कारगिल जंग से मिली सीख ने 20 साल बाद दिखाया था कमाल, ड्रैगन को ले आए घुटने पर

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Last Updated:June 30, 2025, 13:04 IST

KARGIL STORIES: 26 साल पहले भारतीय सेना ने शुरु किया था कार्गिल की चोटियों से पाकिस्तानी सेना को खदेड़ने का ऑपरेशन “विजय”. साल 1999 में पाकिस्तान ने अपनी फ़ितरत दिखाते हुए कार्गिल की चोटियों पर अपने सैनिकों को...और पढ़ें

कारगिल जंग से मिली सीख ने 20 साल बाद दिखाया था कमाल, ड्रैगन को ले आए घुटने पर

समय पर रणनीति के बदलाव ने असर भी दिखाया

हाइलाइट्स

कारगिल युद्ध के बाद हाई एल्टीट्यूड वॉरफेयर स्कूल की स्थापना हुई.भारतीय सेना ने 2020 में चीन को हाई एल्टीट्यूड में लड़ाई में मात दी.भारतीय सेना के पास अब तीन हाई एल्टीट्यूड ट्रेनिंग स्कूल हैं.

KARGIL STORIES: कारगिल युद्ध के बाद साल 2000 में सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया जिसने हाई एल्टीट्यूड एरिया में जंग लड़ने और जीतने के लिए सेना को तैयार कर दिया. यह फैसला था हाई एल्टीट्यूड वॉरफेयर स्कूल. इस स्कूल का नाम दिया गया कारगिल बैटल स्कूल. ऐसा नहीं है कि सेना के पास हाई एल्टीट्यूड वॉरफेयर स्कूल नहीं थे, लेकिन जितने थे वो कारगिल जैसी किसी स्थिति के लिए पर्याप्त नहीं थे. भविष्य में कभी ऐसी कोई स्थिति फिर आ सकती है तो उसके लिए ट्रेनिंग की जरूरत थी. भारतीय सेना एलओसी और एलएसी के करीब ऊंची चोटियों पर तैनात है. समय के साथ तकनीक में भी बदलाव आया और लड़ने के तरीके में भी. भारतीय सेना अपने जवानों को हाई एल्टीट्यूड एरिया में तैनाती से पहले खास तौर पर ट्रेनिंग देती है. इसमें फिजिकल फिटनेस, रॉक क्राफ्ट,आईस क्राफ्ट, माउंटेन वॉर्फेयर, फ्री क्लाइंबिंग, 90 डिग्री क्लाइंबिंग, रैपेलिंग, ऑसॉल्ट टीम क्लाइंबिंग, दुशमन के बंकर पर अटैक ट्रेनिंग का हिस्सा है. किसी बटालियन की तैनाती से पहले कुछ सैनिकों को ट्रेनिंग दी जाती है. इसे ट्रेनिंग ऑफ ट्रेनर कहा जाता है. ट्रेनर की ट्रेनिंग पूरी होने के बाद यही ट्रेनर बाकी पूरी यूनिट को ट्रेनिंग देते हैं.

ट्रेनिंग के लिए नया स्कूल
कारगिल की जंग से पहले भी सैनिकों की तैनाती से पहले ट्रेनिंग दी जाती रही है. कारगिल जंग के बाद बैटल स्कूल की स्थापना भी द्रास की गई, जहां कारगिल की सबसे भीषण जंग लड़ी गई थी. यह फॉर्मेशन लेवल ट्रेनिंग स्कूल है. इससे पहले हॉज यानी हाई एल्टीट्यूड वॉरफेयर स्कूल ही हुआ करता था. यह स्कूल आर्मी ट्रेनिंग कोर के तहत आता है, जहां ऊंची पहाड़ियों में दिन-रात हर मौसम में लड़ने की कला सिखाई जाती है. सर्दियों में भारी बर्फबारी के दौरान हॉज के गुलमर्ग में ट्रेनिंग दी जाती है, तो गर्मियों में पहाड़ों पर लड़ने की ट्रेनिंग सोनमर्ग के पास होती है. अब भारतीय सेना के पास ऐसे दो स्कूल हो गए हैं जहां सैनिकों को विषम परिस्थितियों में लड़ना और अपनी जमीन की रक्षा करने के लिए मजबूत किया जा रहा है. हालांकि सियाचिन में तैनाती से पहले ग्लेशियर पर भी जवानों को ट्रेनिंग दी जाती रही है. सियाचिन बैटल स्कूल में तीन हफ्ते की कठोर ट्रेनिंग के बाद सैनिकों को ग्लेशियर में भेजा जाता है. फिलहाल भारतीय सेना के पास 3 ऐसे स्कूल हैं – HAWS, कारगिल बैटल स्कूल और सियाचिन बैटल स्कूल, जहां कम ऑक्सीजन, माइनस तापमान में ऊंची पहाड़ियों पर चढ़ना और लड़ना सिखाया जाता है.

चीन को डाला बैकफुट में
समय पर रणनीति के बदलाव ने असर भी दिखाया. साल 2020 में पाकिस्तान के ऑल वेदर फ्रेंड चीन ने भी अमूमन कारगिल जैसी हिमाकत करने की कोशिश की, लेकिन इस बार भारत पहले से तैयार था. हाई एल्टीट्यूड में लड़ने के लिए सेना के पास पर्याप्त समय और तैयारी थी. भारत ने अपनी सैन्य ताकत को बड़ी तेजी से बढ़ाया और इसका नतीजा यह हुआ कि चीन जैसे ताकतवर देश को भी घुटने टेकने पड़े. पैंगोंग के दक्षिण छोर पर भारतीय सेना ने 29-30 अगस्त की रात को ऑफेंसिव एक्ट करते हुए कई चोटियों पर कब्जा कर लिया था, उसी दिन से चीन बैकफुट पर आ गया था. पिछले पांच साल से 50,000 से ज्यादा सैनिक माइनस तापमान की विषम परिस्थितियों में डटे हुए हैं. फील्ड एरिया के दो साल की पोस्टिंग के बाद एक बटालियन आती है और एक जाती है. आने से पहले हाई एल्टीट्यूड में तैनाती के गुर इन्हीं बैटल स्कूल से ही सीख कर आते है.

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