सोनम वांगचुक से क्यों छीनी गई लद्दाख की जमीन, जिस पर मचा बवाल, समझें पूरी बात

15 hours ago

Last Updated:August 25, 2025, 07:45 IST

सोनम वांगचुक से क्यों छीनी गई लद्दाख की जमीन, जिस पर मचा बवाल, समझें पूरी बातमशहूर फिल्म 3 इडियट्स में आमिर खान का फुनसुख वांगडू वाला रोल इन्हीं सोनम वांगचुक के जीवन से प्रेरित था. (फाइल फोटो)

जाने-माने पर्यावरणविद और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव लर्निंग (HIAL) की जमीन का पट्टा लद्दाख प्रशासन ने रद्द कर दिया है. मशहूर फिल्म 3 इडियट्स में आमिर खान का फुनसुख वांगडू वाला रोल इन्हीं सोनम वांगचुक के जीवन से प्रेरित था. सोनम का आरोप है कि लद्दाख के मुद्दों को उठाने और इस केंद्रशासित प्रदेश को छठी अनुसूची में शामिल करने की उनकी लगातार मांग के कारण उनसे जमीम का आवंटन छीना गया है.

लद्दाख प्रशासन का यह फैसला वहां बड़े राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है. लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) जैसे प्रमुख सामाजिक-राजनीतिक संगठनों ने इसे ‘लद्दाख पर हमला’ करार दिया है और केंद्र सरकार पर आवाज़ उठाने वालों को चुप कराने का आरोप लगाया है.

क्यों रद्द हुआ जमीन आवंटन?

2018 में HIAL को 54 हेक्टेयर (1076 कनाल) जमीन 40 साल की लीज़ पर दी गई थी. लेकिन लेह के डिप्टी कमिश्नर ने 21 अगस्त को आदेश जारी कर कहा कि ‘जमीन का इस्तेमाल उस उद्देश्य के लिए नहीं हुआ जिसके लिए इसे दिया गया था. यहां अभी तक कोई मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय स्थापित नहीं हुआ है.’ आदेश में यह भी कहा गया कि जमीन अब राज्य (LAHDC लेह) की संपत्ति मानी जाएगी और राजस्व अभिलेखों में संशोधन कर जमीन खाली कराई जाएगी.

क्या कह रहें सोनम वांगचुक?

सोनम वांगचुक ने इस आदेश को व्यक्तिगत हमला नहीं बल्कि लद्दाख पर हमला बताया. उन्होंने कहा, ‘यह सिर्फ सोनम वांगचुक पर नहीं बल्कि लद्दाख पर हमला है. यह लेह एपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस को कमजोर करने की कोशिश है. HIAL कोई निजी विश्वविद्यालय नहीं बल्कि रजिस्टर्ड चैरिटेबल ट्रस्ट है, जिसे लद्दाख के नेताओं के समर्थन से बनाया गया था.’

वांगचुक ने कहा कि HIAL से अब तक 400 छात्र पढ़ाई पूरी कर चुके हैं और संस्था ने पानी संकट से निपटने के लिए ‘आइस स्तूपा प्रोजेक्ट’ जैसी सफल पहल की है. उन्होंने सवाल उठाया कि ‘जमीन का आवंटन 2018 में हुआ था, और अब अचानक कहा जा रहा है कि यह अपने मकसद को पूरा नहीं कर रहा. यह फैसला उसी वक्त आया है जब लद्दाख के लिए संवैधानिक गारंटी की मांग तेज है. यह महज इत्तेफाक नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति लगती है.’

LAB और KDA ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि यह आदेश ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ है. ऐसा लगता है कि लोगों को डराने-धमकाने की कोशिश हो रही है. सोनम वांगचुक लद्दाख के अधिकारों की आवाज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठा रहे हैं. हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे और उनका पूरा साथ देंगे.

छठी अनुसूचि आंदोलन के चेहरा सोनम वांगचुक

दरअसल 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था. शुरुआत में कई लोगों ने इसका स्वागत किया, लेकिन जल्द ही प्रत्यक्ष केंद्रीय शासन और स्थानीय लोकतांत्रिक संस्थाओं की गैर-मौजूदगी को लेकर असंतोष बढ़ा.

LAB और KDA ने मिलकर राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के तहत विशेष संवैधानिक सुरक्षा की मांग शुरू की. सोनम वांगचुक इस आंदोलन का चेहरा बने, जिन्होंने 2023 में भूख हड़ताल और लंबी पदयात्रा कर विरोध दर्ज कराया.

केंद्र सरकार ने जनवरी 2023 में एक उच्चस्तरीय समिति बनाई थी, जिसने मई 2024 में लद्दाख के नेताओं से बातचीत के बाद डोमिसाइल पॉलिसी लागू करने की सिफारिश की. बावजूद इसके, राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग अधूरी है.

LAB और KDA ने इस मुद्दे पर एकजुट होकर फिर से आंदोलन की चेतावनी दी है. सोनम वांगचुक का कहना है कि ‘HIAL केवल लद्दाख ही नहीं बल्कि पूरे हिमालय की धरोहर है. जमीन का आवंटन रद्द करना लोगों के संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई से जुड़ा हुआ है.’

क्या है यह छठी अनुसूचि?

भारतीय संविधान की छठी अनुसूची उन विशेष प्रावधानों को बताती है, जो पूर्वोत्तर भारत के आदिवासी इलाकों की प्रशासनिक व्यवस्था और स्वशासन के लिए बनाए गए हैं. वर्तमान में यह छठी अनुसूची सिर्फ चार राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम पर लागू होती है. यह अनुसूची मुख्य रूप से वहां की जनजातीय संस्कृति, परंपराएं, भाषाएं और सामाजिक-आर्थिक हितों की रक्षा करने के लिए बनाई गई है.

इन राज्यों के कुछ जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त जिला परिषद और क्षेत्रीय परिषद के जरिए स्वशासन दिया गया है. ये परिषदें स्थानीय प्रशासन, कानून बनाने और शासन का अधिकार रखती हैं. हालांकि इसकी कुछ सीमाएं भी रखी गई हैं.

जिला परिषदें भूमि, वनों, जल, जनजातीय रीति-रिवाज, विवाह, सामाजिक परंपराएं, और रोज़गार आदि विषयों पर कानून बना सकती हैं. परिषदें स्थानीय विवादों और परंपरागत मामलों की सुनवाई के लिए अदालत भी स्थापित कर सकती हैं. इसके अलावा ये अपने इलाकों में टैक्स, सेस और टोल वसूल सकते हैं. उन्हें राज्य सरकार और केंद्र से फंड भी मिलता है.

Saad Omar

An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें

An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...

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Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

August 25, 2025, 07:45 IST

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