पटना. भारत निर्वाचन आयोग ने बिहार में दो चरणों में विधानसभा चुनाव कराने की घोषणा की है. पहला चरण 6 नवंबर और दूसरा चरण 11 नवंबर को होगा. वोटों की गिनती 14 नवंबर को होगी और 16 नवंबर तक चुनाव की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी. वोटिंग के लिहाज से वोटिंग के लिहाज से बिहार को दो क्षेत्र में बांटा गया है. पहले चरण मं 121 और दूसरे चरण में 122 सीटों पर वोटिंग होगी. अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि चुनाव की तारीखों को देखते हुए किस पक्ष को अधिक फायदा हो सकता है.
बता दें कि चुनाव आयोग की घोषणा के अनुसार, पहले चरण में गोपालगंज, सीवान, सारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सहरसा, मधेपुरा, मुंगेर, लखीसराय, शेखपुरा, नालंदा, पटना, वैशाली, समस्तीपुर, बेगूसराय और भोजपुर जिलों की 121 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. वहीं, दूसरे चरण में पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर, बांका, जमुई, नवादा, गया, जहानाबाद, अरवल, औरंगाबाद, रोहतास और कैमूर जिलों में मत डाले जाएंगे. इन आंकड़ों को कई जानकार अपने नजरिये से देख रहे हैं.
प्रवासी मतदाताओं के मतदान करना चुनौती!
कई जानकार कहते हैं कि चुनाव छठ पर्व के करीब यानी 28 अक्तूबर के दो से तीन दिन के भीतर करवाए जाते तो बेहतर होता क्योंकि प्रवासी बिहारियों को मत देने का मौका मिलता. लेकिन, चुनाव आयोग ने अब जब छठ के एक हफ्ते बाद चुनाव करवाने की घोषणा की है इससे बिहार के बाहर अन्य प्रदेशों में रहने वाले या काम पर जाने वाले लोगों के लिए रुक कर वोट डालने में मुश्किल हो सकती है. ऐसा इसलिए कि लोगों की अपने काम धंधे होते हैं, बच्चों के स्कूल और परीक्षाएं और वयस्कों की नौकरियां होती हैं, ऐसे में जो प्रवासी आएंगे वह बिना मतदान में हिस्सा लिए ही वापस लौटने को आतुर रहेंगे.
पार्टियों की चुनावी रणनीति पर असर
अब सवाल उठता है कि आखिर चुनाव की प्रक्रिया महागठबंधन को फायदा पहुंचाएगा या फिर एनडीए पक्ष को? छठ पूजा बिहार का प्रमुख त्योहार है जहां लाखों प्रवासी घर लौटते हैं. राजनीतिक दलों ने आयोग से छठ के तुरंत बाद चुनाव कराने की मांग की थी, ताकि मतदाताओं की चुनाव में भागीदारी बढ़े. लेकिन, अब अंदेशा व्यक्त किया जा रहा है कि 28 अक्तूबर को छठ पर्व की समाप्ति के बाद नवंबर में चुनाव की तारीखों तक प्रवासी काम पर लौट चुके होंगे. नौकरी, बच्चों की पढ़ाई और दैनिक जीवन की मजबूरियां उन्हें वोट डालने से रोक सकती हैं. हालांकि, प्रवासी मतदाता ज्यादातर एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं ऐसे में चुनावी रणनीतियों में प्रवासी वोटरों का आंकलन करना आवश्यक है.
प्रवासी मतदाताओं के लिए चुनौती होगी
जानकार बता रहे हैं कि बिहार से सालाना करोड़ों प्रवासी अन्य राज्यों में काम के लिए जाते हैं. ये युवा मतदाता बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दों से प्रभावित होते हैं. हाल में महागठबंधन ने इनका समर्थन हासिल करने की कोशिश की, लेकिन तारीखों से उनका वोटिंग न होना विपक्ष के लिए झटका हो सकता है.जानकारों का कहना है कि यदि चुनाव छठ पर्व के आसपास होते तो प्रवासी मतदाता आसानी से अपने वोट डालकर अपने काम पर लौट पाते. लेकिन अब छठ के एक हफ्ते बाद होने से कई लोग मतदान से वंचित रह सकते हैं.
महागठबंधन को क्या फायदा या नुकसान?
महागठबंधन को लाभ या नुकसान इस बात पर निर्भर करेगा कि वह किस हद तक अपने मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक ला पाता है. ग्रामीण और स्थानीय वोटरों पर महागठबंधन का मजबूत पकड़ है. प्रवासी मतदाताओं की अनुपस्थिति उनके लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है. जानकारों का मानना है कि छठ के करीब चुनाव से टर्नआउट 5-10% बढ़ सकता था जो महागठबंधन को फायदा देता. विशेषज्ञों का मानना है कि महागठबंधन को अपने समर्थकों को समय से मतदान कराने के लिए सक्रिय प्रचार करना होगा.
एनडीए पक्ष को क्या फायदा या नुकसान?
एनडीए, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में स्थानीय संगठन और वोटिंग नेटवर्क के जरिए लाभ उठा सकता है. एनडीए का आधार अधिकतर स्थायी और स्थानीय मतदाता हैं. दो चरणों की मतदान प्रक्रिया और प्रवासी मतदाताओं की अनुपस्थिति एनडीए को अधिक फायदेमंद कर सकती है. इस बार एनडीए का एजेंडा विकास, अनुभव और स्थिरता पर केंद्रित है जिससे स्थायी वोटरों की भागीदारी उन्हें मजबूत बना सकती है.
प्रवासी वोटरों का राजनीतिक महत्व
जानकार कहते हैं कि अब जब दो चरणों में वोटिंग और छठ के बाद तारीखें घोषित हुईं हैं तो चुनावी रणनीति में बदलाव की मांग कर रही हैं. राजनीतिक दलों को अपने प्रचार और मतदाता संपर्क को नए समय के अनुसार ढालना होगा. सोशल मीडिया और स्थानीय नेताओं के सक्रिय प्रयास मतदान बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. कुल मिलाकर, तारीखें NDA को रणनीतिक बढ़त देंगी, लेकिन मुद्दों पर अभियान निर्णायक होगा. बहरहाल, बिहार चुनाव 2025 में तारीखों और मतदान प्रक्रिया का असर दोनों गठबंधनों पर अलग-अलग होगा. प्रवासी मतदाता अनुपस्थिति महागठबंधन के लिए चुनौती बन सकती है. वहीं, एनडीए का स्थानीय वोटर आधार उन्हें फायदेमंद स्थिति में रख सकता है. राजनीति के जानकारों का मानना है कि प्रचार और मतदान जागरूकता अब निर्णायक भूमिका निभाएगी.