Kerala Chief Secretary Sharada Muralidharan: केरल की मुख्य सचिव शारदा मुरलीधरन ने समाज में स्किन कलर को लेकर भेदभाव पर सामाजिक बहस छेड़ दी है. एक भावपूर्ण और मार्मिक फेसबुक पोस्ट में शारदा मुरलीधरन ने ऑफिस हो या घर महिलाओं के प्रति त्वचा के रंग के आधार पर होने वाले पक्षपात की बात की है. शारदा मुरलीधरन ने कहा कि वह काले रंग की महिलाओं के खिलाफ व्याप्त पूर्वाग्रह की शिकार हैं. उन्होंने कहा कि प्रशासन के शीर्ष पर होने के बावजूद वह इससे बच नहीं सकी हैं. उन्होंने अपने करियर के दौरान पूर्वाग्रह के अपने अनुभव साझा किए और काले रंग से जुड़ी रूढ़ियों को चुनौती देने की आवश्यकता पर जोर दिया. उनकी टिप्पणी से नस्लीय और लैंगिक पूर्वाग्रह के बारे में चर्चा शुरू हो गई और कई लोगों का समर्थन हासिल हुआ.
कौन हैं शारदा मुरलीधरन?
मुरलीधरन 1990 बैच की आईएएस अधिकारी हैं, जिन्होंने सितंबर 2024 में अपने पति डॉ. वी. वेणु के स्थान पर केरल के मुख्य सचिव का पद संभाला था. हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने 2006 से 2012 तक केरल सरकार के तहत कुदुम्बश्री मिशन का नेतृत्व किया. इस पहल का उद्देश्य महिलाओं को सशक्त बनाना, गरीबी को कम करना और मानवाधिकार दृष्टिकोण को बढ़ावा देना था. इसके बाद, उन्होंने दिसंबर 2013 तक ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में मुख्य परिचालन अधिकारी के रूप में काम किया.
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2014 से 2016 के बीच, उन्होंने पंचायती राज मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में काम किया, जहां वह ग्राम पंचायत विकास योजनाओं (जीपीडीपी) को डिजाइन करने और बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार थीं, जिसमें ग्राम सभा के माध्यम से नागरिक भागीदारी को प्राथमिकता दी गई थी. इससे पहले उन्होंने त्रिवेंद्रम के जिला कलेक्टर सहित कई प्रमुख पदों पर भी कार्य किया है. वह अनुसूचित जाति विकास, ग्रामीण विकास आयुक्तालय और कॉलेजिएट शिक्षा निदेशालय जैसे विभागों में भी रहीं.
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कहां से शुरू हुई बहस
फर्स्टपोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने खुलासा किया कि अपने पति वी. वेणु से केरल के मुख्य सचिव का पदभार संभालने के बाद, उनकी तुलना उनके पति से इस तरह की गई थी, जिसमें नस्लीय भावना भी थी. जिसमें किसी ने कहा था, “यह उतनी ही काली हैं, जितना इनके पति गोरे थे.” शुरू में मिली प्रतिक्रियाओं की बाढ़ के बाद उन्होंने पोस्ट को हटा दिया था. हालांकि, बाद में उन्होंने इसे फिर से साझा करने का फैसला किया, क्योंकि उन्हें लगा कि इस मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि पद संभालने के बाद से ही उन्हें अपने पति से लगातार तुलना का सामना करना पड़ रहा है और वे इसकी आदी हो चुकी हैं. उन्होंने लिखा, “यह काले रंग का लेबल लगाए जाने के बारे में था, जैसे कि यह कोई बेहद शर्मनाक बात हो.” उन्होंने काले रंग से जुड़ी नकारात्मक धारणाओं पर सवाल उठाते हुए तर्क दिया कि यह रंग शक्ति और समावेशिता का प्रतीक है.
शारदा मुरलीधरन अपने पति डॉ. वी. वेणु के साथ.
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निजी अनुभव किया साझा
शारदा मुरलीधरन ने रंगभेद के साथ अपने निजी अनुभवों पर भी बात की. उन्होंने बचपन की एक याद को ताजा किया जब चार साल की उम्र में उन्होंने अपनी मां से पूछा था कि क्या वह गोरी त्वचा के साथ ‘दोबारा जन्म’ ले सकती हैं. उन्होंने स्वीकार किया कि पांच दशक से अधिक समय से उनके मन में यह विश्वास घर कर गया था कि गोरापन ही सुंदरता और अच्छाई है. उन्होंने बताया, “मैं उस कहानी के नीचे दबी रही, उसमें विश्वास करती रही, मानती रही कि मैं कमतर थी. मुझे किसी तरह से भरपाई करनी थी. यह उनके बच्चे ही थे, जिन्होंने अपने काले रंग को पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनाया और उन्हें इन धारणाओं को भूलने में मदद की.”
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अपने सांवलेपन को किया स्वीकार
उन्होंने कहा, “काला रंग सुंदर है. काला रंग खूबसूरती है. मुझे काला रंग पसंद है.” उन्होंने सांवली त्वचा वाली महिलाओं के सामने आने वाली अतिरिक्त चुनौतियों की ओर भी इशारा किया. उन्होंने कहा, “जब कोई महिला अपनी राय व्यक्त करती है, तो उसके लिए अपने विचारों को व्यक्त करना भी एक चुनौती होती है. अगर उसकी त्वचा भी सांवली है, तो ऐसा लगता है जैसे वह गुम हो गई है.” उनके शब्दों ने व्यापक रूप से प्रभाव डाला, जिससे काली त्वचा के प्रति सामाजिक पूर्वाग्रहों पर चर्चा शुरू हो गई और उनकी ईमानदारी के लिए प्रशंसा भी की गई. अब हटा दी गई पोस्ट में उन्होंने लिखा था, “मुझे अपने कालेपन को स्वीकार करना होगा.”
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उनकी ईमानदारी को सराहा गया
न्यूज एजेंसी से प्राप्त जानकारी के मुताबिक केरल के विपक्ष के नेता वीडी सतीशन ने मुरलीधरन को उनकी ईमानदारी के लिए सलाम किया और कहा कि उन्होंने केरल के समाज में स्किन के कलर को लेकर भेदभाव की वास्तविकता को उजागर किया है. उन्होंने फेसबुक पर मलयालम में लिखा, “प्रिय शारदा मुरलीधरन, आपको सलाम. आपने जो भी लिखा है, वह दिल को छू लेने वाला है. इस पर चर्चा होनी चाहिए। मेरी मां का रंग काला था.” उनकी पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए सीपीआई (एम) सांसद के. राधाकृष्णन ने जागरूकता बढ़ाने और भेदभाव से सक्रिय रूप से लड़ने की बात लिखी. केरल राज्य युवा आयोग की अध्यक्ष और सीपीआई (एम) राज्य समिति की सदस्य चिंता जेरोम ने कहा कि मुरलीधरन ने समाज में व्याप्त ऐसे भेदभाव की ओर ध्यान दिलाया है, जो अक्सर अनदेखा रह जाता है.
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यह एक ऐतिहासिक बोझ है
इतिहासकार, सामाजिक आलोचक और विकास अध्ययन केंद्र की प्रोफेसर जे. देविका ने कहा कि काले लोगों के खिलाफ भेदभाव की जड़ देश के औपनिवेशिक अतीत द्वारा समाज को दिया गया एक ऐतिहासिक बोझ है. उन्होंने कहा कि ‘तथाकथित प्रगतिशील केरल’ अभी भी रंगभेद से बंधा हुआ है, जैसा कि वैवाहिक विज्ञापनों में साफ है, जिसमें गोरी चमड़ी वाले व्यक्तियों को अधिक महत्व दिया जाता है. देविका ने शारदा मुरलीधरन की स्पष्टवादिता को लेकर तारीफ की. उन्होंने कहा, ” स्किन का कलर नहीं, बल्कि मुरलीधरन का बतौर ब्यूरोक्रेट शानदार करियर, जिसमें शहरी गरीबी उन्मूलन परियोजना, कुदुम्बश्री शामिल है, जिसे उन्होंने शून्य से शुरू किया, उनकी पहचान है.”