Last Updated:July 02, 2025, 11:07 IST
Kargil War: पांच रुपयों के कुछ सिक्कों ने टाइगर हिल पर भारतीय और पाकिस्तान के बीच चल रहे कारगिल युद्ध की पूरी कहानी बदल थी. क्या है 5 रुपए के सिक्कों की भूमिक, जानने के लिए पढ़ें आगे...

हाइलाइट्स
टाइगर हिल की लड़ाई में 5 रुपए में बदली पूरी कहानीग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव से जुड़ी 5 रुपए के सिक्के की कहानी.5 रुपए के ये सिक्के ऑपरेशन विजय में लेकर आई बड़ा टर्न.Incredible Story of Kargil War: पाकिस्तानी सेना अब पूरी तरह से यह मान चुकी थी कि अब कश्मीर ही नहीं सियाचिन की गर्दन उसके हाथ में हैं. भारत कितने भी हाथ-पैर मार ले, लेकिन अब कश्मीर को उससे जुदा नहीं कर पाएगा. पाकिस्तानी सेना के इस गुरूर के पीछे वजह थी, द्रास सेक्टर से लेकर लेकर चोरबाटला तक उसकी मजबूत मौजूदगी. लेकिन उसे क्या पता था कि पांच रुपए के चंद सिक्कों की वजह से उसका यह गुरूर न केवल मिट्टी में मिल जाएगा, बल्कि जिस बाजी को वह जीता हुआ मान चुका है, वह बाजी देखते ही देखते उसके हाथों से फिसल जाएगी और उसे एक बार फिर मुंह की खानी पड़ेगी.
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दुश्मन पर हमले का मिला आदेश और सामने थी…
हमें नहीं पता था कि दुश्मन पहल से घात लगाए बैठा है और वह हमारे आगे बढ़ने का इंतजार कर रहा है. कैप्टन सचिन निंबालकर और उनकी टीम दुश्मन से कुछ फीट की दूरी पर थी, तभी पाकिस्तानी सेना ने उनके ऊपर फायर खोल दिया. कैप्टन सचिन और उनकी टीम वहीं पर पत्थर की ओट लेकर बैठ गई. उस वक्त स्थिति ऐसी थी कि हम ना ही उनको डायरेक्ट फायर सपोर्ट दे सकते थे और ना ही आर्टिलरी सपोर्ट मांग सकते थे. क्योंकि दुश्मन और हमारे बीच सेफ्टी डिस्टेंस बिल्कुल खत्म हो चुका था. किसी तरह उनको मैसेज दिया गया कि पत्थर को ओट लेकर जैसे हैं वैसे ही बैठे रहे, रात होने पर उनको निकाला जाएगा.
रात करीब 11-11:30 बजे के आसपास उस टीम को निकाल कर लाया. उसमें एक जवान को हाथ में गोली लगी थी, बाकी साथी सुरक्षित थे. टुकडी के वापस आते ही आदेश मिला कि अटैक होगा. रात भर चलने के बाद हमारे सामने कई सौ फीट ऊंची खड़ी चट्टान थी, जिस पर चढ़कर हमें दुश्मन तक पहुंचना था. एक-एक कर हमने चट्टान पर चढ़ना शुरू किया. पत्थर गिरने की आवाज से दुश्मन को हमारी लोकेशन का पता चल गया. जिसके बाद दो तरफ से हम पर जबरदस्त फायरिंग शुरू हो गई. फायरिंग शुरू होने से पहले मैं और मेरे छह अन्य साथी चट्टान पार कर पाए थे. इसके बाद, उन्होंने किसी को चट्टान पार नहीं करने दिया.
खत्म होने के कगार पर पहुंचा एम्यूनीशन तो…
अब तक हम टाइगर हिल के टॉप पर पहुंच गए थे. वह करीब 50 से 60 मीटर की जगह रही होगी. अब हमने भी दोनों बंकर पर फायर खोल दिया और वहां मौजूद पाकिस्तानी सेना के सभी जवानों को मार गिराया. हमारी गोलीबारी से दुश्मन को लगा कि भारतीय सेना वहां तक पहुंच गई है, जिसके बाद उन्होंने हम पर जबरदस्त गोलीबारी शुरू कर दी. हम आगे की तरफ भागे और उनके मोर्चों से उनकी डेडबॉडी निकाली और उनके ही हथियारों से उनके साथ लड़ने लगे. करीब पांच घंटे का समय बीत गया और हम लगातार दुश्मन से लडाई करते रहे. अब हमारे एम्युनिशन खत्म होने के कगार पर थे, लिहाजा हमने नई रणनीति तैयार की.
हमने गोली चलाना बंद कर दिया. करीब 15 से 20 मिनट के बाद सामने से पाकिस्तान के 10-12 जवान पत्थरों से बाहर निकलकर हमारी तरफ बढ़ने लगे. हमने फायर खोल दिया और एक-दो को छोड़कर सभी को मार गिराया. फिर हमने उनके वैपन और एम्युनीशन से उन्हीं पर फायरिंग शुरू कर दी. 30 मिनट तक हमें संभलने का मौका नहीं मिला. इसी बीच, 30 से 35 पाकिस्तानी जवानों ने हम पर दोबारा हमला कर दिया. इस हमले में उनके पास जितने भी वैपन थे, सभी से हमारे ऊपर एक साथ फायर खोल दिया. इसी बीच मेरी नजर जैसे ही ऊपर की तरफ गई, मैंने देखा कि जिस पत्थर से मैं फायर कर रहा था, उसी के ऊपर दुश्मन खड़ा है.
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दुश्मन ने लगातार दो ग्रेनेड से किया वार, फिर…
दुश्मन को जैसे ही मेरी आवाज़ सुनाई दी, उन्होंने सीधा मेरे ऊपर ग्रेनेड फेंक दिया. ग्रेनेड का जब एक टुकड़ा आकर के मेरे घुटने के नीचे लगा तो जैसे मैं खड़ा था वैसे ही खड़े-खड़े नीचे गिर गया. मुझे यह आभास हुआ कि घुटने से पैर कट गया है. लेकिन, जब मैंने ऐसे हाथ मारा तो लगा नहीं पैर तो है. मैं खुद फस्टेड करने लगा, तभी एक दूसरा ग्रेनेड का टुकड़ा आया और मेरी नाक से कान तक मेरा चेहरा काटता चला गया. इसके बाद मेरा पूरा चेहरा सून्य हो गया. मैं पहाड़ी से ऐसे पीठ लगा कर बैठा था, सामने बैठे साहब से मैंने फस्टेड के लिए कहा. जैसे ही उन्होंने हाथ बढ़ाया, एक गोली सीधे आकर उनके माथे पर लगी.
मेरे बगल में बैठा साथी कुछ बोल पाता, इससे पहले दूसरे गोली आई और उसके माथे को भेदती हुई चली गई. मैं कुछ बोल पता इससे पहले दुश्मन ने सामने से हमको घेर लिया. उनको लगा कि हम सब मारे गए हैं. उनके कमांडर ने बोला इनको रीचेक करो, इनमें से कोई जिंदा तो नहीं है. वो आकर के एक’एक को गोलियां मारने लगे. उन्होंने पहली गोली मेरे बाजू पर, दूसरी जांघ पर और तीसरे पैर पर मारी. मैं गोलियों के दर्द को सहता रहा. आखिर में उन्होंने मेरे सीने में गोली मारी. मेरे सीने में मेरा पर्स और पर्स में पांच रुपए के कुछ सिक्के पड़े हुए थे. सिक्कों की वजह से गोली शरीर के अंदर नहीं गई.
पांच रुपए के सिक्कों ने पटल दी बाजी
लेकिन, गोली के धक्के से आभास हुआ कि मैं मर गया हूं. मैं अचेत हो चुका था, मुझे लग रही रहा था कि मैं जिंदा हुआ. तभी पाकिस्तानी सेना के एक जवान का पैर मेरे पैरे से टकराया. मुझे एकदम से लगा कि मैं जिंदा हूं. तब एक दम से अंदर से आवाज आई कि अभी तक नहीं मरा तो मरेगा भी नहीं. मैने धीरे से अपना हैंड ग्रेनेड निकाला और पिन निकाल कर उसके ऊपर ऐसे फेंक दिया. हैंडग्रेनेड दुश्मन के कोट के अंदर हुड पर जाकर गिरा. वह कुछ समझ पाता इससे पहले हैंड ग्रेनेड फट गया. मौका मिलते ही मैंने किसी तरह राइफल उठाई और तीन चार पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया.
इसके बाद, एक नाले के सहारे मैं नीचे उतरा और अपने साथियों को ऊपर के वाकए के बारे में बताया. बस यही से टाइगर हिल की लड़ाई पूरी तरह से बदल गई. अब दुश्मन की लोकेशन के साथ उनके हथियार और हर ठिकाने की जानकारी भारतीय सेना के पास थी. भारतीय सेना ने एक निर्णायक हमला टाइगर हिल पर किया और 8 जुलाई की सुबह टाइगर हिल पर एक बार फिर तिरंगा फहरा दिया गया. इस लड़ाई में बहादुरी की अद्भुत मिसाल पेश करने वाले ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव को वीरता के लिए सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
Anoop Kumar MishraAssistant Editor
Anoop Kumar Mishra is associated with News18 Digital for the last 3 years and is working on the post of Assistant Editor. He writes on Health, aviation and Defence sector. He also covers development related to ...और पढ़ें
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