह बाढ़ लाने के लिए पर्याप्त नहीं थी. इसलिए इस विरोधाभास ने वैज्ञानिकों को सोचने पर मजबूर कर दिया है.

विशेषज्ञों का मानना है कि ये आपदाएं “ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF)” यानी ग्लेशियर की झील फटने से आई होंगी. जब पिघलते ग्लेशियरों की झीलें या कमजोर बर्फ/मलबे की दीवार टूट जाती है, तो अचानक पानी और चट्टानों का बड़ा सैलाब नीचे की ओर आता है. दोनों जगहों पर भारी-भरकम चट्टानों और बड़े-बड़े पत्थरों का बहकर आना इस बात का संकेत देता है.

मौसम विशेषज्ञों की क्या है राय?

मुख्तार अहमद (मौसम विज्ञान केंद्र, श्रीनगर): “चसोटी के पास गुलाबगढ़ स्टेशन ने सिर्फ 4-5 मिमी बारिश दर्ज की. इतनी कम बारिश से इतना बड़ा सैलाब संभव नहीं. शायद ऊपरी हिस्से में ग्लेशियर या झील टूटी हो.”

आनंद शर्मा (पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक, IMD): “बारिश के आंकड़े ‘बादल फटने’ की थ्योरी से मेल नहीं खाते. हमें ऊपरी इलाकों में और बेहतर निगरानी की जरूरत है. केवल बादल फटना कहकर बात खत्म करना सही नहीं,

खतरे की अनदेखी

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में कई खतरनाक ग्लेशियर झीलों की पहचान की है. लेकिन निगरानी बहुत सीमित है और चेतावनी ज्यादातर प्रभावित गांवों तक नहीं पहुंच पाती. डॉप्लर रडार सिर्फ बारिश पकड़ सकते हैं, ग्लेशियर टूटने या ढलान खिसकने का अंदाजा नहीं लगा सकते.

विकास योजनाएं बनीं स्थानीय लोगों की चिंता

सरकार यहां पर भी बड़े-बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट ला रही है, जैसे: पड्दर–जांस्कर सड़क की योजना, जो जम्मू को लद्दाख से जोड़ेगी. इसी तरह चसोटी–मचैल–सूमचन–जोंगखुलम तक 45 किमी सड़क बनाने का प्रस्ताव. इसके अलावा, 31 किमी सड़क PMGSY के तहत मंजूर हुई है और साथ ही 8 किमी सुरंग की योजना भी शामिल है. लेकिन स्थानीय लोगों के लिए ये सब योजनाएं दूर की बातें हैं. फिलहाल उनकी चिंता सिर्फ यही है कि कहीं अगली आपदा फिर से न आ जाए.

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Location :

Himachal Pradesh

First Published :

August 22, 2025, 07:58 IST

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