अटारी बॉर्डर से गुजरती है जो सड़क, कभी उसे क्यों कहा गया एनएच नंबर 1

4 hours ago

380 साल पहले शेरशाह सूरी ने एक सड़क बनवाई थी, जो काबुल से लेकर कलकत्ता तक जाती थी, तब कोलतार की सड़कें तो नहीं बनती थीं लेकिन ये सड़क पत्थरों के जरिए सपाट बनवाई गई थी. उस पर बजरी और मिट्टी बिछवाई गई. जिससे इस पर घोड़े से लेकर वाहन तेजी से दौड़ते थे. इस सड़क को अंग्रेजों ने नाम दिया ग्रैंड ट्रंक रोड . शेर शाह सूरी इस सड़क को शाही सड़क कहता था. इसे सड़क-ए-आज़म कहा जाता था. ये कुल मिलाकर 4000 किलोमीटर की सड़क थी. यही सड़क अब अटारी मार्ग है. कभी ये देश का नंबर वन नेशनल हाईवे नंबर वन था. आखिर भारत ने क्यों इसे सालोंसाल अपना नंबर एक हाईवे क्यों कहा. अटारी बॉर्डर बंद होने की घोषणा होते ही भारत की ये ऐतिहासिक सड़क चर्चा में आ गई है.

शेरशाह सूरी पूरा शासनकाल 1540 से 1545 तक का माना जाता है. लेकिन उसमें ये सड़क बनाकर तब से समय के लिहाज से एक ऐसा काम कर दिया था, जिसके बारे में सोचा ही नहीं जा सकता था. हालांकि इस सड़क बनवाने के सामरिक कारण थे. ताकि पूरे साम्राज्य में सैनिक और शाही दूत तेज़ी से भेजे जा सकें. दुश्मनों की हलचल पर नज़र रखने और सेना को जल्दी मूव करने के लिए.

फिर इनका दूसरा बड़ा काम व्यापार को तेज करना था. ताकि व्यापारी काफिले, बैलगाड़ियां, घोड़े, हाथी – सब आराम से एक सुरक्षित और व्यवस्थित रास्ते से आ – जा सकें. जल्दी अपना सफर तय कर सकें. हालांकि इससे वो आर्थिक गतिविधियां बढ़ावा चाहता था ताकि टैक्स में ज्यादा आमद हो और खजाना भरे.

तब 2500 मील की थी ये सड़क
अबुल फजल के अकबरनामा के मुताबिक, काबुल से तब बंगाल के सोनारगांव (अब बांग्लादेश में) तक जाने वाली ये सड़क 2500 मील की थी. इसके रूट पर काबुल, पेशावर, लाहौर, अमृतसर, दिल्ली, आगरा, इलाहाबाद, बनारस, मुंगेर और सोनारगांव. ये शाही सड़क ऐसी थी, जिसमें कुछ कुछ दूरी पर सराय, पानी, घोड़ा बांधने की जगह और मुसाफिरों के ठहरने का इंतज़ाम था.

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शेरशाह सूरी ने अपने कार्यकाल में काबुल से लेकर बंगाल तक 4000 किलोमीटर की सड़क बनवाई थी, जो उस समय के लिहाज से बहुत बड़ी बात थी, इसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था. (News18 AI)

अब बदल गई इस पूरी सड़क की सूरत
हालांकि तब से लेकर अब तक इस पूरी सड़क की शक्ल ही बदल चुकी है. अब ये पहले से कहीं बेहतर कोलतार की सड़क बन चुकी है. जब भारत आजाद हुआ, इस सड़क का कुछ हिस्सा पाकिस्तान में चला गया और बाकी हिस्सा भारत में आ गया. तो अब ये अटारी से शुरू होकर कोलकाता तक जाती है.

तब इसे एनएच-1 कहा गया
आज़ादी के बाद भारत सरकार ने देशभर की प्रमुख और लंबी सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्ग ( Highways) की श्रेणी में डालने का फैसला किया, उस दौरान जो सबसे बड़ी, प्रमुख और ऐतिहासिक सड़क थी – वो यही सड़क थी, जो अटारी से अमृतसर, दिल्ली होते हुए कोलकाता तक पहुंचती थी. चूंकि यही सड़क हमारा सबसे बड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग था. ये ऐतिहासिक और नामी सड़क भी थी, लिहाजा इसे नेशनल हाईवे1 (NH-1) का दर्जा दिया गया.

तब भारत में इससे अहम सड़क कोई नहीं थी. जो भारत के कई राज्यों से ही होते हुए नहीं गुजरती थी बल्कि पाकिस्तान से भी जोड़ती थी, इसलिए इसकी सामरिक से व्यापार के मामले में सबसे ज्यादा अहमियत थी.

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अटारी से भारत की ओर आने वाली सड़क जो आजादी के बाद अमृतसर दिल्ली होते हुए कोलकाता तक जाती थी. इसे नेशनल हाईवे नंबर 1 कहा जाता था. (News18 AI)

अब ये नेशनल हाईवे नंबर वन नहीं
अब ये हमारा एनएच-1 नहीं है. इस समय भारत का एनएच – 1 वह राजमार्ग है जो जम्मू और कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों को जोड़ता है. यह पुराने एनएच1ए और एनएच1डी के हिस्सों से बना है. अब एनएच-1 उरी से शुरू होकर बारामूला, श्रीनगर, सोनमर्ग, ज़ोजी ला, द्रास, कारगिल और लेह से होकर गुजरता है. इसे यह लद्दाख क्षेत्र की जीवन रेखा कहा जाता है.

कब राष्ट्रीय राजमार्गों ने नाम बदले
2010 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्गों की नंबरिंग प्रणाली को दोबारा व्यवस्थित किया, नई स्कीम के तहत NH-1 का नाम बदलकर NH-44 (जो श्रीनगर से कन्या कुमारी तक जाता है) कर दिया. अब पुराना NH-1 अम्बाला से अमृतसर तक NH-44 और NH-3 में समाहित हो गया है. हालांकि लोकल बोलचाल और पुराने दस्तावेज़ों में लोग अब भी इसे अटारी राजमार्ग या NH-1 ही कहते हैं.

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380 साल पहले शेरशाह सूरी की काबुल से बंगाल तक बनवाई गई ऐतिहासिक सड़क को बनवाने में हजारों मजदूरों ने काम किया. (News18 AI)

इस पर अरबों रुपए खर्च हुए होंगे
माना जाता है कि इस अटारी राजमार्ग को सुधारने, चौड़ा करने और नए रास्ते बनवाने का काम शेरशाह सूरी ने लगातार करवाया. उसने अपने 5 साल के शासन में पूरी सड़क को तैयार और व्यवस्थित किया गया. हजारों हज़ारों मज़दूर, कारीगर, पत्थर काटने वाले, ईंट बनाने वाले और सराय बनाने वाले लोग इसमें जुटे थे. अनुमानित तौर पर इस पूरी सड़क को बनाने में 15,000-20,000 मज़दूर लगे होंगे.

अबुल फजल ने लिखा है कि शेरशाह सूरी ने इस सड़क पर “सूबों की आमदनी का बड़ा हिस्सा” खर्च किया. अगर आज के हिसाब से देखें तो इस सड़क को बनवाने में कई अरब रुपये खर्च हुआ होगा.

अब अटारी बॉर्डर से गुजरने वाली ये सड़क भारत के सबसे व्यस्त और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राजमार्गों में है. सड़क की गुणवत्ता अधिकांश हिस्सों में अच्छी है, लेकिन कुछ स्थानों पर ट्रैफिक जाम और मरम्मत के काम चलते रहते हैं.​ अटारी सड़क पर दैनिक ट्रैफिक वॉल्यूम बहुत अधिक है.

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