कौन थे अमीर खुसरो हमारी हिंदी के जन्मदाता, लिखी थी पहली कविता

1 month ago

Last Updated:February 28, 2025, 13:24 IST

Amir Khusro: अमीर खुसरो को हिंदी खड़ी बोली का जन्मदाता माना जाता है. उन्होंने सूफी कव्वालियों और कविताओं में हिंदी का प्रयोग किया. 28 फरवरी को 'जहान-ए-खुसरो' महोत्सव में उनकी विरासत का जश्न मनाया जाएगा. जिसका उ...और पढ़ें

कौन थे अमीर खुसरो हमारी हिंदी के जन्मदाता, लिखी थी पहली कविता

अमीर खुसरो पहले मुस्लिम कवि थे जिन्होंने हिन्दी शब्दों का खुलकर इस्तेमाल किया था.

हाइलाइट्स

अमीर खुसरो को हिंदी खड़ी बोली का जन्मदाता माना जाता है'जहान-ए-खुसरो' महोत्सव 28 फरवरी को आयोजित होगाप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे जहान ए खुसरो महोत्सव का उद्घाटन

Amir Khusro: सूफी गीत-संगीत कभी किसी एक धर्म के दायरे में बंधे नहीं रहे. बल्कि हर धर्म ने उन्हें बराबरी से अपनाया. भारतीय उपमहाद्वीप में शायद ही कोआ ऐसा शख्स होगा, जिसने अमीर खुसरो का नाम ना सुना हो. गुजरे वक्त में गद्दी पर बैठने वाले बादशाह भले ही बदल गए हों, लेकिन इन सूफी-संतों की विरासत ज्यों की त्यों ना सिर्फ बरकरार रही बल्कि उनकी लोकप्रियता वक्त के साथ बढ़ती चली गई. कवि, शायर, गायक और संगीतकार अमीर खुसरो को भी उनके सूफी कलामों के लिए याद किया जाता है. उन्होंने कई बेहतरीन कव्वालियां लिखी थीं, जो आज भी गायी जाती हैं. शायद ही किसी ने इस आपसी मेलजोल और ईश्वर तक पहुंचने की इस खूबसूरत विधा को खत्म करने की कोशिश की हो.

ये भी पढ़ें- पाताल लोक धरती से कितना नीचे है? क्या सच में लोग गंदा काम करने पर यहां पहुंच जाते हैं

खुसरो की विरासत का जश्न
उन्हीं अमीर खुसरो की विरासत का जश्न मनाने के लिए आज यानी 28 फरवरी को सुंदर नर्सरी में भव्य सूफी संगीत समारोह, ‘जहान ए खुसरो’ का आयोजन किया जाएगा. इस बार संगीत समारोह की रजत जयंती है, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. पीएम मोदी देश की कला और संस्कृति की विविधता को बढ़ावा देने के प्रबल समर्थक रहे हैं. यह पहला मौका है, जब पीएम मोदी इस कार्यक्रम में शामिल होंगे. ‘जहान-ए-खुसरो’ सूफी संगीत, कविता और नृत्य को समर्पित एक अंतरराष्ट्रीय महोत्सव है. यह महोत्‍सव अमीर खुसरो की विरासत का जश्न मनाने के लिए दुनिया भर के कलाकारों को एक साथ लाता है. इसका आयोजन रूमी फाउंडेशन द्वारा किया जाता है.

ये भी पढ़ें- वो मुस्लिम देश जो गरीबों को देता है फ्री जमीन और घर, एरिया में सिक्किम से भी छोटा, अमीरी में बहुत ऊपर 

“छाप तिलक सब छीनी रे”
“छाप तिलक सब छीनी रे, मोसे नैना मिलाइके”. इस कव्वाली को अमीर खुसरो का सबसे मशहूर कलाम माना जाता है. खास बात यह है कि ये कव्वाली ब्रजभाषा में लिखी गई है. इसका मतलब है कि ईश्वर ने मुझसे मेरी जन्मजात पहचान (छाप) और मेरे द्वारा हासिल की गईं उपलब्धियों (तिलक) को अलग कर दिया. इसका मतलब यह भी है कि अब मैं किसी धर्म या जाति का नहीं हूं और ना ही कोई मेरा कोई सांसारिक ओहदा है. इस कव्वाली के जरिये अमीर खुसरो ने अपने गुरु निजामुद्दीन औलिया के प्रति अपना समर्पण व्यक्त किया है. इसके जरिये उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी औलिया के दर पर गुजारने की ख्वाहिश जाहिर की है.  

ये भी पढ़ें- क्या है ग्रे डिवोर्स? शादी के दशकों बाद जोड़ों के अलग होने का क्यों बढ़ रहा चलन, जानें वजह

हजरत निजामउद्दीन औलिया की दरगाह यहां अमीर खुसरो की मजार है.

ये भी पढ़ें- Passport Facts: भारतीय पासपोर्ट के 4 रंग और उनकी खासियतें, जानें सबसे ताकतवर कौन सा

खड़ी बोली के जन्मदाता
अमीर खुसरो को हिन्दी खड़ी बोली का जन्मदाता माना जाता है. वे पहले मुस्लिम कवि थे जिन्होंने हिन्दी शब्दों का खुलकर इस्तेमाल किया था. उन्हें ‘हिन्द का तोता’ कहा जाता है. उन्होंने हिन्दी, हिन्दवी, और फ़ारसी में एक साथ लेखन किया. उन्होंने खड़ी बोली में कविताएं लिखीं, जैसे- ‘जब यार देखा नयन भर, दिल की गई चिंता उतर.’ उन्होंने हिन्दी में कई मुकरियां लिखीं, जैसे- ‘अनार क्यों न चखा, बजीर क्यों न रखा.’ उन्होंने पहेलियां भी रचीं, जैसे- ‘घूमेला लहंगा पहिने एक पांव से रहे खड़ी, आठ हाथ हैं उस नारी के सूरत उसकी लगे परी.’ उन्होंने फ़ारसी-हिन्दी कोश खालिकबारी भी लिखा. माना जाता है कि हिंदी (खड़ी बोली) की पहली कविता अमीर खुसरो ने लिखी थी. हिंदी के अधिकतम शब्द संस्कृत, अरबी और फारसी भाषा से लिए गए हैं. हिंदी में अवधी, ब्रज आदि स्थानीय भाषाओं का भी मिश्रण है. इस सबका श्रेय अमीर खुसरो को जाता है. 

ये भी पढ़ें- वो कानून जिसकी वजह से संकट में है जापानी शाही परिवार का वजूद, क्यों राजकुमारियों को नहीं मिलता सिंहासन?

13वीं सदी में पटियाली में हुआ था जन्म
उनका पूरा नाम अबुल हसन यामुनुद्दीन अमीर खुसरो था. उनका जन्म 27 दिसंबर 1253 में उत्तर प्रदेश के एटा जिले के पटियाली गांव में हुआ था. उनका परिवार कई पीढ़ियों से राजदरबार से जुड़ा हुआ था. वे सात सुल्तानों के शासनकाल में रहे. पटियाली में उनके नाम पर स्कूल, लाइब्रेरी और एक पार्क है और उनकी मजार दिल्ली में है. कुछ साल पहले पटियाली कस्बे के लोग उकी मूर्ति लगवाना चाहते थे, लेकिन सियासत के चलते विवाद खड़ा हो गया. वो मूर्ति पार्क या लाइब्रेरी कहीं नहीं लग पायी. करीब दो दशक पहले पटियाली में खुसरो महोत्सव भी शुरू हुआ था लेकिन फिर बाद में बंद हो गया. अमीर खुसरो के जन्म स्थान को लेकर स्थानीय लोग बताते हैं, “ इतिहास के दस्तावेज बताते हैं कि जिस किले या हवेली में खुसरो का जन्म हुआ था. ये राजा द्रुपद का किला हुआ करता था.” उनका 1325 में निधन हुआ था.

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

February 28, 2025, 13:24 IST

homeknowledge

कौन थे अमीर खुसरो हमारी हिंदी के जन्मदाता, लिखी थी पहली कविता

Read Full Article at Source