Last Updated:August 25, 2025, 17:38 IST
Opinion: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चीन दौरे से बहुत उम्मीदें हैं. इसे भारत-चीन के बीच संबंधों को सुधारने के लिए गंभीर प्रयास माना जा रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अमेरिकी टैरिफ वॉर की वजह से दोनों देश...और पढ़ें

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीन और भारत पर लगाए गए टैरिफ (आयात शुल्क) ने वैश्विक व्यापार में एक नया मोड़ ला दिया है. अमेरिका ने चीन के कई सामानों पर 125% से भी अधिक का टैरिफ लगाया है और भारत पर भी 50% तक के टैरिफ लगा दी है, जिसने भारत और चीन दोनों को प्रभावित किया है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चीन दौरा बेहद महत्वपूर्ण है. वैश्विक नेता की छवि बना चुके पीएम मोदी 31 अगस्त शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने चीन जा रहे हैं, जहां पर उनकी मुलाकात चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी होगी. कयास लगाए जा रहे हैं कि एक बार फिर से दोनों देशों के बीच बेहतर संबंध बहाल हो सकते हैं और अमेरिका को स्पष्ट मैसेज भी चला जाएगा कि दोनों एशियाई शक्तियां उसके टैरिफ वॉर के सामने झुकेंगी नहीं. हालांकि, भारत और चीन के रिश्ते हमेशा से उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं.एक तरफ जहां दोनों देश दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से हैं, वहीं दूसरी ओर उनके बीच सीमा विवाद और सैन्य तनाव बना रहता है. लेकिन जब-जब चीन से करीबी बढ़ी है, तब-तब दगाबाजी भी मिली है.
हालांकि, गलवान घाटी की हिंसक झड़प के बाद इसी महीने के आखिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा सिर्फ एक राजनयिक दौरा नहीं है, बल्कि यह एक ऐतिहासिक अवसर है, जो दोनों देशों के भविष्य की दिशा तय कर सकता है. हो सकता है कि भारत-चीन अपनी मैत्री को अगले लेवल तक ले जाएं और एकजुट होकर दुनिया को दिखा दें कि एशिया के दो दिग्गज एक साथ हैं. हो सकता है कि इस दौरे के बाद भारत अपनी शर्तों पर एक बार फिर से टिकटॉक, यूसी ब्राउजर जैसी तमाम चीनी ऐप्स को एंट्री भी दे दे. लेकिन क्या ये दोस्ताना वाकई में पाक-साफ होगा, क्योंकि चीन अक्सर दगाबाजी करने में आगे रहता है. इसके लिए अगर हम हम पिछले एक दशक के संबंधों को ही देखें तो बहुत कुछ साफ हो जाता है. प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में भारत-चीन के रिश्ते के बीच एक जटिल पैटर्न दिखता है. सितंबर 2014 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत का दौरा किया, जहां उनका गर्मजोशी से स्वागत हुआ. फिर मई 2015 में पीएम मोदी चीन गए, जहां व्यापारिक समझौते हुए. लेकिन संबंधों में उतार-चढ़ाव आने में देर नहीं लगी. साल 2017 में डोकलाम में लंबा सैन्य गतिरोध हुआ, जिसका भारतीय सैनिकों ने मुंहतोड़ जवाब दिया.
इसके बाद अप्रैल 2018 में वुहान और अक्टूबर 2019 में मामल्लपुरम में हुए अनौपचारिक शिखर सम्मेलनों ने संबंधों को पटरी पर लाने की कोशिश की. लेकिन चीन ने एक बार फिर से धोखेबाजी की. मई-जून 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प ने दोनों देशों के संबंधों को दशकों के सबसे निचले स्तर पर ला दिया. इसके जवाब में भारत ने चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाए और निवेश के नियमों को सख्त किया. ऐसे में 7 साल बाद पीएम मोदी का चीन दौरा दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने के साथ अमेरिकी टैरिफ का जवाब माना जा रहा है. पीएम मोदी का चीन दौरा मुख्य रूप से शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए हो रहा है, जहां पर वे राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अन्य नेताओं के साथ द्विपक्षीय बातचीत करेंगे. गलवान के बाद पहली बार भारत-चीन संबंधों को सुधारने के लिए इसे एक गंभीर प्रयास माना जा रहा है. पीएम मोदी की चीन यात्रा से पहले भारत और चीन ने अपने सीमा विवादों को सुलझाने के लिए एक विशेषज्ञ समूह (Expert Group) बनाने पर सहमति जताई है, जिसका मुख्य उद्देश्य सीमा के निर्धारण (Demarcation) पर जल्दी से जल्दी कोई समाधान खोजना है. साथ ही शिपकी ला और लिपुलेख जैसे बॉर्डर ट्रेड पॉइंट्स को फिर से खोलने से यह उम्मीद जगी है कि दोनों पक्ष बातचीत के लिए तैयार हैं.
क्या चीन ऐप्स की हो सकती है दोबारा एंट्री?
यह कहना जल्दबाजी होगी. जबसे गलवान की झड़प हुई, भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा और डेटा गोपनीयता का हवाला देते हुए सैकड़ों चीनी ऐप्स (जैसे टिकटॉक, यूसी ब्राउजर, पबजी) पर प्रतिबंध लगा दिया और चीनी निवेश के नियमों को भी सख्त कर दिया. हाल ही में सरकार ने इन बातों से इनकार भी किया है. इसके बावजूद 2023-24 में चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहा. यह बताता है कि राजनीतिक तनाव के बावजूद दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध गहरे हैं. इस यात्रा का एक बड़ा सवाल यह है कि क्या चीनी कंपनियों को भारत में वापसी का मौका मिलेगा. भारत एक बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार है और चीनी कंपनियों के लिए भारत में बने रहना बहुत जरूरी है. अगर दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधरते हैं, तो निवेश का प्रवाह फिर से बढ़ सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां चीन की टेक्नोलॉजी दुनिया में अग्रणी है. हालांकि, सरकार का रुख राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर बहुत सख्त है. जिन ऐप्स पर प्रतिबंध लगा है, वे डेटा और गोपनीयता के कारण थे और यह संभावना बहुत कम है कि सरकार सिर्फ एक दौरे के लिए इन प्रतिबंधों को हटा लेगी. दोनों देशों के बीच अभी भी “विश्वास की कमी” है और भारत सरकार शायद चीनी कंपनियों को संवेदनशील क्षेत्रों में आसानी से वापस आने की अनुमति न दे.
न्यूज़18 हिंदी (Network 18) डिजिटल में सीनियर एसोसिएट एडिटर के तौर कार्यरत. इंटरनेशनल, वेब स्टोरी, ऑफबीट, रिजनल सिनेमा के इंचार्ज. डेढ़ दशक से ज्यादा समय से मीडिया में सक्रिय. नेटवर्क 18 के अलावा टाइम्स ग्रुप, ...और पढ़ें
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First Published :
August 25, 2025, 17:38 IST