Last Updated:March 28, 2025, 13:25 IST
Rana Sanga Daughter -In-Law : मीराबाई राणा सांगा की बहू थीं. उनकी कृष्ण भक्ति के कारण राजपरिवार में तनाव हो गया. जहर देने की कोशिश हुई. पति के अलावा और किसी को उनका कृष्ण भक्ति में डूबे रहना पसंद नहीं था.

हाइलाइट्स
मीरा बाई राणा सांगा की बहू थीं उनके बड़े बेटे की पत्नी कृष्ण भक्ति के कारण राजपरिवार में तनाव हुआ.राजमहल छोड़ना पड़ा, मीरा बाई ने वृंदावन और द्वारका में जीवन बिताया.राणा सांगा (महाराणा संग्राम सिंह) मेवाड़ के एक महान योद्धा और कुशल प्रशासक थे. वह अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध थे. इन दिनों राणा सांगा देश के सियासी जगत की बयानबाजी में चर्चा में हैं. मीरा बाई उनकी बहू थीं. उन्होंने उनकी शादी अपने बेटे से कराई थी लेकिन बाद में मीरा बाई को लेकर उनके परिवार में तनाव भी रहा.
राणा सांगा के बड़े बेटे का नाम भोजराज था. जिसका विवाह भक्त कवयित्री मीराबाई से हुआ था, जो आगे चलकर भारतीय इतिहास और भक्ति आंदोलन की प्रमुख शख्सियतों में एक बनीं.
कितने बेटे थे राणा सांगा के
राणा सांगा के कई बेटे थे. बड़े बेटे भोजराज थे, उसके बाद नंबर दो रतन सिंह द्वितीय थे. इसके बाद विक्रमादित्य सिंह और उदय सिंह द्वितीय. भोजराज की मृत्यु के बाद रतन सिंह द्वितीय मेवाड़ के शासक बने. फिर विक्रमादित्य सिंह गद्दी पर बैठे लेकिन प्रशासन में असफल रहे. बाद में काफी संघर्ष के बाद उदय सिंह द्वितीय चित्तौड़ के शासक बने. वह महाराणा प्रताप के पिता भी थे.
कैसे राणा सांगा के वंश में हुई मीराबाई की शादी
मीराबाई राजपूत घराने में जन्मी एक उच्च कुल की कन्या थीं. उनका जन्म 1498 में कुड़की, मारवाड़ (राजस्थान) में हुआ था. वह राठौड़ वंश के राव दूदा की पोती और रतन सिंह की पुत्री थीं. बचपन से ही वे कृष्ण भक्ति में लीन थीं. उन्हें भगवान कृष्ण से बहुत प्रेम था.
मीराबाई (image generated by Leonardo AI)
राणा सांगा शक्तिशाली शासक होने के साथ-साथ धार्मिक प्रवृत्ति के भी थे. मीराबाई के पिता रतन सिंह और राणा सांगा के बीच अच्छे संबंध थे. उन्होंने ही मीरा बाई को अपने बड़े बेटे के लिए पसंद किया. यह विवाह राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह मेवाड़ और मारवाड़ के बीच एकता को मजबूत कर सकता था. इसी वजह से राणा सांगा ने बड़े बेटे भोजराज का विवाह मीराबाई से करने का फैसला किया.
मीरा बाई से जो अपेक्षा थी वो पूरी नहीं हुई
विवाह के दौरान यह अपेक्षा थी कि मीराबाई पारंपरिक राजपूत स्त्री की भूमिका निभाएंगी लेकिन वह कृष्ण भक्ति में ही समर्पित रहीं. इसे लेकर परिवार में तनाव की स्थिति भी बनने लगी.
पति ने मीरा बाई को कभी भक्ति से नहीं रोका
भोजराज एक संवेदनशील और शिक्षित राजकुमार थे. वह पत्नी मीराबाई के धार्मिक विचारों और भक्ति के प्रति सहानुभूति रखते थे. उन्होंने कभी मीराबाई को उनकी भक्ति से रोका नहीं, बल्कि उनका समर्थन किया लेकिन शादी के कुछ साल बाद ही भोजराज की मृत्यु हो गई, जिससे मीराबाई को गहरा आघात पहुंचा.
मीराबाई (image generated by Leonardo AI)
फिर बढ़ने लगा ससुराल का दबाव
भोजराज की मृत्यु के बाद मीराबाई को उनके ससुराल में अस्वीकार्यता और प्रताड़ना का सामना करना पड़ा. राणा सांगा के उत्तराधिकारी उनके धार्मिक रुझान को नहीं समझ सके.
राणा सांगा के देहांत (1528) के बाद उनके उत्तराधिकारी रतन सिंह ने सत्ता संभाली. मीराबाई की कृष्ण भक्ति और संन्यास प्रवृत्ति को शाही परिवार ने अस्वीकार किया. रतन सिंह द्वितीय ने मीराबाई की भक्ति को अनुचित माना. उन पर पारंपरिक राजपूत विधवा की भूमिका निभाने का दबाव बनाया.
जहर देने की कोशिश
रतन सिंह के देहांत के बाद विक्रमादित्य सिंह का शासन (1531-1536) आया. वह मीराबाई की भक्ति से इतने असहज थे कि कहते हैं कि उन्होंने उन्हें विष देने का भी प्रयास किया. किंवदंती है कि विषपान करने के बावजूद मीराबाई को कुछ नहीं हुआ, जिससे लोग इसे चमत्कार मानने लगे.
फिर मीराबाई वृंदावन चली गईं
विक्रमादित्य सिंह जब अयोग्य शासक साबित हुआ तो शासन में अस्थिरता के कारण उसे 1536 में पदच्युत कर दिया गया. तो सत्ता से जुड़े बनवीर ने सत्ता हथिया ली, तब उदय सिंह ने संघर्ष के बाद सत्ता हासिल की. उदय सिंह को बचाने के प्रयासों के दौरान मीराबाई ने स्वयं को मेवाड़ से दूर कर लिया. वह वृंदावन तथा द्वारका चली गईं. भक्ति मार्ग में कई संघर्षों के बावजूद मीराबाई ने अपने विश्वास से कभी समझौता नहीं किया.
मीराबाई ने चित्तौड़ छोड़ दिया. भक्ति मार्ग को पूरी तरह अपनाते हुए वृंदावन और द्वारका में अपना बाकी जीवन बिताया. वहां उन्होंने कृष्ण भक्ति में रहते हुए कई भजन लिखे, जो आज भी भक्तिपूर्ण संगीत का महत्वपूर्ण हिस्सा है.
Location :
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
First Published :
March 28, 2025, 13:24 IST